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समान नागरिक संहिता : मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने बताया असंवैधानिक, कहा- लागू करने की न सोचे सरकार

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने समान नागरिक संहिता को संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ करार देते हुए सरकार से कहा है कि वह इस संहिता को किसी भी सूरत में लागू नहीं करे. बोर्ड ने इससे पहले जुलाई महीने में भी समान नागरिक संहिता की तीखी आलोचना की थी. दिलचस्प है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने एक टिप्पणी में कहा था कि अलग-अलग 'पर्सनल लॉ' के कारण भारतीय युवाओं को विवाह और तलाक के संबंध में समस्याओं से जूझने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता.

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड

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Published : Nov 21, 2021, 6:53 PM IST

कानपुर (उप्र) : ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने एक प्रस्ताव में समान नागरिक संहिता को संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ करार दिया है. बोर्ड ने सरकार से यह भी कहा है कि वह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से तथा आंशिक या पूर्ण रूप से ऐसी कोई संहिता लागू न करे. एआईएमपीएलबी ने अपने 27वें सार्वजनिक जलसे के दूसरे और अंतिम दिन समान नागरिक संहिता पर प्रस्ताव पारित किया.

रविवार को बोर्ड ने प्रस्ताव में कहा कि हिंदुस्तान में अनेक धर्मों और रवायत के मानने वाले लोग रहते हैं. ऐसे में समान नागरिक संहिता इस देश के लिए कतई उपयुक्त नहीं है. ऐसी संहिता लागू करने की दिशा में उठाया जाने वाला कोई भी कदम हमारे संवैधानिक अधिकारों का हनन होगा.

बोर्ड ने हाल में पैगंबर मोहम्मद साहब के प्रति अपमानजनक टिप्पणियां करने वालों के खिलाफ सरकार द्वारा कोई कार्रवाई नहीं किए जाने पर असंतोष जाहिर करते हुए भविष्य में ऐसे लोगों पर प्रभावी कार्रवाई के लिए एक कानून बनाने की मांग की है.

प्रस्ताव में कहा गया है इस्लाम सभी धर्मों और उनके आराध्यों का आदर करता है, मगर हाल में पैगंबर मोहम्मद साहब के खिलाफ कुछ आपत्तिजनक टिप्पणियां की गईं लेकिन उससे भी ज्यादा अफसोस की बात यह है कि सरकार ने ऐसा करने वालों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की.

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बोर्ड ने सरकार तथा न्यायपालिका से आग्रह किया है कि वे धार्मिक कानूनों और पांडुलिपियों का अपने हिसाब से व्याख्या करने से परहेज करें.

बोर्ड ने दहेज हत्या समेत महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों के साथ-साथ विवाह में उनकी सहमति नहीं लिए जाने के चलन पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए सरकार से महिलाओं की सुरक्षा के लिए प्रभावी कानून बनाने और उनका क्रियान्वयन सुनिश्चित करने का आग्रह किया है.

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कानपुर में बोर्ड के 27वें सालाना जलसे के पहले दिन शनिवार को मौलाना राबे हसनी नदवी को एक बार फिर बोर्ड का अध्यक्ष चुन लिया गया. इसके अलावा मौलाना वली रहमानी के निधन से रिक्त हुए पद पर मौलाना खालिद सैफुल्ला और मौलाना कल्बे सादिक के इंतकाल की वजह से खाली हुए ओहदे पर मौलाना अरशद मदनी को नियुक्त किया गया है.

गौरतलब है कि दिल्ली हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने सात जुलाई, 2021 के अपने आदेश में कहा कि आधुनिक भारतीय समाज धीरे-धीरे समरूप होता जा रहा है. धर्म, समुदाय और जाति के पारंपरिक अवरोध अब खत्म हो रहे हैं, और इस प्रकार समान नागरिक संहिता अब उम्मीद भर नहीं रहनी चाहिए.

आदेश में कहा गया, 'भारत के विभिन्न समुदायों, जनजातियों, जातियों या धर्मों के युवाओं को जो अपने विवाह को संपन्न करते हैं, उन्हें विभिन्न पर्सनल लॉ, विशेषकर विवाह और तलाक के संबंध में टकराव के कारण उत्पन्न होने वाले मुद्दों से जूझने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए.'

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वर्ष 1985 के ऐतिहासिक शाह बानो मामले समेत यूसीसी की आवश्यकता पर सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का जिक्र करते हुए, हाईकोर्ट ने कहा, 'संविधान के अनुच्छेद 44 में उम्मीद जताई गई है कि राज्य अपने नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता को हकीकत में बदलेगा. यह महज एक उम्मीद बनकर नहीं रहनी चाहिए.'

बता दें कि शाह बानो मामले में, शीर्ष अदालत ने कहा था कि समान नागरिक संहिता परस्पर विरोधी विचारधारा वाले कानूनों के प्रति असमान निष्ठा को हटाकर राष्ट्रीय एकता के उद्देश्य को पाने में मदद करेगी. इस फैसले में यह भी कहा गया था कि सरकार पर देश के नागरिकों को समान नागरिक संहिता के लक्ष्य तक पहुंचाने का कर्तव्य है.

(पीटीआई-भाषा)

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