शहडोल। शहडोल संभाग में आदिवासी समाज के लोगों की बहुलता है. इस क्षेत्र में आदिवासियों के बीच में कई ऐसी अनोखी परंपराएं हैं, जिनके बारे में जानकर हर कोई हैरान हो जाता है. साल दर साल बदलते वक्त के साथ जहां हर जगह बदलाव देखने को मिला, वहीं आदिवासियों के बीच में कुछ ऐसी परंपराएं आज भी जीवंत हैं, जिनमें कुछ भी बदलाव नहीं हुआ है. बैसाख के महीने में फलों के राजा आम की आवक होती है. लोगों को ठंडे पानी की जरूरत होती है तो घड़े का इस्तेमाल करते हैं. ऐसे में आदिवासी समाज के लोग उस नए साल में तब तक ना तो नए घड़े का पानी पीते हैं और ना ही फलों के राजा आम का सेवन करते हैं, जब तक उसका दान अपने भांजे को नहीं कर देते. विशेष नियम है कि बैसाख के महीने में ही इसका दान किया जाता है.
मामा का सालभर के लिए बीमा हो जाता है :इस परंपरा को लेकर आदिवासी समाज के केशव कोल और नान बाबू बैगा ने बताया कि बैसाख के महीने में नए घड़ा और आम का दान आदिवासी समाज के बीच एक अनोखी परंपरा है, जो लगातार सदियों से उनके पूर्वजों के जमाने से चली आ रही है. उनके पूर्वजों ने उन्हें यह सिखाया है कि तब तक नए घड़े से पानी नहीं पीना है, जब तक भांजे को दान नहीं कर लेते हैं. ना ही तब तक आम का सेवन करना हैं, दोनों बताते हैं कि भांजे को इसका दान कर लेने से बहुत फायदा मिलता है. सालभर पुण्य मिलता है. इस दान के बाद मामा का सालभर के लिए बीमा ही हो जाता है, क्योंकि उसे काफी पुण्य व लाभ मिलता है. किसी भी तरह की कठिनाइयां उसके रास्ते में नहीं आती. कुछ लोग ऐसे भी हैं कि अगर बैसाख के महीने में नए घड़ा और आम का दान नहीं कर पाए तो फिर वह सालभर के लिए उसका त्याग भी कर देते हैं, वो उसका इस्तेमाल ही नहीं करते हैं. ना तो नए घड़े से वो साल भर पानी पिएंगे और ना ही आम का सेवन करेंगे.