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TRS सरकार नहीं कर रही भुगतान, घर चलाने को दंथलापल्ली की सरपंच कर रही मजदूरी - महबूबाबाद

सरपंच सुष्मिता ने बताया कि गांव में किए गए कई विकास कार्यों के बिल जिला प्रशासन और राज्य सरकार के पास दो साल से लंबित हैं.

सरकार नहीं कर रही विकास कार्यों की राशि का भुगतान, घर चलाने को दंथलापल्ली की सरपंच कर रही मजदूरी
सरकार नहीं कर रही विकास कार्यों की राशि का भुगतान, घर चलाने को दंथलापल्ली की सरपंच कर रही मजदूरी

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Published : Nov 10, 2022, 1:12 PM IST

महबूबाबाद (तेलंगाना) : पिछले दो वर्षों से राज्य सरकार के पास 20 लाख रुपये के बिल लंबित होने के कारण, महबूबाबाद जिले में दंतालपल्ली ग्राम पंचायत में एक गंभीर वित्तीय संकट की स्थिति बन गई है. स्थिति इतनी विकट है कि सत्ताधारी टीआरएस से ताल्लुक रखने वाली 32 वर्षीय सरपंच सुष्मिता अब अपने परिवार का पेट पालने के लिए खेतिहर मजदूर बन गई है. सुष्मिता ने 2019 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और बाद में टीआरएस में शामिल हो गईं.

उन्होंने कहा कि पैसे उधार लेकर भी गांव में विकास कार्यों को अंजाम देना मुश्किल हो गया है. यह हमारी विश्वसनीयता और यहां तक ​​कि हमारी व्यक्तिगत वित्तीय स्थिति को भी प्रभावित कर रहा है. सुष्मिता ने कहा कि हमने लंबित कार्यों को पूरा करने के लिए ग्रामीणों से ब्याज पर 20 लाख रुपये का ऋण लिया. अब वे हमसे पैसे वापस मांग रहे हैं लेकिन हमारे पास कर्ज चुकाने के लिए कोई संसाधन नहीं है. सुष्मिता ने बताया कि गांव में किए गए कई विकास कार्यों के बिल जिला प्रशासन और राज्य सरकार के पास दो साल से लंबित हैं.

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उन्होंने कहा कि 20 लाख रुपये की लागत से पल्ले प्रगति योजना के तहत सड़क मरम्मत का काम किया गया था कार्य और वैकुंठ धाम (श्मशान) का निर्माण किया गया था, उन्होंने कहा कि इन कार्यों के बिल संबंधित अधिकारियों को दो साल पहले ही प्रस्तुत किए गए हैं. दो साल से बिल लंबित है. सुष्मिता ने अफसोस जताया कि लंबित बिलों का मुद्दा आदिम जाति कल्याण मंत्री सत्यवती राठौड़ के सामने भी उठाया गया था. मंत्री ने इस बारे में जिला कलेक्टर को पत्र भी लिखा था. लेकिन, एक भी रुपया मंजूर नहीं किया गया है.

इससे पहले इस साल मई और अक्टूबर में, यह पाया गया था कि विश्वनाथ कॉलोनी जीपी के सरपंच वल्लेपु अनीता रमेश, और सीथमपेटा ग्राम पंचायत के मंडल परिषद प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र (एमपीटीसी) के सदस्य बंदरी रजिथा को कृषि मजदूरों के रूप में काम करना पड़ रहा था. उनका भी कहना था कि लाखों रुपये का भुगतान राज्य सरकार से मंजूरी नहीं मिलने के कारण था.

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