नई दिल्ली: यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता, जो आजकल राजनीतिक सियासत में चर्चा का मुख्य विषय बना हुआ है और देश की सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के एजेंडे में भी सबसे ऊपर है मगर इसकी राह में कई रोड़े हैं, जिनमें खासतौर पर आदिवासी समुदायों और पूर्वोत्तर के राज्यों में है.
वैसे तो कांग्रेस ने अभी तक इसपर अपनी स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट नहीं की है, वहीं मुस्लिम संगठन और राजनीतिक पार्टियां इसका विरोध कर रहीं हैं. मगर पीएम मोदी के द्वारा भोपाल की रैली में ये साफ तौर पर कहे जाने के बाद कि देश में एक कानून लागू करने का सुप्रीम कोर्ट का दबाव उनपर है. बीजेपी ने अपने राजनीतिक एजेंडे तय कर लिए हैं और कांग्रेस के लिए ये स्थिति कुछ ऐसी है कि ना तो वो विरोध कर पा रही है और ना ही समर्थन. वहीं कुछ विरोधी पार्टियां जिनमें आम आदमी पार्टी ने समान नागरिक संहिता पर खुलकर समर्थन का ऐलान कर दिया है और इस मुद्दे पर वो मोदी सरकार के साथ कदम-ताल करती नजर आ रही है. वहीं शिवसेना उद्धव गुट ने भी इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है, जबकि डीएमके पुरजोर विरोध कर रही है. इसी तरह जेडीयू और राजद ने भी विरोध करते हुए इसे महंगाई और बेरोजगारी से ध्यान भटकाने का मोदी सरकार का एजेंडा तक बता दिया. वहीं एमआइएम जैसी पार्टियां इस मुद्दे पर पहले से ही राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विरोध जता रहीं हैं.
ये तो थी विरोधियों की बात मगर मोदी सरकार के सामने यूसीसी के मुद्दे आर समर्थन जुटाना कुछ अपने ही गठबंधन की पार्टियों से मुश्किल हो रहा है और मुख्य तौर पर वो पार्टियां पूर्वोत्तर की हैं, जो भाजपा गठबंधन में सरकार चला रही है. उदाहरण के तौर पर मिजोरम में एमएनएफ जो बीजेपी की सहयोगी पार्टी है, वो पहले ही इस मुद्दे पर अपनी अलग राय बता चुकी है और पीछे हट चुकी है. कुछ ही महीनों में इस राज्य में चुनाव है और पार्टी एमएनफ के साथ मिलकर चुनाव दोबारा भी लड़ना चाहती है. ऐसे में पार्टी अपने सहयोगी को कैसे मनाएं, इस कश्मकश में हैं. विरोध यहाँ तक कि वहां विधानसभा में साल के शुरुआत में ही सर्वसम्मति से यूसीसी पास नहीं करने का प्रस्ताव पारित कर दिया गया.