नई दिल्ली :चीन में नदियों पर पांच साल तक काम करने वाले एक प्रमुख नदी इंजीनियरिंग विशेषज्ञ ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि अगर चीन यरलुंग-त्संगपो नदी पर फुल-प्रूफ बांध का निर्माण करना चाहता है, तो एकतरफा निर्माण नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि यह एक परस्पर सहयोग का मामला है. बता दें कि यरलुंग-त्संगपो नदी असम में ब्रह्मपुत्र और बांग्लादेश में पद्मा के रूप में बहती है.
प्रोफेसर नयन शर्मा ने कहा, 'मैंने नदी पर काम किया है. पड़ोसी देशों भारत और बांग्लादेश के लिए बहुत कुछ दांव पर है. सुरक्षा, तटीय अधिकारों के मुद्दे हैं और सच्चाई यह है कि निवेश और तकनीकी विशेषज्ञता के मामले में बहुत कुछ दांव पर है. यदि चीन ने आगे बढ़ने का फैसला किया है, तो भारत और बांग्लादेश को भी प्राथमिक हितधारकों के रूप में साथ में लेना होगा.
प्रोफेसर शर्मा ने दुनियाभर में नदी इंजीनियरिंग परियोजनाओं पर 45 वर्षों तक काम किया है. साथ ही उन्होंने आईआईटी रुड़की में दशकों तक फैकल्टी के रूप में कार्य किया है.
प्रोफेसर शर्मा, यूरोपीय आयोग के नेतृत्व वाले ग्लोबल कंसोर्टियम के वैज्ञानिकों में एकमात्र दक्षिण एशियाई थे, जिसमें चीनी वैज्ञानिक भी शामिल थे. इन वैज्ञानिकों ने 2005-2010 में त्संगपो-ब्रह्मपुत्र पर ग्लेशियर (Permafrost) के पिघलने और जलवायु परिवर्तन के संभावित प्रभाव का अध्ययन किया था. इस ग्लोबल कंसोर्टियम में 18 संगठन शामिल थे, जिनमें आईआईटी रुड़की भारत का एकमात्र संस्थान था.
मंगलवार को, चीनी सरकार के मुखपत्र 'ग्लोबल टाइम्स' ने अपने एक लेख में कहा कि बांध ऐसी जगह पर बनाया जाएगा, जहां बिजली की अधिकतम मात्रा उत्पन्न होगी.
लेख में कहा गया कि चीन इस बड़ी जल विद्युत परियोजना के निर्माण के लिए ऊर्जा निर्यात पर विचार कर रहा है. नेपाल में हाई-वोल्टेज ट्रांसमिशन लाइन्स का निर्माण किया जा रहा है. जलविद्युत परियोजना शुरू होने के बाद, यह चीन के पड़ोसी देशों के विकास को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक ऊर्जा प्रदान करेगा.