नई दिल्ली :संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) द्वारा मंगलवार को (15 मार्च को ) 'इस्लामोफोबिया (Resolution on Islamophobia) से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस' के रूप में मनाए जाने के प्रस्ताव को स्वीकार किए जाने के बीच भारत ने इस कदम को लेकर चिंता जतायी. इसपर भारत ने वैश्विक संगठनों से अन्य धर्मों के खिलाफ किए जा रहे अत्याचारों के खिलाफ भी आवाज उठाने का आग्रह किया.
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टी. एस. तिरुमूर्ति ने संयुक्त राष्ट्र में 'इस्लामोफोबिया के अंतर्राष्ट्रीय दिवस' पर वोट से पहले कहा, 'भारत को गर्व है कि बहुलवाद हमारे अस्तित्व के मूल में है और हम सभी धर्म और आस्था में समान सुरक्षा और प्रचार में दृढ़ता से विश्वास करते हैं. प्रस्ताव को ओआईसी के 57 सदस्यों और चीन और रूस सहित आठ अन्य देशों का समर्थन प्राप्त हुआ.
किसी भी धर्म को लक्षित करने वाले सभी कृत्यों की निंदा करते हुए, भारतीय दूत ने अपने बयान में रेखांकित किया कि 'हम यहूदी-विरोधी, क्रिश्चयनफोबिया या इस्लामोफोबिया से प्रेरित सभी कृत्यों की निंदा करते हैं.' हालांकि, ऐसे फ़ोबिया केवल अब्राहमिक धर्मों तक ही सीमित नहीं हैं. वास्तव में इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं कि इस तरह के धार्मिक भय ने गैर-अब्राहम धर्मों के अनुयायियों को भी प्रभावित किया है.'
वैश्विक संगठनों से इस्लामोफोबिया के मुद्दे पर अपने दृष्टिकोण को व्यापक बनाने का आग्रह करते हुए भारतीय दूत ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि 'बहुलवाद' शब्द का प्रस्ताव में कोई उल्लेख नहीं है और प्रायोजकों ने हमारे संशोधनों को इसमें शामिल करने के लिए उपयुक्त नहीं पाया है. भारत के अलावा, फ्रांस और यूरोपीय संघ ने भी इस प्रस्ताव पर आपत्ति जताते हुए कहा कि धार्मिक असहिष्णुता पूरी दुनिया में व्याप्त है, लेकिन प्रस्ताव में केवल इस्लाम को शामिल किया गया और दूसरों को बाहर रखा गया.
अन्य धर्मों के खिलाफ किए गए अत्याचारों को लेकर वैश्विक संगठनों को भारतीय दूत ने उन कृत्यों को याद दिलाया. इसमें उन्होंने 'बामयान बुद्ध की तोड़फोड़, गुरुद्वारा परिसर का उल्लंघन, गुरुद्वारे में सिख तीर्थयात्रियों का नरसंहार, मंदिरों पर हमला, मंदिरों में मूर्तियों को तोड़ने का महिमामंडन जैसे उदाहरणों का हवाला दिया. बयान में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि गैर-अब्राहम धर्मों के खिलाफ 'धार्मिक भय के समकालीन रूपों' में वृद्धि हुई है.