लखनऊ : उत्तर प्रदेश की चित्रकूट व बरेली जेल में बंद अपराधियों से अवैध मुलाकात होती रही, लेकिन किसी को भी भनक नहीं लग सकी. यहां तक जेल परिसर में मौजूद पुलिस चौकियों को भी इस बात की सूचना नहीं मिल सकी कि मुख्तार के बेटे अब्बास और अतीक अहमद के भाई से कौन मुलाकात करने आता है और कौन नहीं. इन अवैध मुलाकातों पर जेल अधिकारियों पर कार्रवाई की गई है, लेकिन सवाल उठता है कि आखिर क्या इन मुलाकातों पर पुलिस की जवाबदेही नहीं बनती है.
Umesh Pal Murder Case : बरेली और चित्रकूट जेलों में होती रहीं नियम विरुद्ध मुलाकातें
उत्तर प्रदेश की जेलों में बंदी रक्षकों की मिलीभगत से नियम विरुद्ध मुलाकात करने और कराने के मामले अक्सर उजागर होते रहते हैं. चित्रकूट और बरेली का प्रकरण सामने आने के बाद एक बार फिर जेल महकमा चर्चा में है. इसमें अहम बात यह है कि जेल परिसर में मौजूद पुलिस चौकियों के पुलिसकर्मियों की जवाबदेही क्यों नहीं तय हो पा रही है.
अवैध मुलाकातों पर पुलिस की तय होनी चाहिए जिम्मेदारी :पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह कहते हैं कि जिस जेल में कुख्यात अपराधी बंद रहते हैं. उनकी जानकारी जिले की पुलिस और खासतौर पर जेल में स्थित पुलिस चौकी को होती है. ऐसे में जेल में आने वाले मुलाकातियों पर नजर रखने के साथ साथ पुलिस उनकी भी सूचना रखती है जो जेल में बंद कुख्यात और हाई प्रोफाइल बंदियों से मिलने आते हैं. ऐसे में यह कैसे संभव है कि चित्रकूट जेल में अब्बास अंसारी से उसकी पत्नी एक माह तक मिलती रही और बरेली जेल में अतीक के भाई अशरफ से असद और अन्य अपराधी मिलते रहे पुलिस को भनक तक नहीं लग सकी.
सुलखान सिंह कहते हैं कि यह कहना बिलकुल गलत नहीं होगा कि जेल अधिकारियों की मिलीभगत के बिना अवैध रूप से मुलाकातें संभव नहीं हैं. यही वजह है कि चित्रकूट और बरेली जेल के कर्मियों पर कार्रवाई की गई है, लेकिन इन पुलिसकर्मियों की भूमिका की भी जांच होनी चाहिए जो जेल चौकी में तैनात होने के बाद भी अपना मुखबिर तंत्र मजबूत नहीं कर सके. नाम न बताने को शर्त पर एक जेल अधिकारी बताते है कि अधिकतर जेल चौकी में तैनात पुलिसकर्मियों को जेल के बंद नामचीन अपराधियों से मुलाकात करने आने वाले हर व्यक्ति के बारे में सूचना होती है या फिर नजर रहती है. अब चित्रकूट और बरेली जेल में कैसे नजर नहीं पड़ी, यह जांच का विषय है.
बरेली और चित्रकूट जेल में तैनात पुलिस ने चौकी को नहीं दी सूचना : वर्ष 2019 में डीजी जेल आनंद कुमार ने राज्य की 25 हाई सिक्यूरिटी जेलों में सुरक्षा के लिए पुलिसकर्मियों को तैनात करने के लिए कहा था. जिन्हें तैनात करने की जिम्मेदारी जिले के पुलिस कप्तान को सौंपी गई थी. ये पुलिसकर्मी जेलकर्मियों को तलाशी लेने के बाद ही जेल के अंदर आने की इजाजत देते हैं. इन 25 जेलों में लखनऊ, आजमगढ़, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, रायबरेली, उन्नाव, गाजीपुर, मुजफ्फरनगर, कानपुर नगर, वाराणसी, बरेली, गौतमबुद्धनगर, मेरठ, गाजियाबाद, बुलंदशहर, अयोध्या, बागपत, आगरा, चित्रकूट, अलीगढ़, गौरखपुर के अलावा केंद्रीय कारागार नैनी, केंद्रीय कारागार बरेली, सेंट्रल जेल वाराणसी, सेंट्रल जेल फतेहगढ़ शामिल हैं. बावजूद इसके बरेली व चित्रकूट जेल में तैनात पुलिसकर्मियों ने जेल चौकी में तैनात पुलिस अधिकारियों को सूचना क्यों नही दी. यदि दी तो आखिर समय रहते कोई एक्शन क्यों नही लिया गया.
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