नई दिल्ली :यूपी विधानसभा चुनाव के पहले फेज से पहले योगी आदित्यनाथ ने 80 फीसदी बनाम 20 फीसदी वाला बयान दिया था. तब माना गया था कि यह बयान के जरिये हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश की गई है क्योंकि मुस्लिम मतदाताओं का रुझान समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल की ओर था. उत्तरप्रदेश में चुनाव जाति और धर्म के आधार पर होते हैं. सभी की नजरें प्रदेश के 19.3 फीसद मुस्लिम वोटरों पर टिकी हैं. पहले दो चरणों में वेस्टर्न यूपी और रूहेलखंड में वोटिंग हुई, जहां मुस्लिम वोटर जीत हार में निर्णायक की हैसियत रखते हैं. तीसरे, चौथे और पांचवें चरण में जाति आधारित वोटिंग से राजनीतिक दलों के भाग्य का फैसला होगा.
पहले दो चरणों में मुसलमान वोटरों ने जाटों के साथ ताकत के तौर पर उभरे. 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने पहले चरण की 58 में से 53 सीटों पर जीत दर्ज की थी. जबकि दूसरे चरण की 55 में से 38 सीटों पर उसके प्रत्याशी जीते थे. तब समाजवादी पार्टी ने दूसरे चरण की सीटों में से 15 पर जीत हासिल की थी. बता दें कि पहले और दूसरे चरण के नौ में से पांच जिलों में मुस्लिम की आबादी 40 फीसदी से अधिक हैं. रामपुर में मुसलमानों की आबादी 50 प्रतिशत से अधिक है.
2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद पश्चिमी यूपी की राजनीति बदल गई, जहां रालोद चीफ जयंत चौधरी के पिता चौधरी अजीत सिंह का सिक्का चलता था. दंगों के बाद से आरएलडी को वोट देने वाले जाट पार्टी से दूर चले गए और 2014, 2017 और 2019 के चुनावों में भाजपा का साथ दिया. 2020 में बनाए गए तीन कृषि कानून के बाद जाटों ने दंगों को भूल गए. कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का गुस्सा भी बीजेपी पर हावी हो गया . योगी आदित्यनाथ सरकार के अल्पसंख्यक विरोधी रुख से मुसलमान तो नाराज हैं ही. इसलिए उम्मीद जताई जा रही है कि सपा-आरएलडी का गठबंधन वेस्टर्न यूपी में बीजेपी को मात दे देगा.
पहले चरण के मतदान से मिले संदेशों से अखिलेश यादव उत्साहित हैं. ग्राउंड रिपोर्ट में यह सामने आया कि मुसलमानों ने ऑल-इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) और बसपा जैसी पार्टियों पर अपना वोट गंवाने के बजाय गठबंधन के लिए वोटिंग की. उन्होंने दूसरे दलों से किनारा कर लिया. 2017 में मुस्लिम वोट सपा, बसपा, कांग्रेस और बीजेपी के बीच बंट गए, इस कारण भारतीय जनता पार्टी मुस्लिमों के गढ़ देवबंद से भी जीत गई थी. इस बार आरएलडी और समाजवादी गठबंधन बीजेपी के लिए चुनौती बनी है. मायावती की बहुजन समाज पार्टी ने पहले चरण में 17 और दूसरे चरण में 23 मुसलमानों को मैदान में उतारा था. सपा को उम्मीद है कि मुसलमान बसपा की ओर नहीं झुकेंगे.