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2 साल की पाकिस्तानी मासूम का बेंगलुरु में हुआ बोन मैरो ट्रांसप्लांट - डॉ सुनील भाटी

पाकिस्तान की दो वर्षीय अमायरा सिकंदर खान का शहर के एक अस्पताल में सफलतापूर्वक अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण (बीएमटी) हुआ है. कराची के रहने वाले क्रिकेट कमेंटेटर सिकंदर बख्त की बेटी हाल ही में नारायण हेल्थ में बीएमटी की मदद से म्यूकोपॉलीसेकेराइडोसिस टाइप 1 (एमपीएस) से ठीक हो गई.

2 साल के पाकिस्तानी बच्चे का बेंगलुरु में हुआ बोन मैरो ट्रांसप्लांट
2 साल के पाकिस्तानी बच्चे का बेंगलुरु में हुआ बोन मैरो ट्रांसप्लांट

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Published : Oct 20, 2022, 7:07 AM IST

बेंगलुरू : पाकिस्तान की दो वर्षीय अमायरा सिकंदर खान का शहर के एक अस्पताल में सफलतापूर्वक अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण (बीएमटी) हुआ है. कराची के रहने वाले क्रिकेट कमेंटेटर सिकंदर बख्त की बेटी हाल ही में नारायण हेल्थ में बीएमटी की मदद से म्यूकोपॉलीसेकेराइडोसिस टाइप 1 (एमपीएस) से ठीक हो गई. हेल्थकेयर चेन की अध्यक्ष और संस्थापक देवी शेट्टी ने बुधवार को कहा कि म्यूकोपॉलीसेकेराइडोसिस एक दुर्लभ स्थिति है जिसमें आंखों और मस्तिष्क सहित कई अंगों के कामकाज को प्रभावित करने की क्षमता है. डॉक्टरों ने कहा कि अमायरा (2.6 वर्ष की आयु) को उसके पिता के अस्थि मज्जा का उपयोग करके बचाया गया.

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, डॉ. सुनील भट ने कहा कि म्यूकोपॉलीसेकेराइडोसिस एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर में एक किण्वक (एंजाइम) खत्म हो जाता है. उस एंजाइम की कमी की वजह से रोगी के शरीर में कई परिवर्तन होने लगते हैं, लीवर और स्पलीन बड़ा हो जाता है. हड्डियों में भी बदलाव देखने को मिलते हैं. दरअसल, प्लीहा, रक्त कोशिकाओं के स्तर को नियंत्रित करता है. इसमें मरीज की आंखें और मस्तिष्क समेत शरीर के कई दूसरे अंग काम करना बंद कर देते हैं.

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ऐसी दुर्लभ बिमारी वाले ज्यादातर बच्चे 19 वर्ष की उम्र के होने तक विकलांग हो जाते हैं, और उनमें से ज्यादातर को अपनी जान गंवानी पड़ती है. इसलिए, अस्थि मज्जा प्रतिरोपण इसके संभावित उपचार में से एक माना जाता है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, ऑन्कोलॉजी सर्विसेज और ऑन्कोलॉजी कॉलेजियम के वाइस चेयरमैन डॉ. सुनील भट ने कहा कि बीएमटी को चार महीने हो चुके हैं और जांच के बाद पता चला है कि मरीज अब सामान्य हो रहा है.

डॉक्टर ने बताया कि बच्ची की कोई भाई या बहन नहीं है, इसलिए डोनर के लिए कोशिश की गई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. बाद में पिता के बोन मैरो का इस्तेमाल किया गया. बच्ची की मां सदफ खान ने बताया कि अपनी बेटी की हालत को देखते हुए उन्होंने डॉ. भट से संपर्क किया था और बेंगलुरू में इलाज कराने का फैसला लिया. बच्ची जब 18 महीने की थी तब ट्रांसप्लांटेशन किया गया था. सदफ ने कहा, अपनी बच्ची को देखकर खुश हूं. मेरे पति को पाकिस्तान से बेंगलुरु जाने के लिए वीजा और अन्य औपचारिकताओं के लिए भारत सरकार से सहायता मिली थी.

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