नई दिल्ली :उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव के चौथे चरण में 9 जिलों की 60 सीटों पर 23 फरवरी को वोट डाले जाएंगे. इसमें पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, सीतापुर, हरदोई, लखनऊ, उन्नाव, रायबरेली, फतेहपुर और बांदा जिले में शामिल हैं. इस चरण में कुल 624 उम्मीदवार मैदान में हैं. 9 जिलों में सबसे महत्वपूर्ण लखनऊ की विधानसभा सीटें हैं, जहां बीजेपी के लिए समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को पछाड़ने की चुनौती है.
माना जाता है कि अटल बिहारी वाजपेयी और राजनाथ सिंह के संसदीय क्षेत्र लखऩऊ में शिया मतदाता भाजपा को वोट करते रहे हैं. लखनऊ में शिया की आबादी 4 लाख से अधिक है. सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटी (सीएसडीएस) के चुनाव विश्लेषणों में यह सामने आया कि 2014 के चुनाव में उत्तर प्रदेश के 10 फीसदी मुसलमानों ने बीजेपी को वोट दिया था. 2017 और 2019 के चुनाव में भी अल्पसंख्यकों ने बीजेपी को वोट दिया था, जिनमें अधिकतर शिया समुदाय के थे. शियाओं के समर्थन के कारण ही बीजेपी ने मुस्लिम बाहुल्य वाली लखनऊ की तीन सीट लखनऊ उत्तर, पश्चिम और मध्य कैंट पर जीत हासिल की थी.
लखनऊ की तीन सीट लखनऊ उत्तर, पश्चिम और मध्य पर ही लगभग 1.5-2 लाख शिया मतदाता हैं. इसके अलावा लखनऊ सेंट्रल में भी 85 से 90,000 मुस्लिम मतदाता है. इनमें भी शियाओं का अनुपात ज्यादा है. मगर 2022 के विधानसभा चुनाव के बीच यह चर्चा है कि इस बार शिया मतदाता बीजेपी से खफा है. मुहर्रम के दौरान ताजिये पर प्रतिबंध, सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों पर पुलिस कार्रवाई और अब हिजाब विवाद ने लखनऊ में शिया समुदाय को भाजपा से दूर कर दिया है.
शियाओं को दशकों से भाजपा का समर्थन करने के लिए जाना जाता है, उसके बाद यूपी के तत्कालीन मंत्री लालजी टंडन ने मुहर्रम के जुलूस के मुद्दों को सुलझाया था. शिया समर्थन के कारण, भाजपा ने लखनऊ उत्तर, पश्चिम और सेंट्रल सीटों पर आसानी से जीत हासिल की थी.
आखिर बीजेपी से क्यों नाराज हैं शिया
लगातार दो वर्षों से मोहर्रम के जुलूस पर प्रतिबंध से लखनऊ का शिया समुदाय नाराज हैं. कारोबारी हाशिम जाफरी का कहना है कि मोहर्रम के दौरान लोगों को ताज़िया बेचने की भी अनुमति नहीं थी. अगर दो लोग ताज़िया को दफनाने के लिए जाते थे, तो भी उनके साथ मारपीट होती थी. तब उन्होंने इस मसले को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के सामने भी रखा था, मगर कोई कार्रवाई नहीं हुई.
सरकार से नाराजगी जाहिर करते हुए एक शिया मौलाना ने कहा कि आज भाजपा पुराना जैसा नहीं है, जिसका हमने वर्षों से समर्थन किया है. बीजेपी ने सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान जिस तरह से पुलिस ने मुस्लिम महिलाओं पर नकेल कसी, वह गैरजरूरी था. फिर, रमजान और मुहर्रम के दौरान कोविड प्रोटोकॉल के तहत पर प्रतिबंध लगाए गए. मगर दूसरी और हिंदू त्योहारों को अनुमति दी गई. मोहर्रम के दौरान पुलिस गाइडलाइन पर मौलाना कल्बे जवाद नकवी ने भी आपत्ति दर्ज कराई थी.
दूसरी ओर सीएए आंदोलन के दौरान पुलिस कार्रवाई ने शियाओं की नाराजगी बढ़ा दी. यूपी सरकार ने सीएए आंदोलन के बाद वॉन्टेड लोगों की होर्डिंग्स चौराहे पर लगवाई थी. इन होर्डिंग्स पर शिया धर्मगुरू और शिया मरकज़ी चंद कमेटी के अध्यक्ष मौलाना सैफ अब्बास की तस्वीर थी. शिया नेता मानते हैं कि यह भी समुदाय के साथ अच्छा नहीं हुआ था. मौलाना सैफ कहते है कि अगर भाजपा को हमारा समर्थन चाहिए, तो उन्हें इन मुद्दों पर हमसे बात करनी चाहिए.
फिलहाल हिजाब विवाद ने शिया समुदाय के गुस्से को भड़का दिया है. एक कॉलेज स्टूडेंट अफशा ने कही कि उसके 'हिजाब' को लेकर लड़के उसे ताना मारते हैं. इस विवाद ने शिया महिलाओं की भी परेशानी बढ़ी है.