नई दिल्ली : आज भले ही अलग-अलग पार्टियां हिंदुत्व के पुरोधा रहे कल्याण सिंह की मृत्यु के बाद कोई उन्हें लोध (कुर्मी) जाति का बड़ा नेता तो कोई उन्हें ओबीसी का बड़ा नेता भी बता रहा है, लेकिन वास्तविकता तो यही है कि कल्याण सिंह की तरह शायद ही कोई मुख्यमंत्री या भाजपा का नेता होगा जिसने हिंदुत्व के नाम पर अपने मुख्यमंत्री पद तक को त्याग दिया था और कल्याण सिंह के इस बलिदान का भाजपा को आज तक फायदा मिल रहा है. शायद यही वजह है कि उनकी मृत्यु को भी इतना बड़ा इवेंट बनाकर पार्टी अपने कर्ज अदा कर रही.
राम मंदिर के नाम पर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने वाले कल्याण सिंह न सिर्फ हिंदुत्व के पुरोधा ही थे, बल्कि उस समय भी जब समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजपार्टी यानी कांशीराम और मायावती की पार्टी का जब मुलायम सिंह के साथ गठबंधन हुआ, उस समय भी कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा को उन्होंने उत्तर प्रदेश में 177 सीटें दिलवाईं.
कल्याण सिंह की मृत्यु ऐसे समय में हुई है, जब अगले साल यानी 2022 में यूपी का चुनाव है और एक संत होने के बावजूद यूपी के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जिस तरह कल्याण सिंह की मृत्यु पर अंतिम यात्रा से लेकर अंतिम संस्कार तक सक्रिय रहे और उनके बड़े बेटे और भाजपा नेता राजवीर सिंह ने यहां तक कह दिया कि बड़े बेटे का धर्म योगी आदित्यनाथ ने निभाया है. कल्याण सिंह के पार्थिव शरीर के साथ योगी आदित्यनाथ के पोस्टर्स वायरल हो रहे हैं. उसे देख कर ऐसा लगता है कि आने वाले राज्य के चुनाव प्रचार के दौरान यह एजेंडा भी एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है.
कल्याण को जातिगत राजनीति में सीमित करना भाजपा के लिए हो सकती है बड़ी चूक
हालांकि इस समय भाजपा के कुछ नेता कल्याण सिंह को लोध जाति के बड़े नेता या ओबीसी के बड़े नेता के तौर पर भी बता रहे हैं, लेकिन कहीं न कहीं कल्याण सिंह को जातिगत राजनीति में सीमित करना बीजेपी के लिए बड़ी चूक साबित हो सकती है, क्योंकि यदि कल्याण सिंह को एक ओबीसी के नेता के तौर पर यूपी में देखा जाता तो शायद मायावती और मुलायम सिंह के गठबंधन के बावजूद कल्याण सिंह के नेतृत्व में 177 सीटें उस समय नहीं आती.
कुछ दिनों तक पार्टी न छोड़ी होती तो अटल के बाद भाजपा के होते सबसे बड़े नेता
हालांकि बीजेपी के वरिष्ठ नेता और आलाकमान इस बात से भली-भांति वाकिफ है कि यदि कल्याण सिंह ने बीच में कुछ दिनों के लिए पार्टी नही छोड़ी होती तो अटल आडवाणी के बाद आज पार्टी के सबसे बड़े नेता हो सकते थे. यही वजह है की उनकी मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार तक प्रधानमंत्री से लेकर पार्टी के तमाम वरिष्ठ नेताओं ने वहां पहुंच कर उन्हें श्रद्धांजलि दी, उसी तरह अब उनके अस्थि कलश यात्रा को भी उतना ही महत्वपूर्ण बनाये जाने की योजना बनाई जा रही है.
वैसे भी देखा जाए तो जनसंघ और भाजपा को उत्तर प्रदेश में खड़ा करने में कल्याण सिंह की बड़ी भूमिका रही है और इस सेंटीमेंट का ख्याल रखते हुए पार्टी इस मामले में कल्याण सिंह परिवार को भी पूरा सम्मान दे रही है. यही वजह है कि पहली बार बीजेपी में एक साथ एक ही परिवार की तीन पीढ़ी सक्रिय दिखे, जिसमें स्वर्गीय कल्याण सिंह को पार्टी ने गवर्नर तो बनाया ही उनके बेटे सांसद और उनके पोते को उत्तर प्रदेश में मंत्री पद से नवाजा गया.
5 साल पूरा नहीं करने के बाद भी लंबे समय तक लोकप्रिय कल्याण सिंह
इस बाबत ईटीवी भारत ने जब राजनीतिक विश्लेषक और कल्याण सिंह को लंबे समय तक एक राजनीतिक पत्रकार के तौर पर कवर करने वाले योगेश मिश्रा से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि यदि आज के परिपेक्ष में कोई भाजपा नेता कल्याण सिंह को एक ओबीसी नेता के तौर पर देखता भी है तो वह गलत है, क्योंकि कल्याण सिंह एक हिंदुत्ववादी नेता के तौर पर स्थापित थे और कल्याण सिंह भाजपा में पहले मुख्यमंत्री थे जो हिंदुत्व और विकास के नाम पर एक कॉकटेल की तरह रहे, जिन्होंने कभी भी अपने मुख्यमंत्री काल के 5 साल पूरा नहीं करने के बावजूद भी लंबे समय तक काफी लोकप्रिय रहे.
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उन्होंने कहा कि मैंने उनके साथ कई यात्राएं की है और यह देखा है कि जब वह गांव से गुजरते थे तो महिलाएं उस मिट्टी को अपने सिर लगाती थी और कभी भी उन्हें ओबीसी की बात या जाति की बात करते हमने नहीं देखा. इसलिए यदि ओबीसी के नाम पर कोई भी नेता आज उन्हें बांधने की कोशिश करता है तो यह उन्हें या उनकी लोकप्रियता को सीमित करने जैसी बात होगी.
अस्थि कलश यात्रा सही कदम
राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्रा का कहना है कि यदि चतुर्थ श्रेणी के भी किसी कर्मचारी को दुख पहुंचता था तो वह उस से माफी मांगते थे. उन्होंने कहा कि जहां तक उनके अस्थि कलश यात्रा की बात है आज वर्तमान परिपेक्ष में बच्चे नहीं जानते होंगे कि कल्याण सिंह कैसे शासन चलाते थे, कल्याण सिंह कितने सक्रिय थे और कितने बड़े हिंदू वादी नेता थे, इस वजह से यदि बीजेपी प्रदेश स्तर पर अलग-अलग जगह अस्थि कलश यात्रा निकालती है तो यह अपने आप में एक सही कदम है, क्योंकि आज की जनरेशन को यह नहीं पता होगा कि क्यों कल्याण सिंह बीजेपी छोड़कर गए और फिर वापस आए, उन्हें यह नहीं पता होगा कि क्यों कल्याण सिंह ने बीजेपी के झंडे में लिपट कर अपनी अंतिम यात्रा की इच्छा जाहिर की थी, क्योंकि पिछले 10 साल से वह सक्रिय राजनीति में नहीं थे और इस यात्रा से आज की जनरेशन में कौतूहल पैदा होगी और वह उनके बारे में सवाल करेंगे, जिससे लोगों को जानकारी मिलेगी तो यह एक पार्टी का सही कदम है और सही सम्मान है, क्योंकि यदि यूपी के मुख्यमंत्रियों के काल को देखा जाए तो अभी तक के सबसे ज्यादा पारदर्शी मुख्यमंत्री का काल कल्याण सिंह का ही माना जा रहा है, लेकिन बीजेपी को उन्हें, मात्र हिंदू लीडर के तौर पर देखना चाहिए न कि ओबीसी नेता में उन्हें सीमित करके, क्योंकि तब की जनता उन्हें एक हिंदू लीडर के तौर पर जानती थी, न कि बहुत ही कम प्रतिशत के वोट बैंक वाले लोग लोध नेता के तौर पर.
मृत्यु के बाद कल्याण सिंह जैसा सम्मान शायद ही किसी को मिला
ऐसे समय में जब मंदिर बन रहा है, जिसमें कहा जाए तो एक बड़ा योगदान भाजपा के नेताओं में कल्याण सिंह का रहा है यदि आज मंदिर निर्माण हो रहा है तो पूरा पूरा श्रेय कल्याण सिंह को भी जाता है, इस वजह से यदि पार्टी इसे एक बड़ा इवेंट भी बना रही है तो कहीं ना कहीं वह अपने कर्ज चुका रही है. हालांकि उन्होंने यह बात भी मानें कि अभी तक राज्य के किसी नेता को या पूर्व मुख्यमंत्री को इतना ज्यादा सम्मान मृत्यु के पश्चात शायद ही मिला हो, और इस पूरे कार्यक्रम में योगी आदित्यनाथ के रोल को एक संत होने के बावजूद भी उनके परिवार से कम नहीं आंका जा सकता है, क्योंकि एक संत, संस्कार या मोह माया से संबंधित कार्यक्रमों में शामिल नहीं होता है और योगी आदित्यनाथ मात्र मुख्यमंत्री की तरह नहीं, बल्कि एक परिवार की तरह हर कार्यक्रम में मौजूद रहे