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उमर खालिद को जेल में बीते एक साल, इन्होंने की न्यायिक आयोग के गठन की मांग

जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद को 13 सितंबर को दिल्ली दंगों की साजिश के मामले में कथित भूमिका के लिए जेल में एक साल पूरा हो रहा है. नागरिक समाज के कार्यकर्ताओं के एक समूह ने कहा कि उनकी गिरफ्तारी संदिग्ध है क्योंकि जिन सबूतों पर गिरफ्तारी की गई, उसे एक भाजपा नेता द्वारा ट्विट किया गया था.

Delhi riots
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Published : Sep 13, 2021, 8:52 PM IST

नई दिल्ली :उमर खालिद की गिरफ्तारी व जेल में एक साल बीतने पर नागरिक समाज के कार्यकर्ताओं ने दिल्ली में एक बैठक का आयोजन किया. बैठक में मौजूद कार्यकर्ताओं ने कहा कि धर्मनिरपेक्ष विरोध के पैटर्न का विरोध सांप्रदायिक आरोप-पत्रों द्वारा किया जा रहा है.

संदिग्ध सबूतों का इस्तेमाल उमर खालिद और कई अन्य लोगों की स्वतंत्रता को खत्म करने के लिए किया गया है. प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि उमर खालिद की गिरफ्तारी और ढाई साल के सीएए विरोध प्रदर्शनों को एक साल हो गया है. वे विरोध प्रदर्शन अनुकरणीय थे और इसमें कोई राजनीतिक भागीदारी नहीं थी. विरोध उस कानून के लिए किया गया जिसे संविधान के अनुसार नहीं बनाया गया था.

सुप्रीम कोर्ट के वकील ने कहा कि उमर खालिद पर कठोर यूएपीए के तहत आरोप लगाया गया है. चार्जशीट एक भाषण पर आधारित है जो आरोपी ने दिल्ली दंगों से एक महीने पहले 17 जनवरी को अमरावती (महाराष्ट्र) में दिया था.

आयोजकों ने वीडियो सबूत (उमर का अमरावती भाषण) दिखाया और दावा किया कि भाषण में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसमें देशद्रोह या हिंसा की जांच हो. यह वह भाषण था जिसे भाजपा आईटी सेल द्वारा उमर को फंसाने के लिए दुरुपयोग किया गया.

फराह नकवी ने कहा कि हालिया जमानत सुनवाई के दौरान जब दिल्ली पुलिस से फुटेज के स्रोत और प्रामाणिकता के बारे में पूछा गया तो अदालत को बताया गया कि यह मीडिया से प्राप्त किया गया था. जब मीडिया संस्थानों से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि उन्होंने अमित मालवीय से लिया है जिससे अनाधिकृत तौर पर छेड़छाड़ की गई थी.

राज्यसभा सांसद मनोज झा ने कहा कि वे संसद में नागरिकता संशोधन अधिनियम और तीन कृषि कानून पारित होने के बाद निराश महसूस करते हैं, लेकिन कानूनों के खिलाफ आम लोगों के विरोध ने उम्मीद जगाई क्योंकि राजनेता कार्रवाई करने में विफल रहे और सरकार किसी की नहीं सुन रही.

दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग (डीएमसी) के पूर्व प्रमुख जफरुल इस्लाम खान ने इस बात पर प्रकाश डाला कि जब वे डीएमसी के अध्यक्ष थे तो उन्होंने एक समिति बनाई थी. लेकिन पुलिस ने इसकी कार्यवाही में बिल्कुल भी सहयोग नहीं किया.

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फिर भी रिपोर्ट आई लेकिन पुलिस यह मांग करते हुए अदालत गई कि इस रिपोर्ट को किसी भी अदालत में नहीं रखा जाना चाहिए. अगर उनके पास छिपाने के लिए कुछ नहीं है तो वे इस रिपोर्ट से क्यों डरते हैं? हमें एक न्यायिक आयोग की आवश्यकता है.

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