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CAA, मोहर्रम प्रतिबंध और अब हिजाब, बीजेपी से नाराज हैं लखनऊ के शिया वोटर - लखनऊ में मुस्लिम वोटर

यह धारणा आम है कि भारतीय जनता पार्टी को मुसलमान वोट नहीं देते हैं. मगर लखनऊ समेत यूपी के कई इलाकों में पिछले चुनाव के दौरान बीजेपी को अल्पसंख्यकों का भी वोट मिला था. भाजपा को वोट देने वालों में अधिकतर शिया समुदाय के माने जाते हैं. लखनऊ में बीजेपी नेताओं की बड़ी जीत के पीछे शिया वोटरों का समर्थन भी रहा है. मगर उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में भाजपा से शिया वोटर भी दूर जाते नजर आ रहे हैं. बताया जा रहा है लखनऊ में पार्टी के परंपरागत शिया वोटर नाखुश हैं, इसका असर यूपी की राजधानी की तीन सीटों पर पड़ सकता है.

Shias in Lucknow upset with this BJP
Shias in Lucknow upset with this BJP

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Published : Feb 21, 2022, 3:05 PM IST

नई दिल्ली :उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव के चौथे चरण में 9 जिलों की 60 सीटों पर 23 फरवरी को वोट डाले जाएंगे. इसमें पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, सीतापुर, हरदोई, लखनऊ, उन्नाव, रायबरेली, फतेहपुर और बांदा जिले में शामिल हैं. इस चरण में कुल 624 उम्मीदवार मैदान में हैं. 9 जिलों में सबसे महत्वपूर्ण लखनऊ की विधानसभा सीटें हैं, जहां बीजेपी के लिए समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को पछाड़ने की चुनौती है.

2014 के बाद चुनावों में बीजेपी को कम ही सही , मगर अल्पसंख्यक समुदाय के वोट मिले थे.

माना जाता है कि अटल बिहारी वाजपेयी और राजनाथ सिंह के संसदीय क्षेत्र लखऩऊ में शिया मतदाता भाजपा को वोट करते रहे हैं. लखनऊ में शिया की आबादी 4 लाख से अधिक है. सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटी (सीएसडीएस) के चुनाव विश्लेषणों में यह सामने आया कि 2014 के चुनाव में उत्तर प्रदेश के 10 फीसदी मुसलमानों ने बीजेपी को वोट दिया था. 2017 और 2019 के चुनाव में भी अल्पसंख्यकों ने बीजेपी को वोट दिया था, जिनमें अधिकतर शिया समुदाय के थे. शियाओं के समर्थन के कारण ही बीजेपी ने मुस्लिम बाहुल्य वाली लखनऊ की तीन सीट लखनऊ उत्तर, पश्चिम और मध्य कैंट पर जीत हासिल की थी.

लखनऊ की तीन सीट लखनऊ उत्तर, पश्चिम और मध्य पर ही लगभग 1.5-2 लाख शिया मतदाता हैं. इसके अलावा लखनऊ सेंट्रल में भी 85 से 90,000 मुस्लिम मतदाता है. इनमें भी शियाओं का अनुपात ज्यादा है. मगर 2022 के विधानसभा चुनाव के बीच यह चर्चा है कि इस बार शिया मतदाता बीजेपी से खफा है. मुहर्रम के दौरान ताजिये पर प्रतिबंध, सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों पर पुलिस कार्रवाई और अब हिजाब विवाद ने लखनऊ में शिया समुदाय को भाजपा से दूर कर दिया है.

शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जव्वाद सरकार के रवैये की आलोचना कर चुके हैं.

शियाओं को दशकों से भाजपा का समर्थन करने के लिए जाना जाता है, उसके बाद यूपी के तत्कालीन मंत्री लालजी टंडन ने मुहर्रम के जुलूस के मुद्दों को सुलझाया था. शिया समर्थन के कारण, भाजपा ने लखनऊ उत्तर, पश्चिम और सेंट्रल सीटों पर आसानी से जीत हासिल की थी.

आखिर बीजेपी से क्यों नाराज हैं शिया

लगातार दो वर्षों से मोहर्रम के जुलूस पर प्रतिबंध से लखनऊ का शिया समुदाय नाराज हैं. कारोबारी हाशिम जाफरी का कहना है कि मोहर्रम के दौरान लोगों को ताज़िया बेचने की भी अनुमति नहीं थी. अगर दो लोग ताज़िया को दफनाने के लिए जाते थे, तो भी उनके साथ मारपीट होती थी. तब उन्होंने इस मसले को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के सामने भी रखा था, मगर कोई कार्रवाई नहीं हुई.

सीएए के खिलाफ लखनऊ में प्रदर्शन पर योगी सरकार ने सख्त तेवर दिखाए थे.

सरकार से नाराजगी जाहिर करते हुए एक शिया मौलाना ने कहा कि आज भाजपा पुराना जैसा नहीं है, जिसका हमने वर्षों से समर्थन किया है. बीजेपी ने सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान जिस तरह से पुलिस ने मुस्लिम महिलाओं पर नकेल कसी, वह गैरजरूरी था. फिर, रमजान और मुहर्रम के दौरान कोविड प्रोटोकॉल के तहत पर प्रतिबंध लगाए गए. मगर दूसरी और हिंदू त्योहारों को अनुमति दी गई. मोहर्रम के दौरान पुलिस गाइडलाइन पर मौलाना कल्बे जवाद नकवी ने भी आपत्ति दर्ज कराई थी.

दूसरी ओर सीएए आंदोलन के दौरान पुलिस कार्रवाई ने शियाओं की नाराजगी बढ़ा दी. यूपी सरकार ने सीएए आंदोलन के बाद वॉन्टेड लोगों की होर्डिंग्स चौराहे पर लगवाई थी. इन होर्डिंग्स पर शिया धर्मगुरू और शिया मरकज़ी चंद कमेटी के अध्यक्ष मौलाना सैफ अब्बास की तस्वीर थी. शिया नेता मानते हैं कि यह भी समुदाय के साथ अच्छा नहीं हुआ था. मौलाना सैफ कहते है कि अगर भाजपा को हमारा समर्थन चाहिए, तो उन्हें इन मुद्दों पर हमसे बात करनी चाहिए.

फिलहाल हिजाब विवाद ने शिया समुदाय के गुस्से को भड़का दिया है. एक कॉलेज स्टूडेंट अफशा ने कही कि उसके 'हिजाब' को लेकर लड़के उसे ताना मारते हैं. इस विवाद ने शिया महिलाओं की भी परेशानी बढ़ी है.

लखनऊ की कुल 9 विधानसभा सीटें हैं. लखनऊ पूर्वी, लखनऊ उत्तरी, लखनऊ सेंट्रल, लखनऊ पश्चिम, सरोजिनी नगर, लखनऊ कैंट, मोहनलालगंज, मलिहाबाद, बख्शी का तालाब है. हर सीट पर अल्पसंख्यक वोटर हैं मगर उनमें से तीन सीटें ऐसी हैं, जहां शिया वोटर जीत-हार में भूमिका निभाते रहे हैं.

बीजेपी के नेता राजनाथ सिंह और लालजी टंडन शिया समुदाय के काफी करीब रहे हैं.

लखनऊ सेंट्रल

यह पुराने लखनऊ वाली सीट है. 1989 से 2007 तक इस पर बीजेपी काबिज रही. 2012 में समाजवादी पार्टी के रविदास मेहरोत्रा ( Ravidas Mehrotra) जीते. 2017 में बीजेपी के बृजेश पाठक ने दोबारा इस सीट पर कब्जा किया. लखनऊ मध्य भी मुस्लिम बाहुल्य सीट मानी जाती है. तीन लाख 68 हजार के करीब वोटरों वाली सीट पर 85 से 90,000 मुस्लिम मतदाता है. बीजेपी ने बीजेपी ने इस सीट पर रजनीश गुप्ता को टिकट दिया है. उनके मुकाबले में समाजवादी पार्टी के रविदास मेहरोत्रा मैदान में हैं.

लखनऊ पश्चिमी सीट

1989 से 2007 तक इस सीट पर भी भारतीय जनता पार्टी का कब्जा रहा. 2009 के उपचुनाव में कांग्रेस और 2012 के चुनाव में समाजवादी पार्टी ने बीजेपी के गढ़ में सेंध लगाई थी. 2017 में बीजेपी से सुरेश श्रीवास्तव ने इस सीट पर बीजेपी को जीत दिलाई. मुस्लिम बाहुल्य सीट पर करीब 4,33,668 वोटर हैं, जिनमें 1,10,000 के लगभग मुस्लिम मतदाता है. इस सीट से तीन बार चुनाव जीतने वाले बीजेपी नेता लालजी टंडन मुस्लिम समुदाय में भी काफी लोकप्रिय रहे. 2022 चुनाव में बीजेपी ने अंजनी श्रीवास्तव को मैदान में उतारा है. सपा से अरमान खान मैदान में हैं.

लखनऊ नॉर्थ

इस सीट पर कुल 70,000 मुस्लिम वोटर हैं. यह सीट 2012 में अस्तित्व में आई है और पहले चुनाव में समाजवादी पार्टी के अभिषेक मिश्रा विधायक बने . इस सीट पर 2017 में पहली बार बीजेपी को जीत मिली. बीजेपी ने एक बार फिर सीटिंग एमएलए नीरज बोरा पर भरोसा जताया है. समाजवादी पार्टी ने युवा चेहरे पूजा शुक्ला को मैदान में उतारा है. बीएसपी की ओर से मोहम्मद सरवर मलिक और कांग्रेस की ओर से अजय श्रीवास्तव उर्फ अज्जू चुनाव मैदान में हैं.

(आईएएऩएस इनपुट)

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