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भारत-बांग्लादेश के सहयोग के बिना त्संगपो बांध नहीं बना सकता चीन

यरलुंग-त्संगपो नदी पर कार्य करने वाले एक विख्यात रीवर इंजीनियर के अनुसार, इस नदी पर बांध बनाने के लिए चीन को भारत और बांग्लादेश के साथ सहयोग करना पड़ेगा. वहीं, चीनी मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि बांध से उत्पन्न बिजली चीन के पड़ोसी देशों की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करेगी. पढ़िए वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट...

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त्संगपो बांध

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Published : Dec 1, 2020, 7:43 PM IST

Updated : Dec 2, 2020, 4:39 PM IST

नई दिल्ली :चीन में नदियों पर पांच साल तक काम करने वाले एक प्रमुख नदी इंजीनियरिंग विशेषज्ञ ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि अगर चीन यरलुंग-त्संगपो नदी पर फुल-प्रूफ बांध का निर्माण करना चाहता है, तो एकतरफा निर्माण नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि यह एक परस्पर सहयोग का मामला है. बता दें कि यरलुंग-त्संगपो नदी असम में ब्रह्मपुत्र और बांग्लादेश में पद्मा के रूप में बहती है.

प्रोफेसर नयन शर्मा ने कहा, 'मैंने नदी पर काम किया है. पड़ोसी देशों भारत और बांग्लादेश के लिए बहुत कुछ दांव पर है. सुरक्षा, तटीय अधिकारों के मुद्दे हैं और सच्चाई यह है कि निवेश और तकनीकी विशेषज्ञता के मामले में बहुत कुछ दांव पर है. यदि चीन ने आगे बढ़ने का फैसला किया है, तो भारत और बांग्लादेश को भी प्राथमिक हितधारकों के रूप में साथ में लेना होगा.

प्रोफेसर शर्मा ने दुनियाभर में नदी इंजीनियरिंग परियोजनाओं पर 45 वर्षों तक काम किया है. साथ ही उन्होंने आईआईटी रुड़की में दशकों तक फैकल्टी के रूप में कार्य किया है.

प्रोफेसर शर्मा, यूरोपीय आयोग के नेतृत्व वाले ग्लोबल कंसोर्टियम के वैज्ञानिकों में एकमात्र दक्षिण एशियाई थे, जिसमें चीनी वैज्ञानिक भी शामिल थे. इन वैज्ञानिकों ने 2005-2010 में त्संगपो-ब्रह्मपुत्र पर ग्लेशियर (Permafrost) के पिघलने और जलवायु परिवर्तन के संभावित प्रभाव का अध्ययन किया था. इस ग्लोबल कंसोर्टियम में 18 संगठन शामिल थे, जिनमें आईआईटी रुड़की भारत का एकमात्र संस्थान था.

मंगलवार को, चीनी सरकार के मुखपत्र 'ग्लोबल टाइम्स' ने अपने एक लेख में कहा कि बांध ऐसी जगह पर बनाया जाएगा, जहां बिजली की अधिकतम मात्रा उत्पन्न होगी.

लेख में कहा गया कि चीन इस बड़ी जल विद्युत परियोजना के निर्माण के लिए ऊर्जा निर्यात पर विचार कर रहा है. नेपाल में हाई-वोल्टेज ट्रांसमिशन लाइन्स का निर्माण किया जा रहा है. जलविद्युत परियोजना शुरू होने के बाद, यह चीन के पड़ोसी देशों के विकास को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक ऊर्जा प्रदान करेगा.

लेख में यह भी कहा गया है कि बड़े पैमाने पर हाइड्रो-इलेक्ट्रिक बांध से नदी बहाव वाले देशों के लिए पानी की मात्रा पर बहुत कम प्रभाव पड़ेगा.

प्रोफेसर शर्मा ने कहा, 'मैं जो समझता हूं कि चीन त्संगपो नदी के ग्रेट बेंड पर बांध बनाना चाहता है. यह स्थान अरुणाचल प्रदेश से लगती चीन सीमा से केवल 150-200 किमी दूर है, लेकिन यह बहुत ऊंचाई पर है.'

उन्होंने कहा, 'लेकिन बांध निर्माण शुरू होने से पहले भारत, चीन और बांग्लादेश के बीच औपचारिक समझौता होना चाहिए. साथ ही, बहुत ज्यादा अध्ययन किए जाने की जरूरत है. सुरक्षा और डिजाइन का भी मुद्दा है, क्योंकि यह अत्यधिक भूकंपीय और संवेदनशील क्षेत्र में स्थित है.'

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प्रोफेसर शर्मा ने कहा कि बड़ी मात्रा में ऊर्जा उत्पादन के बाद भी क्या देशों के बीच जल-बंटवारा या लाभ-साझा करने पर समझौते होंगे.

उन्होंने कहा कि कई प्रकार के बांध हैं, जिनमें भंडारण बांध या नदी बांध शामिल हैं. मेरी समझ से, चीन एक सुरंग का निर्माण करके नदी बांध की योजना बना रहा है. इससे भारी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होगी.

थ्री गोरजेस बांध भी चीन में है, जो दुनिया का सबसे बड़ा पनबिजली बांध है और यह 20,000 मेगावाट बिजली पैदा कर सकता है. त्संगपो बांध 70,000-80,000 मेगावाट बिजली पैदा करने में सक्षम होगा.

Last Updated : Dec 2, 2020, 4:39 PM IST

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