नई दिल्ली : क्वाड की बैठक में भारत पर जबरदस्त दबाव रहा. यूक्रेन के खिलाफ रूस द्वारा छेड़े गए युद्ध को लेकर भारत पर अमेरिकी गुट में शामिल होने का दबाव बनाया गया. दूसरी ओर रूस और चीन का संयुक्त सैन्य अभ्यास भी इस दौरान जारी था. उनके करीब आठ युद्धक विमानों ने संयुक्त सैन्य अभ्यास में हिस्सा लिया. यह अभ्यास सी-ऑफ-जापान में किया गया.
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अलबनीस, दोनों ने अपने शुरुआती वक्तव्यों में यूक्रेन के खिलाफ रूसी सैन्य कार्रवाई का जिक्र नहीं किया. इसके ठीक उलट अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और जापान के पीएम किशिदा फुमो ने बहुत ही तीखा वार किया. यह वक्तव्य अपने आप में क्वाड के अंदर विरोधाभास को दिखा रहा था. अमेरिकी वरिष्ठ सैन्य अधिकारी ने स्वीकार किया, 'क्वाड के सभी सदस्यों के बीच कुछ मतभेद अवश्य हैं. अब सवाल ये है कि ये क्यों हुए, कैसे इसे खत्म किया जाए और किस तरह से, यह महत्वपूर्ण है.'
क्वाड की बैठक में शामिल नेता बाइडेन ने बहुत ही चालाकी से क्वाड की बैठक में यूक्रेन संघर्ष की चर्चा की. उन्होंने कहा, 'जब तक रूस युद्ध जारी रखता है, तब तक हम यानी क्वाड, सहभागी बने रहेंगे और वैश्विक जवाब का नेतृत्व करते रहेंगे.' रूस पर काफी तीखा हमला करते हुए बाइडेन ने कहा, 'हम साझा इतिहास के काले अध्याय से गुजर रहे हैं. रूस का यूक्रेन के खिलाफ छेड़ा गया एकतरफा और नृशंस युद्ध ने मानवीय त्रासदी को पैदा कर दिया है. यह सिर्फ यूरोप का विषय नहीं रह गया है. यह एक वैश्विक मुद्दा है. और पूरी दुनिया को इससे निपटना है, और उसके लिए हम हैं.'
उम्मीद के अनुरूप जापान के पीएम किशिदा फुमो ने भी अमेरिकी सोच को ही दोहराया. किशिदा ने कहा, 'एक चिंतित करने वाली घटना ने पूरी दुनिया की नियम आधारित व्यवस्था को हिलाकर रख दिया है. हमें ऐसी किसी घटना को इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में नहीं होने देना चाहिए, कभी भी नहीं. हम सबों के लिए जरूरी है कि हम एक रहें. और पूरी दुनिया को अपनी एकता की मिसाल दिखाएं. हमें अपने साझा हितों और साझा दृष्टिकोण के प्रति वचनबद्ध रहना चाहिए.'
यहां आप दोनों नेताओं का बयान देखिए, तो पता चल जाएगा कि वे किस तरह से भारत पर दबाव बना रहे हैं. एक दिन पहले यानी सोमवार को अमेरिका ने चीन के किसी भी आक्रमण के खिलाफ ताइवान की मदद करने वाला बयान जारी किया था. बाइडेन ने एक सवाल के जवाब में कहा कि अगर चीन ने सैन्य तरीके से ताइवान पर हमला किया, तो वह उसका जवाब देगा. बाइडेन ने कहा, 'हां, यह हमारा वादा है, इसे हमने दिया है. कोई यह सोचता है कि वह बलपूर्वक ताइवान को हासिल कर लेगा, तो यह उचित नहीं है. यह पूरे क्षेत्र में उथलपुथल मचा देगा. जिस तरह से यूक्रेन में हुआ, यहां भी ऐसा ही होगा.'
आप देखिए कि अमेरिका ने किस तरह से अपने स्टैंड को बदला है. पारंपरिक रणनीतिक से हटकर बयान दिया है. अमेरिका अब चक 'वन चीन नीति' का समर्थन करता रहा है. उनके बयानों में अब तक 'रणनीतिक दुविधा' की स्थिति भी बरकरार रहती थी. आपको बता दें कि चीन ताइवान को चीन का ही अभिन्न हिस्सा मानता है.
भारत रूस और यूक्रेन को लेकर एक 'स्विंग कंट्री' की तरह व्यवहार करता रहा है. परिणामतः भारत अमेरिकी नेतृत्व वाले नाटो और रूस-चीन धुरी वाले देशों के बीच फंसा हुआ दिख रहा है. दोनों ही पक्ष भारत का समर्थन हासिल करना चाहते हैं. किसी का पक्ष लेने के बजाए, भारत रणनीतिक स्वायतत्ता का समर्थन करता रहा है. वह दोनों ही देशों से शांति की अपील कर चुका है. क्योंकि भारत दुनिया की दूसरे सबसे बड़ी आबादी वाला देश है, साथ ही यह बहुत बड़ा बाजार भी है. आईएमएफ ने हाल ही में भारत को 2022 में दुनिया की सबसे तेजी से विकास करने वाली इकोनोमी बताया है. विकास दर आठ फीसदी तक का अनुमान लगाया गया है.
फिर भी टोक्यो में समुद्री डोमेन जागरूकता (आईपीएमडीए) के लिए इंडो-पैसिफिक पार्टनरशिप जैसे कुछ लाभ पहले ही हासिल किए जा चुके हैं. इस बहुउद्देश्यीय संस्था से भारत कई लाभ ले सकता है. समुद्री डोमेन में फायदा मिलेगा. हिंद महासागर और इंडे पैसिफिक को जोड़ने वाला यह क्षेत्र है. आईपीएमडीए सदस्य देशों को यह जानने की क्षमता देगा कि देशों के क्षेत्रीय जल में और उनके विशेष आर्थिक क्षेत्रों में क्या हो रहा है. यह सोलोमन द्वीप समूह के साथ चीन द्वारा एक समझौते पर हस्ताक्षर करने की पृष्ठभूमि में काफी अहम है, जहां पर कई घटनाएं हुई हैं. मसलन, हाई-टेक पीपुल्स लिबरेशन आर्मी और नेवी (पीएलएएन) जासूसी जहाजों और पनडुब्बियों को ऑस्ट्रेलिया और अन्य जगहों पर तैनाती की गई है.
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