नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर बहस छेड़ दी है. जिस दिन उन्होंने इस विषय पर अपनी राय रखी, उसी दिन से विपक्षी दलों में हलचल मच गई. आम आदमी पार्टी ने इस तरह के किसी भी प्रस्ताव पर सकारात्मक प्रतिक्रिया भी दे दी. कम-से-कम इस मुद्दे की आड़ में ही सही, लेकिन विपक्षी दलों में दरार जरूर दिख गई. ऊपर से वाईएसआरसीपी और बीजू जनता दल ने अभी तक विपक्षी दलों की एकता के प्रयास का कोई जवाब भी नहीं दिया है.
मोदी सरकार भी इस राजनीतिक 'खेल' को समझती है. उसे पता है कि इस मुद्दे के बहाने पर विपक्षी दलों पर दबाव बनाया जा सकता है. वे मुख्य मुद्दे से भी भटक सकते हैं. इस दिशा में पीएम ने पहल भी कर दी. अब विपक्षी दल मोदी सरकार द्वारा उठाए गए मुद्दों पर प्रतिक्रिया देने में लगी हुई है. यूसीसी का मुद्दा सीधे-सीधे धार्मिक भावना से जुड़ा है. भाजपा के लिए यह विषय मुफीद रहा है. ऐसा लगता है कि भाजपा ने एक 'चाल' चली और विपक्षी दल उनके द्वारा बनाए गए 'ट्रैप' में 'फंस' गई. हालांकि, आम चुनाव में अभी वक्त है और किसी भी मुद्दे को अभी अंतिम विषय नहीं माना जा सकता है. विपक्षी दलों के कई नेताओं ने कहा भी है कि मोदी सरकार ध्यान भटकाने के लिए यूसीसी का मुद्दा उछाल रही है.
इसलिए अभी सब कोई यह जानना चाहता है कि अगर सरकार यूसीसी पर कोई बिल लेकर आती है, तो क्या इसे पारित करवाया जा सकता है या नहीं ? क्या सरकार के पास लोकसभा के साथ-साथ राज्यसभा में भी बहुमत है ? राज्यसभा में सरकार किस तरह से गणित बिठा सकती है ? आइए इस पर एक नजर डालते हैं.
राज्यसभा में अभी क्या है स्थिति - अभी इस सदन में कुल 237 सदस्य हैं. इसका मतलब है कि आठ सीट खाली है. इन आठ में से दो ऐसी सीटें हैं, जिन्हें मनोनीत कर भरा जाना है. अगर सरकार अपने किसी भी बिल को पारित कराना चाहती है, तो उसे 119 मत चाहिए. भारतीय जनता पार्टी के 92 सांसद हैं. यदि भाजपा 27 सांसदों का अतिरिक्त जुगाड़ कर लेती है, तो वह बिल पारित करवाने की स्थिति में आ जाएगी.
पर, सवाल ये है कि 27 सीटें कहां से आएंगी. यहीं से राजनीतिक नफा-नुकसान का गेम शुरू होता है. आइए पहले उन पार्टियों पर नजर डालते हैं, जिनका रवैया भाजपा के साथ सहयोगात्मक रहा है. असम गण परिषद, एनपीपी, एसडीएफ, पीएमके, टीएमसीएम, आरपीआई और एमएनएफ के पास एक-एक सीट है. इनकी कुल संख्या सात होती है. चार सांसद एआईएडीएमके के हैं. अब हो गए कुल 11 सांसद. वैसे, ये सभी दल एनडीके के हैं. पांच मनोनीत और एक निर्दलीय सांसद को मिला दें, तो यह संख्या बढ़कर 17 हो जाती है. अभी भी 10 सीटों की कमी रह जाती है.
24 जुलाई को 10 सीटों पर राज्यसभा का चुनाव होना है. इनमें से भाजपा को गुजरात से तीन तथा प.बंगाल और गोवा से एक-एक सीट मिलेगी. अगर इन्हें भी जोड़ दें, तो भी पांच सीटों की कमी रह जाती है.
इनका रूख अभी तक स्पष्ट नहीं- आम आदमी पार्टी के 10, बीजू जनता दल के नौ, वाईएसआरसीपी के नौ और बीआरएस के सात सांसद हैं. आप ने तो यूसीसी का समर्थन भी कर दिया है. पर सदन में समर्थन करेगी, कहना मुश्किल है, खासकर तब जबकि वह दिल्ली में ट्रांसफर और पोस्टिंग पर लाए गए अध्यादेश का विरोध कर रही है. वह कांग्रेस पर निर्भर है और कांग्रेस ने इस पर गोलमोल जवाब दिया है. कांग्रेस की दिल्ली ईकाई केजरीवाल के खिलाफ है. जहां तक बीजू जनता दल का सवाल है, भाजपा कुछ हद तक उन पर भरोसा कर सकती है. पर अभी तक इन पार्टियों ने अपनी स्थिति साफ नहीं की है. बहुत कुछ उनकी राजनीतिक परिस्थिति पर भी निर्भर करेगा. वैसे, यह भी जानना जरूरी है कि इनमें से कौन-सी ऐसी पार्टियां हैं, जो अल्पसंख्यकों को नाराज करना चाहेंगी. जवाब तो ना ही होगा. 17 जुलाई से मानसून सत्र की शुरुआत होने जा रही है. बहुत कुछ इस दौरान स्पष्ट हो सकता है.
विपक्षी दलों की क्या है स्थिति - कांग्रेस के पास 31, टीएमसी के पास 12, डीएमके के पास 10, वाम दलों के पास सात, जेडीयू के पास पांच, आरजेडी के पास छह, एनसीपी के पास चार, समाजवादी पार्टी के पास तीन, शिवसेना उद्धव के पास तीन, झारखंड मुक्ति मोर्चा के पास तीन, बहुजन समाज पार्टी के पास एक, बीआरएस के पास सात और आठ निर्दलीय भाजपा के विरोध में हैं. इनकी कुल संख्या 110 है.
अगर संख्या के लिहाज से देखें, तो विपक्षी दल किसी भी तरीके से वाईएसआरसीपी या फिर बीजद को अपनी ओर मिला लें, तो सरकार का बिल गिर जाएगा. पर राजनीति है, और राजनीति में गणित से ज्यादा कैमिस्ट्री का महत्व होता है. इन दोनों दलों के पास कुल 18 सांसद हैं. अगर इनका इतिहास देखें, तो इन दोनों ने मोदी सरकार के महत्वपूर्ण बिल तीन तलाक और अनुच्छेद 370 पर साथ दिया था. पर, यूसीसी का बिल कुछ अलग है. यह धार्मिक भावना से जुड़ा है.
क्या है यूसीसी- यूनिफॉर्म सिविल कोड. यानी देशभर में रहने वाले सभी लोगों के लिए समान कानून. अब अगर कोई भी व्यक्ति किसी भी जाति या धर्म का हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा. तलाक हो या विवाह, अगर अपराध एक जैसे होंगे, तो सजा भी एक जैसी मिलेगी. अभी तलाक, विवाह, गोद लेने के नियम और संपत्ति विरासत पर धर्म के हिसाब से कानून है. मुस्लिम समाज में शरिया के आधार पर यह तय किया जाता है. उन्होंने मुस्लिम पर्सनल लॉ बना रखे हैं. हालांकि, हमारे संविधान के अनुच्छेद 44 में उल्लिखित है कि सभी नागरिकों के लिए समान कानून हो. क्रिमिनल मामलों में एक जैसे कानून लागू होते हैं, लेकिन सिविल मामलों में अलग-अलग कानून हैं. इसी दोहरापन को समाप्त करने को लेकर बात चल रही है.
भारत के इस राज्य में लागू है यूसीसी- गोवा में पहले से ही यूसीसी लागू है. यहां पर तलाक, विवाह और संपत्ति वारिस को लेकर समान कानून है.
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