नई दिल्ली :यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध के बीच भारतीयों को वापस लाने और भारत के रूख को लेकर विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने राज्य सभा में बयान दिया. यूक्रेन के युद्धग्रस्त इलाकों से भारतीय छात्रों को निकालने के संबंध में विदेश मंत्री ने कहा, इवैक्यूएशन ऐसे समय में किया गया था जब सैन्य कार्रवाई, हवाई हमले और गोलाबारी, चल रही थी. एक बड़े देश में युद्धग्रस्त हालात थे.
राज्य सभा के बाद लोक सभा में बयान देते हुए डॉ जयशंकर ने बताया कि प्रधानमंत्री मोदी ने चार केंद्रीय मंत्रियों को ऑपरेशन गंगा के तहत भारतीय नागरिकों की सुरक्षित स्वदेश वापसी के नियुक्त किया था. उन्होंने बताया कि इनमें केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, केंद्रीय शहरी विकास मंत्री डॉ हरदीप सिंह पुरी, केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू और केंद्रीय राज्य मंत्री जनरल (रिटायर्ड) वीके सिंह शामिल रहे. लोक सभा में विदेश मंत्री ने कहा कि पीएम मोदी ने यूक्रेन, रूस और रोमानिया, हंगरी और पोलैंड के शीर्ष नेतृत्व से भी लगातार संपर्क बनाए रखा. उन्होंने कहा कि भारतीय दूतावास पोलैंड में स्थानांतरित किया गया है.
विदेश मंत्री डॉ जयशंकर ने कहा कि पीएम के व्यक्तिगत हस्तक्षेप से भारतीयों की सुरक्षित वापसी हुई. उन्होंने कहा कि यूक्रेन से बाहर निकलने के दौरान कभी-कभी 1000 किलोमीटर से अधिक की दूरी तय करनी पड़ी. विदेश मंत्री ने मानवीय संकट की गंभीरता बताते हुए कहा, सीमाओं पर बनाए गए चेकप्वाइंट से बाहर निकलने की जद्दोजहद कर रहे शरणार्थियों की अनुमानित संख्या करीब 26 लाख थी.
उन्होंने कहा कि यूक्रेन से भारतीयों की सुरक्षित स्वदेश वापसी के पूरे ऑपरेशन में सरकारी दृष्टिकोण शामिल था. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री स्वयं लगभग दैनिक आधार पर समीक्षा बैठकों की अध्यक्षता करते थे. बकौल विदेश मंत्री जयशंकर, विदेश मंत्रालय में भारतीयों की सुरक्षा के लिए 24 x 7 आधार पर कार्यों की निगरानी की गई. उन्होंने कहा कि विदेश मंत्रालय को नागरिक उड्डयन मंत्रालय (MoCA), रक्षा मंत्रालय, राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (NDRF), भारतीय वायुसेना (IAF), प्राइवेट एयरलाइंस सहित सभी संबंधित मंत्रालयों और संगठनों से उत्कृष्ट समर्थन मिला.
विदेश मंत्री ने कहा, यह ध्यान देने योग्य है कि शत्रुता (hostilities) के कारण भारतीय समुदाय के 20,000 से अधिक लोग सीधे खतरे में पड़ गए. उन्होंने कहा, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में भारत जब इस उभरती स्थिति के वैश्विक विचार-विमर्श में भाग ले रहा था, तब भी हमारे नागरिकों की रक्षा करना और यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण चुनौती थी कि उन्हें स्वदेश वापसी के रास्ते में किसी तरह का नुकसान नहीं हो.