इंदौर। तकनीकी के बदलते दौर में टाइपराइटर की बात भले बेमानी हो चुकी हो. लेकिन आज भी तरह-तरह के अनूठे टाइपराइटर टाइपिंग के पुराने दौर के साक्षी रहे हैं. ऐसे ही दुर्लभ टाइपराइटर का अनूठा संग्रहालय इंदौर में मौजूद है. जहां देश और विदेश के कई एंटीक टाइपराइटर चालू हालत में आज भी मौजूद हैं. अब टाइपराइटर के बीते युग को यहां भानु माधव टाइपराइटर्स म्यूजियम के बतौर सहेजने की भी तैयारी की गई है. (Typewriter Lover Rajesh Sharma)
इंदौर भानु प्रकाश टाइपराइटर संग्रहालय 10 साल में 450 से ज्यादा टाइपराइटर का संग्रह: इंदौर के अक्षय दीप कॉलोनी में रहने वाले राजेश शर्मा के पिता माधव प्रसाद शर्मा इंदौर की जिला कोर्ट के बाहर अपनी दुकान पर टाइपिंग किया करते थे. पिता के बाद राजेश शर्मा के भाई भानु प्रकाश ने यह काम संभाला. इसी दौरान राजेश शर्मा ने टाइपिंग के काम को करीब से देखा. हालांकि 90 के दशक के बाद जब टाइपराइटर चलन से बाहर होने लगे तो राजेश शर्मा के मन में विचार आया कि क्यों ना टाइपराइटर की धरोहर को सहेजा जाए. जिसके बाद उन्होंने माधव भानु टाइपराइटर म्यूजियम तैयार करने का फैसला किया. फलस्वरूप बीते 10 साल में उनके घर में ही 450 से ज्यादा टाइपराइटर का संग्रह तैयार हो चुका है. वह जहां जाते हैं वहां उनकी कोशिश होती है कि पुराने से पुराने टाइपराइटर एकत्र किए जाएं. इसके अलावा उनके मिलने वालों और दोस्तों को जब उनकी यह ख्वाहिश पता चली तो वे भी इस काम में जुट गए.
कई देशों के टाइपराइटर मौजूद:लिहाजा राजेश शर्मा के पास बड़ी संख्या में ऐसे एंटीक टाइपराइटर हैं जो उनके दोस्तों ने गिफ्ट किए हैं. इसके अलावा वह कबाड़ से 3000 से लेकर 40,000 तक के पुराने टाइपराइटर खरीद चुके हैं, जो उनके संग्रहालय में मौजूद हैं. फिलहाल उनके घर में जहां देखो वहां तरह-तरह के पुराने टाइपराइटर नजर आते हैं. इन टाइपराइटर में कुछ टाइपराइटर भारत के अलावा अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा, जर्मनी, स्वीडन, पुर्तगाल, पाकिस्तान, स्वीटजरलैंड और हालैंड के भी हैं.
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अधिकांश टाइपराइटर चालू कंडीशन में:दिलचस्प बात तो यह है कि यह टाइप राइटर केवल हिंदी और अंग्रेजी में ही नहीं बल्कि शब्दों की पूरी दुनिया को अपने आप में समेटे हुए हैं. इनमें हिंदी अंग्रेजी के अलावा फ्रेंच, जर्मन, रशियन, अरेबिक, उर्दू, मराठी, गुजराती और तमिल भाषा के भी टाइपराइटर हैं. जिनके जरिए संबंधित भाषा में ही आज भी टाइपिंग की जा सकती है. इसके अलावा राजेश शर्मा के म्यूजियम में 1890 का अमेरिकन टाइपराइटर भी मौजूद है, जो अंग्रेजी का आदर्श टाइपराइटर माना जाता है. इसके अलावा 1922 का मर्सिडीज कंपनी का 1913 का, करोना कंपनी का 1922 का, रॉयल कंपनी का 1960 का, सन 2000 तक के तरह-तरह के एंटीक टाइपराइटर शामिल हैं. इसके अलावा इनमें सबसे छोटा टाइपराइटर जो फोल्डेबल है उसका वजन ढाई किलो है. जिसे किसी जमाने में सेना के जवान भी इस्तेमाल करते थे. राजेश शर्मा के टाइपराइटर की खास बात यह है कि इनमें से अधिकांश टाइपराइटर चालू कंडीशन में है.
इंदौर में तैयार होगा टाइपराइटर का डाटा बैंक:माधव भानु टाइपराइटर म्यूजियम तैयार कर रहे राजेश शर्मा की कोशिश है कि देश और दुनिया में जितने भी टाइपराइटर मौजूद हैं उनकी डाटा बुक तैयार की जा रही है. जिसमें इन टाइपराइटर के बारे में पूरी जानकारी उपलब्ध हो सकेगी. इसके अलावा वह माधव भानु टाइपराइटर म्यूजियम भी स्थापित करना चाहते हैं. जिससे कि आने वाली पीढ़ी यह जान सके कि जिस कंप्यूटर और मोबाइल पर भी तेजी से टाइपिंग करते हैं उसकी शुरुआत टाइपराइटर से हुई थी.
घर में सिमटी है टाइपराइटर की यादें:पेशे से एडवरटाइजिंग कंपनी से जुड़े राजेश शर्मा आर्टिस्ट भी हैं. लेकिन उन्होंने अपने घर में अपने पिता और भाई की व्यवसायिक धरोहर को हमेशा के लिए जीवित रखने का फैसला किया है. वह आज भी जब कोई टाइपराइटर देखते हैं तो उन्हें अपनी दुकान और टाइपराइटर पर पिता और भाई की याद आती है. अब राजेश की कोशिश है कि इस धरोहर को एक निश्चित स्थान पर संग्रहालय के रूप में स्थापित किए जाए. जिससे कि यह धरोहर आने वाली पीढ़ी के लिए एक विरासत के रूप में स्थापित हो सके.
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