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उमर खालिद का अमरावती में दिया गया भाषण आतंकी गतिविधि नहीं- हाईकोर्ट - उमर खालिद की जमानत याचिका पर सुनवाई

सुनवाई के दौरान उमर खालिद की ओर से पेश वकील त्रिदिप पेस ने जब अमरावती के भाषण को उद्धृत किया तब कोर्ट ने कहा कि उमर खालिद का अमरावती में दिया गया बयान मानहानि वाले हो सकते हैं, उस पर दूसरे आरोप बन सकते हैं, लेकिन वे आतंकी गतिविधि नहीं हो सकते हैं. कोर्ट ने कहा कि वो अभियोजन पक्ष को अपने पक्ष में दलील रखने का पूरा मौका देगा. हाईकोर्ट ने पहले कहा था कि उमर खालिद का अमरावती में दिए गए भाषण को जायज नहीं ठहराया जा सकता है और उसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है.

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Published : May 30, 2022, 10:33 PM IST

नई दिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि हिंसा की साजिश रचने के आरोपी उमर खालिद का फरवरी 2020 को अमरावती में दिया गया भाषण दुर्भावनापूर्ण था, लेकिन वो आतंकी कार्रवाई नहीं था. जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल की अध्यक्षता वाली बेंच ने उमर खालिद की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान ये टिप्पणी की. जमानत याचिका पर अगली सुनवाई चार जुलाई को होगी.


सुनवाई के दौरान उमर खालिद की ओर से पेश वकील त्रिदिप पेस ने जब अमरावती के भाषण को उद्धृत किया तब कोर्ट ने कहा कि उमर खालिद का अमरावती में दिया गया बयान मानहानि वाले हो सकते हैं, उस पर दूसरे आरोप बन सकते हैं, लेकिन वे आतंकी गतिविधि नहीं हो सकते हैं. कोर्ट ने कहा कि वो अभियोजन पक्ष को अपने पक्ष में दलील रखने का पूरा मौका देगा. हाईकोर्ट ने पहले कहा था कि उमर खालिद का अमरावती में दिए गए भाषण को जायज नहीं ठहराया जा सकता है और उसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है.

सुनवाई के दौरान उमर खालिद की ओर से पेश एक और वकील सान्या कुमार ने कहा कि कुछ संरक्षित गवाहों के बयान पढ़कर कोर्ट को सुनाया और कहा कि किसी ने भी सीलमपुर में हुई बैठक को गुप्त बैठक नहीं कहा जैसा कि अभियोजन पक्ष ने कहा है. उन्होंने कहा कि इस मामले की सह-आरोपी नताशा नरवाल के कॉल डिटेल रिकॉर्ड के मुताबिक वो उस दिन सीलमपुर में नहीं थी. पहले की सुनवाई के दौरान उमर खालिद की ओर से कहा गया था कि उसके खिलाफ दाखिल चार्जशीट आधारहीन है और उसे केवल एक संरक्षित गवाह के झूठे बयान पर फंसाया गया है. 23 मई को पेस ने कहा था कि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले भारत का हिस्सा बनना चाहते हैं, वे भारत की संप्रभुता के लिए कोई खतरा नहीं है. पेस ने कहा था कि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन करने का मुख्य मकसद देश की एकता और अखंडता की रक्षा था. कोर्ट ने पेस से पूछा था कि क्या प्रदर्शनकारियों ने देश के नागरिकों के मन में असुरक्षा की भावना भर दी तो पेस ने कहा था कि हर चीज को आतंकी गतिविधि की तरह बताने की दलील से कोर्ट को बचना चाहिए.



सुनवाई के दौरान जस्टिस रजनीश भटनागर ने पेस से प्रधानमंत्री के ‘हिंदुस्तान में सब चंगा नहीं, हिंदुस्तान में सब नंगा सी’ संबंधी खालिद के भाषण पर पूछा, तब पेस ने कहा कि ये एक रूपक है जिसका मतलब है कि सच्चाई कुछ और है जो छिपाया जा रही है. तब जस्टिस रजनीश भटनागर ने कहा कि प्रधानमंत्री के लिए कुछ दूसरे शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता था. तब पेस ने कहा कि भाषण 17 फरवरी 2020 का था, जिसमें उमर ने अपने मत प्रकट किये. इसका मतलब ये नहीं है कि ये एक अपराध है. इसे आतंक से कैसे जोड़ा जा सकता है. तब जस्टिस रजनीश भटनागर ने कहा कि सब नंगा सी तो वैसे ही है जैसे महात्मा गांधी के बारे में महारानी ने कहा था। तब पेस ने कहा कि लोकतंत्र में सरकार से अपना विरोध दर्ज कराने के लिए अलग-अलग तरीके अपनाए जाते हैं।

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