उत्तर प्रदेश के जेलों की हकीकत- 20 सालों में मारे गए 20 जेलकर्मी - उत्तर प्रदेश की जेलों में बंद अपराधियों पर शिकंजा
उत्तर प्रदेश की जेलों में बंद अपराधियों पर शिकंजा कसना जेल कर्मियों को भारी पड़ रहा है. आंकड़े साफ बता रहे हैं कि जब-जब जेल के अधिकारियों और कर्मियों ने जेल में बंद अपराधियों पर लगाम लगाई है, तब-तब अपराधियों ने बड़ी वारदात को अंजाम दिया है. देखिए हमारी ये स्पेशल रिपोर्ट...
यूपी के जेलों की हकीकत
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Published : May 20, 2021, 10:03 AM IST
लखनऊ :20 सालों में 20 जेल कर्मियों की हत्या. ये सुनने में आपको कुछ अटपटा जरूर लग रहा है लेकिन, यह घटनाएं उत्तर प्रदेश की जेलों की हकीकत बयां कर रही हैं. या यूं कहे कि अपराधियों पर शिकंजा कसने की कीमत जेल अधिकारियों को जान देकर चुकानी पड़ रही. जब भी दबंग बंदियों पर शिकंजा कसा गया तो अपराधियों ने जेल अधिकारियों की हत्या या फिर हमला कर जेल में आतंक पैदा कर दिया. जेल अधिकारियों की मानें तो अपराधियों पर शिकंजा कसने के लिए उनके पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं. ऐसे में सवाल यह है कि जेल के भीतर अपराधियों के फैले संजाल को कैसे रोका जाए ?
यूपी के जेलों की हकीकत
ऐसे मिलती है जेल में अपराधियों को सुविधाएं
चित्रकूट जिला जेल में हुए गैंगवार में पश्चिमी उत्तर प्रदेश का कुख्यात माफिया मुकीम काला व पूर्वांचल के बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी का खास मेराज अली की हत्या व माफिया अंशू दीक्षित के एनकाउंटर की घटना ने एक बार फिर जेल के भीतर पनप रहे अपराधीकरण की चर्चा तेज कर दी है.
एक जेल अधिकारी के कहना है कि वह जमाने गए जब जेलें आतंक का पर्याय होती थीं. अब साधन संपन्न बंदी यहां चैन की बंसी बजा रहे हैं. यानी जेल में वह फाइव स्टार होटल का मजा ले रहे हैं. कैदी चतुर हैं तो उसे जेल में लजीज भोजन, दूध, अंडा, स्मैक, गांजा, सिगरेट, पान मसाला, शराब और यहां तक की मोबाइल फोन आसानी से उपलब्ध हो जाता है. इतना जरूर है कि इसके एवज में बंदी रक्षक उनसे मोटी रकम वसूल करते हैं. इसकी पुष्टि इससे की जा सकती है कि बंदी के जेल में आने पर प्रथम गेट से अंतिम पांच-छह प्रवेश द्वारों तक जबरदस्त तलाशी ली जाती है. उनके पास कोई अवांछित समान रह जाए ऐसा संभव नहीं. इसलिए साफ है कि यह सामग्री उन्हें बाद में दी जाती है. कई बार तलाशी में कई आपत्तिजनक वस्तुएं बरामद भी हुई, लेकिन जेल प्रशासन मामूली कागजी खानापूर्ति कर मामला रफादफा कर देता है.
रिटायर्ड डिप्टी एसपी श्यामाकांत त्रिपाठी का कहना है कि प्रदेश के लगभग सभी बड़े जघन्य अपराधी जेलों में बंद हैं, लेकिन जेल अधिकारियों के पास इतने अधिकार नहीं हैं कि वह इन जघन्य अपराधियों पर शिकंजा कस सकें. जेल में अपराधियों पर शिकंजा कसने के लिए जेल अफसरों को पुलिस की तरह सुविधाएं देनी पड़ेगी. उन्हें ऐसे संसाधन मुहैया कराने होंगे जिससे वह अपराधियों का डटकर मुकाबला कर सकें. अभी जेल अधिकारियों के पास संसाधन पर्याप्त नहीं हैं.
जानिए, सर्वाधिक चर्चा में रहीं जेल की ये घटनाएं
तारीख-2 जनवरी, वर्ष-1999, समय-सुबह करीब 10.30 बजे, स्थान-लखनऊ जिला कारागार. जेल में बंद लखनऊ विश्वविद्यालय का छात्रनेता बबलू उपाध्याय पेशी पर जाने के लिए अपने समर्थकों के साथ जेल गेट के मुख्य प्रवेश द्वार पर खड़ा था. अन्य सामान्य बंदी लाइन में बैठे थे. बबलू के समर्थक सिगरेट पी रहे थे. मौके पर पहुंचे जेल अधीक्षक आरके तिवारी ने सुट्टा लगाने पर फटकार लगाई. इस दौरान बबलू से उनकी कहासुनी भी हुई. उन्होंने उनके समर्थकों पर शिकंजा कसा. नतीजा, 4 जनवरी 1999 को जिलाधिकारी ऑफिस से मीटिंग कर लौट रहे आरके तिवारी की हजरतगंज स्थित राजभवन के सामने गोली मारकर हत्या कर दी गई. इस वारदात ने उत्तर प्रदेश के जेल अधिकारियों को हिलाकर रख दिया.
वर्ष-1998, लखनऊ जिला जेल के जेलर अशोक गौतम ने मनमानी करने पर एक दबंग रसूखदार बंदी को जेल सर्किल में जूता से पीटा. नतीजा, 4 अक्तूबर को 1998 को जेल से रिहाई के कुछ ही पल बाद बंदी ने जेल के मुख्य गेट पर ही बम मारकर जेलर की हत्या कर दी.