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बजट स्पेशल : किसान गंगा किनारे वाला

देश का आम बजट जनता के बीच केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने रख दिया. बहुत सारी योजनाओं को उसमें शामिल किया गया है और विकास को भारत के 100 साल आजादी के पूरा होने पर देश को जो दिशा देनी है, उसका पूरा खाका भी खींच दिया. तमाम बड़ी योजनाओं को सदन के पटल पर विस्तार से बताया गया लेकिन एक बहुत बड़ी योजना जो बजट भाषण में सिर्फ एक लाइन में कह दी गई, वह इतनी बड़ी है कि अगर वह अपना जमीनी स्वरूप लेती है, तो भारत की आर्थिक संरचना, भारत की धार्मिक संरचना और सांस्कृतिक संरचना इतनी मजबूत होगी, कि जब भारत आजादी के 100 साल पर खुद को देखेगा, तो विकास की एक बहुत बड़ी इबादत लिख देगा. पढ़िए ईटीवी भारत झारखंड स्टेट हेड भूपेंद्र दूबे का एक विश्लेषण.

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बजट पेश करतीं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण

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Published : Feb 1, 2022, 6:38 PM IST

2022 के बजट भाषण में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गंगा नदी को लेकर एक बड़ी परियोजना को सबके सामने रखा और यह भी बताया कि गंगा नदी के दोनों तरफ 5 किलोमीटर तक विशेष कृषि जॉन बनाकर इसे विकसित किया जाएगा, सदन में पढ़ें गए बजट भाषण में इस योजना पर भले ही वित्त मंत्री ने बहुत कुछ नहीं बोला हो, लेकिन अगर यह योजना जमीन पर उतर आई तो देश को बोलने के लिए बहुत कुछ मिल जाएगा.

भारतीय संस्कृति की शुरुआत से ही अगर चर्चा में लाया जाए, तो गंगा नदी नहीं एक सभ्यता है. पूरे भारत में 2071 किलोमीटर के प्रवाह क्षेत्र के साथ गंगा नदी देश के 27% हिस्से के साथ लोगों से सीधे जुड़ी है, भारत की 17 करोड़ से ज्यादा की आबादी गंगा से सरोकार रखती है और और देश का 10 लाख वर्ग किलोमीटर उपजाऊ क्षेत्र गंगा नदी से जुड़ा हुआ है.

गंगा नदी में सिर्फ पानी नहीं बहता है बल्कि देश के विकास की अविरल धारा भी साथ साथ चलती है. केंद्रीय वित्त मंत्री ने 2022 के बजट भाषण में गंगा नदी के 5 किलोमीटर के दोनों छोर पर विशेष रूप से विकसित करने की योजना को चालू करने का जो प्रारूप रखा है वह निश्चित तौर पर उत्तराखंड. उत्तर प्रदेश. बिहार. झारखंड और पश्चिम बंगाल के लिए नया जीवन देने जैसी किसी बड़ी योजना से कम नहीं होगा. उत्तराखंड. उत्तर प्रदेश. बिहार. झारखंड और पश्चिम बंगाल की लगभग 5 करोड़ से ज्यादा आबादी गंगा नदी पर निर्भर है और इनके जीने का आधार की गंगा नदी ही है. ऐसे में अगर 5 किलोमीटर के दायरे को विकसित किया जाता है और सरकार का उस पर विशेष काम होता है, तो निश्चित तौर पर करोड़ों रोजगार सृजित होंगे और ना जाने कितना जीवन नए भारत को गढ़ने में अपना योगदान देगा.

बात गंगा नदी की करें वर्तमान में गंगा का जो स्वरूप है उस पर काम करने की इस योजना को लेकर केंद्र सरकार नीति बनाने जा रही है उसमें एक बहुत बड़ा तबका जिनका जीवन गंगा से प्रभावित होता है उसे एक दिशा मिलेगी. पूरे देश के 102 ऐसे जिले हैं जिनका सरोकार गंगा से जुड़ा हुआ है. बात शहरों की करें उत्तराखंड के 16 शहर, यूपी के 21, बिहार के 18, झारखंड के दो और पश्चिम बंगाल के 40 ऐसे शहर हैं जिनका पूरा स्वरूप ही गंगा पर निर्भर है. अगर गंगा इन शहरों के पास नहीं होती तो शायद इन शहरों का स्वरूप भी नहीं होता. लेकिन दुखद पहलू यह है कि भारत के यही 97 जिले गंगा में इतना प्रदूषण करते हैं कि गंगा को शुद्ध करने के लिए केंद्र सरकार को नमामि गंगे जैसी योजना को लाना पड़ गया. गंगा को जीवनदायिनी बनाने के लिए 5 किलोमीटर के जिस विस्तार वाली योजना पर सरकार काम करने की नीति बना रही है वह करोड़ों परिवार के जीवन का इतना बड़ा आभार होगा जिनकी पूरी जिंदगी ही बदल जाएगी और देश की आर्थिक संरचना में विकास का एक बड़ा आधार भी गंगा के किनारे वाले जोर से बाहर आएगा.

गंगा की 5 किलोमीटर के दोनों किनारों पर जिस विकास वाली योजना पर सरकार काम करना चाह रही है ग्रुप पर काम होता है तो निश्चित तौर पर एक बहुत बड़ी दुनिया खड़ी की जा सकती है. गंगा जिस ग्लेशियर से निकलती है उसके बारे में यह कहा जा रहा है कि 2030 तक वह पूरे तौर पर पिघल जाएगा और फिर गंगा प्राकृतिक नदी बनकर रह जाएगी. हालांकि गंगा के पूरे भारत के स्वरूप की बात करें तो 350 से ज्यादा नदियां गंगा में मिलती हैं और 35 बड़ी नदी है जो सीधे तौर पर गंगा में पानी डालती हैं. गंगा में पानी डालने वाली नदियां बारिश की नदियों के तौर पर जानी जाती हैं और इनमें से अधिकांश पर नदियां पानी बारिश के समय में ही गंगा में डालती हैं और गंगा में आने वाले इस पानी का ही स्वरूप नियंत्रित नहीं होने के कारण पार्क के रूप में बिहार उत्तर प्रदेश झारखंड और पश्चिम बंगाल के बड़े भाग को डूबा जाता है. बात उत्तर प्रदेश की करें तो उत्तर प्रदेश के 24 जिले ऐसे हैं जो गंगा के बाढ़ से प्रभावित होते हैं जबकि बिहार के 26 जिले पूरे तौर पर बाढ़ की चपेट में होते हैं जिसमें गंगा और कोसी दोनों नदियों का पानी होता है उसी का बहाव क्षेत्र और गंगा के बहाव क्षेत्र में बड़ा अंतर है. लेकिन उसके बाद भी बाढ़ की विभीषिका लोगों के लिए एक ऐसा दर्द दे जाती है जो आजीवन बाढ़ से कटाव की कसक लिए पलायन की पीड़ा से जूझता रहता है यह गंगा के किनारे बसने वाले आम लोगों के जीवन की सामान्य नियति बन गई है कि जब भी बारिश का मौसम आता है हजारों परिवार बेघर हो जाते हैं लाखों की संपत्ति गंगा में कटकर बह जाती है अगर सरकार 5 किलोमीटर के दोनों तरफ के गंगा को और वहां बसने वाले लोगों के लिए योजना लाती है तो निश्चित तौर पर गंगा एक नए भारत का स्वरूप खड़ा कर देंगी.

बिहार बाढ़ नियंत्रण को लेकर कई शोध पुस्तक लिख चुके डॉ रंजीत कुमार ने बताया इस तरह की योजना केंद्र सरकार बना रही है उसमें एक बात अभी भी साफ नहीं है कि गंगा के नेचुरल फ्लो को लेकर सरकार की क्या योजना है. हालांकि उन्होंने इस बात को कहा कि अगर सरकार 5 किलोमीटर के एरिया को विकसित करने की योजना लाती है तो निश्चित तौर पर गंगा को और उसके किनारे लोगों के जीवन को दिशा मिलेगी. लगातार हो रहे कटाव से एक तरफ जहां गंगा का कैश पैड एरिया बड़ा है, वहीं लगातार हुए कटाव के कारण फॉरेस्ट एरिया घटा है. गंगा को बचाने के लिए यह जरूरी है कि गंगा में आने वाले छोटी नदियों के कार को रोका जाए क्योंकि इन नदियों के बारिश में बहुत सारे सिर्फ अकेले आने से गंगा का बहाव क्षेत्र घट रहा है और पानी ऊपर होकर फैल जाता है अगर गंगा के केचमेंट एरिया को और नहीं बढने दिया जाए कथाओं को रोक दिया जाए निश्चित तौर पर गंगा के किनारे बसे 5 किलोमीटर के क्षेत्र से इतना विकास जरूर हो जाएगा कि देश को एक नई जीडीपी लिखने का मौका मिल जाएगा लेकिन जरूरत इस बात का है कि सरकार इस योजना को बना रखी है उसको धरातल पर उतार दी ले ऐसा ना हो कि नमामि गंगे योजना का हाल इस योजना का विश्वरूप बन जाए. गंगा के 5 किलोमीटर के दायरे को विकसित करने की योजना पर सरकार काम कर रही है उसमें कई ऐसी योजनाएं हैं जो लंबे समय तक वहां के लोगों को रोजगार भी दे सकती हैं और उन्हें खाने पीने के लिए दिक्कत नहीं होगी अगर 5 किलोमीटर की एरिया में सरकार कुछ ऐसे काम कर दे तो बदलाव बहुत कम समय में ही दिखने लगेगा.

1. गंगा के किनारे बसे गांव जो 5 किलोमीटर के दायरे में आते हैं वह तालाब बनवाकर के बारिश के पानी का संरक्षण करवा दिया जाए जो बाढ़ के रूप में गंगा दे जाती हैं.

2 सिंचाई की समुचित व्यवस्था हो जाने के बाद अब ऐसे क्षेत्र जो उपजाऊ होने के बाद भी सिंचाई के अभाव में सिंगल क्रोप्लैंड होकर रह गए हैं वहां पर मल्टी क्रॉपिंग हो जाएगी.

3 गंगा के किनारे गंगा नर्सरी तैयार कराया जा सकता है जिससे पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा मिल सकता.

4 लगातार कटाव के कारण गंगा के किनारे वन क्षेत्र घटा है ऐसे में पौधों को लगा कर के गंगा का वन क्षेत्र भी बढ़ाया जा सकता है और फलदार वृक्ष लगाकर के एक बड़ा उद्यान खड़ा किया जा सकता है जो गंगा के 5 किलोमीटर के क्षेत्र में इतना बड़ा उद्यम खड़ा कर देगा जिसमें करोड़ों लोगों को रोजगार मिल जाएगा.

5 इसमें सबसे बड़ा काम सरकार को यह भी करना होगा उद्यमों से निकलने वाले प्रदूषित जल को रोका जाए और उसके लिए जल शुद्धीकरण का संयंत्र लगाने के बाद ही पानी को गंगा में डालने दिया जाए जिससे गंगा की शुद्धता बनी रहे.

6 गंगा के मैदानी भाग जो लगभग 10 लाख वर्ग किलोमीटर का उपजाऊ क्षेत्र है वहां जैविक खेती के माध्यम से बड़ा रोजगार भी दिया जा सकता है और गंगा को बचाने की मुहिम को दिशा भी. डॉ रंजीत कुमार ने कहा कि सरकार अगर इस योजना पर काम करना शुरू करती है और ईमानदारी से बजट के सिर्फ फाइल में योजना न रह जाए जमीन पर उतर जाए तो निश्चित तौर पर गंगा देश में विकास की नई इबारत लिख ही देंगे.

2022 के बजट में केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण के अभिभाषण में एक लाइन ही सही लेकिन गंगा के 5 किलोमीटर के क्षेत्र को विकसित करने की योजना को सरकार ने अपनी नीतियों में शामिल किया है वह देश के विकास की ऐसी रूपरेखा खड़ा करेगा जिसके बाद सरकार को संभवत करोड़ों रोजगार को बताने का अवसर मिल जाए आज से अगर इस बात की शुरुआत की जाए तो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि पूरे विश्व में होने वाली पानी की किल्लत से भारत कभी नहीं उठेगा और भारत के पास इतना पर्याप्त पानी होगा कि उसे किसी भी तरह की दिक्कत ही नहीं होगी और उसमें गंगा एक ऐसी नदी है जिसमें सिर्फ साफ कर दिया जाए तो बिना किसी फिल्टर वाटर के गंगा का पानी सीधे पिया भी जा सकता है. अब जरूरत इस बात की है कि 5 किलोमीटर को विकसित करने का काम केंद्र सरकार की नीतियों में बजट के समय बताया गया है. अगर वह जमीन पर उतरता है तो देश हर साल के बजट में गंगा के 5 किलोमीटर के क्षेत्र से होने वाले राजस्व की आमदनी रोजगार के अवसर और भारत की सामाजिक राजनीतिक और आर्थिक संरचना के विकास का नया गजट पेश करेगी. बस ज़रूरत इस बात का है कि जिस योजना को बजट के समय लाया गया है उसे जमीन पर उतार दिया जाए.

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