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छत्तीसगढ़ में बुजुर्गों के विरोध करने का अंदाज देखकर हर कोई दंग - Fight for the honor of Chhattisgarhi language in Bilaspur

बिलासपुर में दो बुजुर्गों ने विरोध का अनोखा तरीका अपनाया (Unique style of protest of two elders in Bilaspur) है. इन बुजुर्गों की मांगें कब पूरी होंगी ये कोई नहीं जानता, लेकिन इनके विरोध ने कई लोगों का ध्यान खींचा है.

Unique way of protest in bilaspur
बुजुर्गों के विरोध का अनोखा तरीका

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Published : Jul 21, 2022, 8:59 PM IST

बिलासपुर : आपने मांगें पूरी करवाने के लिए कई तरह के विरोध और प्रदर्शन देखें होंगे. लेकिन आज हम जिस विरोध प्रदर्शन को दिखाने जा रहे हैं वो बेहद ही अनोखा है. और उससे भी अनोखे हैं इस विरोध को करने वाले. दरअसल विरोध करने वाले युवा नहीं बल्कि बुजुर्ग (Unique style of protest of two elders in Bilaspur) हैं. दो बुजुर्गों ने अपने-अपने तरीके से विरोध जारी रखा है. एक ने अपने कपड़े में मांग का प्रतीक और मांगें लिखी, जमीन संबंधी मांग के लिए इलाके के पटवारी रिकॉर्ड का नक्शा कपड़े में छपवाकर उनकी जमीन किस इलाके में है, उसे दर्शाया है. दूसरे ने छत्तीसगढ़ी भाषा को स्कूलों में सही दर्जा देने की मांग की है. इनके इस अनूठे तरीके ने कई लोगों का ध्यान खींचा है.

बुजुर्गों के विरोध का अनोखा तरीका


क्यों कर रहे हैं प्रदर्शन :बिलासपुर शहर से लगे ग्राम बिरकोना के 80 वर्षीय वृद्ध लतेलराम यादव ने ने अपने जमीन वाले शासकीय पटवारी रिकॉर्ड का नक्शा कपड़े में अंकित कर लिया है. लतेलराम ने कपड़े में पटवारी रिकॉर्ड में अपनी जमीन का नक्शा दर्शाया है. उनकी जमीन को सरकारी रिकॉर्ड में घास भूमि बताया जा रहा है. वहीं लतेलराम उस जमीन को अपना बताकर उसे पाना चाहते हैं. लतेलराम ने बताया कि ''ग्राम बिरकोना में मालगुजार( जमींदार) ने 7 एकड़ जमीन दान दी थी. दान की गई जमीन के 5 एकड़ को पहले ही घास भूमि रिकॉर्ड में चढ़ा दिया गया है. बची जमीन के दो एकड़ की रजिस्ट्री मेरे पास है. लेकिन कुछ सरकारी अधिकारी और भूमाफियाओं ने उस जमीन पर भी कब्जा कर लिया (Land mafia occupied the land of the elderly in Bilaspur) है.'' लतेलराम ने बताया कि उसे अपनी जमीन पर भूमाफिया काबिज नहीं होने दे रहे हैं. लतेलराम ने अपनी मांग को लेकर सरकारी कार्यालयों के चक्कर काटे लेकिन थक कर इस तरह का अनूठा तरीका अपनाया है. वह अब घूमकर लोगों को बताता है और मदद की गुहार लगाता है ताकि कोई तरस खाकर उसकी मदद कर दे.

दूसरे बुजुर्ग को क्या है परेशानी : 15 वर्षों से छत्तीसगढ़ी भाषा की लड़ाई लड़ रहे हैं 81 वर्षीय बुजुर्ग नंद किशोर शुक्ला. छत्तीसगढ़ी को राजभाषा का दर्जा मिलने के बाद भी प्रदेश के सरकारी स्कूलों में यह पढ़ाई का माध्यम नहीं बन (Fight for the honor of Chhattisgarhi language in Bilaspur) सका. इसके लिए पिछले 15 वर्षों से छत्तीसगढ़ी भाषा के लिए लड़ाई लड़ रहे बुजुर्ग नंद कुमार शुक्ला ने अपनी वेशभूषा को भी छत्तीसगढ़ी कर लिया है. एक हाथ में लाठी रखे हुए , सिर पर बंधे कपड़े पर भी छत्तीसगढ़ी लिखा हुआ. इसी वेशभूषा में रहकर शुक्ला छत्तीसगढ़ी की लड़ाई लड़ रहे हैं. नंद किशोर शुक्ला का कहना है कि, '' प्रदेश के सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का माध्यम छत्तीसगढ़ी भाषा नहीं बन सका है. कक्षा पहली व दूसरी में एक सम्पूर्ण विषय तक नहीं माना गया. हिंदी के साथ छत्तीसगढ़ी भी पढ़ाई जा रही है. इसमें दिक्कत यह है कि शिक्षक पहले हिंदी पढ़कर उसका छत्तीसगढ़ी में अनुवाद करवाते हैं. सीधे छत्तीसगढ़ी नहीं (Chhattisgarhi official language does not have status in school) पढ़ाते. एक किताब में दो भाषा समाहित कर दी गई है.'' छत्तीसगढ़ी राजभाषा मंच के संस्थापक नंद किशोर शुक्ला का कहना है कि शिक्षा से विकास के द्वार खुलते हैं, शिक्षा माध्यम छत्तीसगढ़ी होना चाहिए.


कब होगी मांगें पूरी : दोनों ही बुजुर्ग लंबे समय से अपनी मांगें मनवाने का प्रयास कर रहे हैं. लेकिन अब तक इनकी मांगें नहीं मानी गई है. एक बुजुर्ग जहां लोक कल्याण की मंशा रखते हुए छत्तीसगढ़ी राजभाषा को स्कूलों में पाठ्यक्रम में शामिल करने और इसकी शिक्षा दीक्षा दिलाने की अनिवार्यता की मांग कर रहे हैं, तो दूसरे अपनी खोई हुई जमीन वापस पानी की मांग कर रहे हैं. दोनों ही बुजुर्ग सड़कों पर और प्रशासन के दरवाजे पर लगातार देखे जा सकते हैं, लेकिन इनकी मांग पूरी नहीं हो रही है.

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