कुल्लू: हिमाचल प्रदेश में देश की सबसे ऊंची झील चंद्रताल (Country's highest lake Chandratal) में अब देश दुनिया से आने वाले पर्यटक ट्राउट मछलियों का आखेट कर स्वाद चख सकेंगे. मत्स्य विभाग लाहौल स्पीति (Fisheries Department Lahaul Spiti) ने यह कारनामा कर दिखाया है और माइनस डिग्री तापमान में भी मछलियों के उत्पादन में कामयाबी हासिल की है. यहां पर करीब 5000 ट्राउट फिश तैयार हो चुकी है और इनका वजन उम्र के हिसाब से सही पाया गया है. मत्स्य विभाग लाहौल स्पीति के उप निदेशक महेश कुमार ने इस खबर की पुष्टि की है. इसके अलावा लाहौल-स्पीति की सिस्सू झील में भी ट्राउट फिश तैयार हो रही है. ट्राउट मछलियां झीलों के जम जाने पर भी नीचे पानी में जिंदा रहती हैं और अपना भरपूर आहार ग्रहण करती है.
टूरिस्ट और ट्रेकर का स्वर्ग कही जाने वाली चंद्रताल झील को हिमालय में लगभग 4300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित देश की सबसे खूबसूरत झीलों में से एक के रूप में जाना जाता है. बता दें कि यह झील समुंद्र टापू पठार पर स्थित है जो चंद्रा नदी को खूबसूरत बनाती है. चंद्र ताल चंद्रमा की तरह नजर आती है. इसका नाम अर्धचंद्राकार आकार की वजह से पड़ा है.
यह झील भारत की दो उच्च ऊंचाई वाली आर्द्रभूमि में से एक है जिसे रामसर स्थलों के रूप में नामित किया गया है. यह झील तिब्बती व्यापारियों के लिए स्पीति और कुल्लू घाटी की यात्रा के समय एक अस्थायी निवास के रूप में काम करती है. चंद्रताल झील (Chandratal Lake) पर्यटकों को अपने आकर्षण से बेहद आकर्षित करती है.
चंद्रताल झील का एक ट्रैक लाहौल रेंज के मनोरम दृश्य के साथ मीनार, तलागिरी, तारा पहाड़ और मुल्किला की बर्फ से ढकी चोटियों से गुजरता है, जो सभी 6000 मीटर से अधिक ऊंचे हैं. यह ट्रेक आपको 5000 मीटर ऊपरी बिंदु पर ले जाता है. ट्राउट फिश स्वच्छ व शीतल जल में रहती है, लेकिन माइनस डिग्री में इनका उत्पादन एक चुनौती से कम नहीं है.
पहाड़ी राज्यों की नदियों व खड्डों के बर्फीले पानी में 12 से 19 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान की बीच पलने बढ़ने वाली ट्राउट मछली में प्रोटीन अधिक व फैट कम होने के कारण इसे ह्रदयरोगियों के लिए वरदान माना जाता है. करीब सौ साल पहले 1909 में कुल्लू में तैनात रहे अंग्रेज अफसर जीसीएल हावल अपने साथ ट्राउट मछली के अंडे लाए थे और उन्होंने इसे कुल्लू कटराईं के पास ब्यास नदी किनारे मैहली हैचरी (मत्स्य बीज प्रजनन केंद्र) में डाला था. उसके बाद इस मछली को प्रदेश की कई नदियों में डाला गया और इसका उत्पादन शुरू हुआ.
विशेषज्ञों के अनुसार 1947 में जब प्रदेश में भारी बाढ़ आई थी तो इस बाढ़ के साथ आए मलबे ने इसका बीज नष्ट कर दिया था. उसके बाद जम्मू कश्मीर से ट्राउट का बीज (Trout seeds from Jammu and Kashmir) मंगवाकर इसे यहां की नदियों में डाला गया. इस समय प्रदेश में रेनबो और ब्राउन प्रजाति (Rainbow and Brown Species) की ट्राउट मछली पैदा हो रही हैं. कुल्लू के अलावा मंडी की उहल, कांगड़ा की लंबा डग, शिमला रोहड़ू की पब्बर, चंबा की अपर रावी, कुल्लू की सैंज, तीर्थन व पार्वती व किन्नौर की बास्पा नदी (Baspa river of Kinnaur) में ब्राउन ट्राउट पैदा हो रही हैं.
वहीं, बड़े स्तर पर कुल्लू, मनाली, जंजैहली, बरोट, बठाहड़, रोहड़ू व सांगला आदि में फार्मों में भी ब्राउन के साथ-साथ रेनबो प्रजाति की मछली पैदा की जा रही हैं. इसके अलावा मत्स्य विभाग के भी कटराईं कुल्लू व मंडी के बरोट में दो बड़े फार्म इस मछली के बीज पैदा कर रहे हैं जिसमें नदियों व खड्डों में डाला जाता है, ताकि कुदरती तौर पर इसकी पैदावार (Production) बढ़े.
विशेषज्ञों के अनुसार ब्राउन ट्राउट (Brown trout) तो अब यहां के पानी में पलने की आदी हो गई हैं और इसका कुदरती तौर पर उत्पादन हो रहा है. हिमाचल के इन ऊपरी जिलों की ठंडे बर्फानी पानी वाली नदियों व खड्डों के पानी से बनाए गए फार्मों में पैदा हो रही इस ट्राउट की महानगरों में काफी ज्यादा मांग (Trout is in high demand in metros) है. 500 रुपये प्रति किलो तक ट्राउट यहां बिकती है ओर इसकी मांग लगातार बढ़ रही है. वहीं, मत्स्य विभाग के उप निदेशक महेश कुमार ने बताया कि देश की खूबसूरत व ऊंची झील चंद्रताल में ट्राउट फिश का उत्पादन कामयाब हुआ है. 5,000 मछलियां यहां पर तैयार हो गई हैं.