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आस्था के नाम पर अंधविश्वास ! एमपी के उज्जैन में गांव की खुशहाली के लिए इंसानों के ऊपर से गुजरता है सैकड़ों गायों का झुंड

मध्य प्रदेश में उज्जैन के बड़नगर तहसील के ग्राम भिडावद में दीपावली के बाद पड़वा के दिन गोवर्धन पूजा पर एक अनूठी परंपरा का निर्वहन कई वर्षों से होता आ रहा है. प्रदेश की उन्नति और मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु प्रत्येक वर्ष इस परंपरा में भाग लेते हैं, इस परंपरा में श्रद्धालु 5 दिन का उपवास रखकर मंदिर में भजन-कीर्तन करते हैं. आखरी दिन श्रद्धालु जमीन पर लेटते हैं और एक साथ सैकड़ों दौड़ती गायों को श्रद्धालुओं के ऊपर से निकाला जाता है. (Ujjain Unique Tradition on Govardhan Puja) (Govardhan Puja 2022) (Ujjain 300 year old tradition) (Cows runs over devotees)

Ujjain Unique Tradition
उज्जैन में गांव की खुशहाली के लिए इंसानों के ऊपर से गुजरता है सैकड़ों गायों का झुंड

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Published : Oct 26, 2022, 7:58 PM IST

उज्जैन।हमारे देश ने आज वैज्ञानिक तरक्की के जरिये भले ही दुनिया भर में अपनी मजबूत पहचान बना ली है. लेकिन इक्कीसवी सदी में भारत में परंपरा और आस्था का बोलबाला है. आज के युग में भी उज्जैन (Ujjain) में आस्था के नाम पर अंधविश्वास का खेल चल रहा है. यहां लोग खुद को गायों के पैर तले रौंदवाते हैं और वो भी खुशी खुशी. जी हां आधुनिक जमाने में भी उज्जैन के बड़नगर में वर्षों पुरानी खतरनाक परंपरा निभाई जा रही है. दीपावली के बाद गोवर्धन पूजा के दिन मौत का ये खेल होता है.

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आज तक किसी को नहीं हुई कोई हानि:दरअसल गांव वाले मान बैठे हैं कि गाय के पैरों के नीचे आने से साल भर घर में समृद्धि और खुशहाली आती है. बडनगर तहसील के ग्राम भिडावद में आज बुधवार को फिर अनूठी परंपरा देखने को मिली, गांव में सुबह गाय का पूजन किया गया. पूजन के बाद लोग जमीन पर लेटे और उनके ऊपर से गाये निकाली गईं. ग्रामीणों का मानना है कि सालों से चली आ रही परंपरा के कारण आज तक किसी को कोई हानि नहीं पहुंची है.

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लोगों की जान के साथ खिलवाड़: मान्यता है कि ऐसा करने से मन्नते पूरी होती हैं और जिन लोगों की मन्नत पूरी हो जाती है वे ही ऐसा करते हैं. परम्परा के पीछे लोगों का मानना है की गाय में 33 कोटि के देवी देवताओं का वास रहता है और गाय के पैरो के नीचे आने से देवताओं का आशीर्वाद मिलता है. देखा जाए तो आस्था के नाम पर यहां लोगों की जान के साथ खिलवाड़ भी किया जाता हैं. प्रत्येक वर्ष दीपावली के बाद गोवर्धन पूजा के दिन मौत के खेल की यह अनूठी परंपरा निभाई जाती है.

अन्नकूट उत्सव के नाम से भी मनाया जाता है पर्व: मान्यता है कि जब भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलाधार वर्षा से बचने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उंगली पर उठाकर रखा और गोप-गोपिकाएं उसकी छाया में सुखपूर्वक रहे. सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा और हर वर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी, तभी से यह उत्सव अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा.

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