दिल्ली

delhi

ETV Bharat / bharat

ताइवान को लेकर चीनी कार्रवाई से अमेरिका की प्रतिष्ठा प्रभावित

चीन और अमेरिका के बीच ताजा टकराव में चीन ने ताइवान के हवाई क्षेत्र में सैन्य विमानों द्वारा फ्लाईपास्ट को डराकर अमेरिका और उसके सहयोगियों को धमकाया. इससे चीन की स्थिति को जहां बढ़ावा मिलता है वहीं अमेरिका की प्रतिष्ठा को धक्का लगता है. पढ़िए ईटीवी के वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट...

ताइवान को लेकर चीनी
ताइवान को लेकर चीनी

By

Published : Oct 7, 2021, 10:53 AM IST

Updated : Oct 7, 2021, 12:14 PM IST

नई दिल्ली :ताइवान का तीन दिन से निरंतर सैन्य उत्पीड़न कर रहे चीन ने इस स्वायत्त क्षेत्र के समक्ष अपनी ताकत का अब तक का सबसे बड़ा प्रदर्शन करते हुए 4 अक्टूबर को ताइपे की ओर 52 लड़ाकू विमान उड़ाए. ताइवान के रक्षा मंत्रालय के मुताबिक उड़ान भरने वाले लड़ाकू विमानों में 34 जे-16 लड़ाकू विमान और 12 एच-6 बमवर्षक विमान थे. ताइवान ने भी चेतावनी देते हुए उसके वायुसेना ने चीन के लड़ाकू विमानों को वापस लौटने पर मजबूर किया और अपनी वायु रक्षा प्रणाली पर चीनी युद्धक विमानों की गतिविधियों पर नजर रखी. चीन की इस हरकत से अमेरिका आहत है.

बता दें, चीन ने ताइवान के रक्षा क्षेत्र के ऊपर से कई सैन्य विमान उड़ाए, जिसके बाद से ताइवान ने भी चीन को चेतावनी देने के लिए अपने विमान भेजे थे. अब इस मामले पर अमेरिका भी भड़क गया है और उसने चीन को चेतावनी दी है. अमेरिका ने इस मामले पर चीन से उसकी 'उकसाने वाली सैन्य' गतिविधियों को रोकने के लिए कहा है. हालांकि वर्ष 2021 के समाप्त होने में अभी दो महीने बाकी हैं लेकिन यह साल चीन के लिए अच्छा तो संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए खराब माना जाएगा.

म्यांमार में 1 फरवरी को तख्तापलट से लेकर 15 अगस्त को काबुल पर तालिबान के कब्जे तक चीन के रणनीतिक कदमों और स्थिति ने अमेरिका के नुकसान के लिए बहुत कुछ किया है. वहीं ताइवान को लेकर चीन के साथ तेजी से बढ़ते तनाव के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने स्वीकार किया कि वह और चीनी सुप्रीमो शी जिनपिंग हाल ही में 90 मिनट की लंबी फोन कॉल के दौरान ताइवान समझौते का पालन करने के लिए सहमत हुए हैं. वहीं युद्ध को लेकर 'वन-चाइना' नीति के लिए अमेरिका की स्वीकृति की उसकी पूर्व की तरह पुनरावृत्ति है. इसीक्रम में बाइडेन ने मंगलवार को व्हाइट हाउस में कहा, 'मैंने शी से ताइवान के बारे में बात की है. हम सहमत हैं... हम ताइवान समझौते का पालन करेंगे... हमने यह स्पष्ट कर दिया है कि मुझे नहीं लगता कि उसे समझौते का पालन करने के अलावा कुछ और करना चाहिए.'

ये भी पढ़ें - ताइवान के खिलाफ चीन का अब तक का सबसे बड़ा शक्ति प्रदर्शन, 52 लड़ाकू विमान भेजे

दूसरी तरफ अमेरिका केवल चीन को मान्यता देता है लेकिन इस उम्मीद के साथ अपने रुख को पूरा करता है कि ताइवान का भविष्य शांतिपूर्ण तरीकों से तय होगा. वहीं चीन ताइवान पर अपना दावा करता है लेकिन बाद में इसे वह खारिज कर देता है. वहीं 1 जुलाई को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ताइवान को चीन के साथ एकजुट करने की कसम खाई थी.

रविवार के बाद से 145 से अधिक चीनी सैन्य विमानों ने ताइवान के वायु रक्षा पहचान क्षेत्र (ADIZ) में अपने सैन्य विमान उड़ाए थे. इस पर ताइवान ने जवाब में अपने विमान भेजे थे. चीन की लड़ाई जहां ताइवान को लेकर है वहीं अमेरिका के लिए म्यांमार और अफगानिस्तान के बाद अपनी छवि के तीसरे बड़े नुकसान के रूप में है.

म्यांमार

म्यांमार के तख्तापलट के परिणामस्वरूप राजधानी नाएप्यीडॉ में एक बहुत ही सहायक प्रतिष्ठान की स्थापना हुई जो चीनी हितों की रक्षा करने के लिए सभी तरह से जा सकता है. इससे चीन को किसी के द्वारा पूछे बिना सीधे समुद्र तक पहुंचने में सहायता मिल सकती है. इसके साथ ही चीन ने पहले से ही एक समुद्री-सड़क-रेल मार्ग का संचालन शुरू कर दिया है जिसका उद्घाटन 26 अगस्त को किया गया था जो चेंगदू के वाणिज्यिक और सैन्य केंद्र को यांगून बंदरगाह और फिर सिंगापुर से जोड़ता है. यह तब हुआ है जब बीजिंग म्यांमार के क्युकफ्यू में अपना तीसरा बंदरगाह बनाने की तैयारी कर रहा है. इसके बन जाने से चीन के हिंद महासागर तक पहुंचने के लिए की योजनाओं की एक और महत्वपूर्ण प्रगति के रूप में इसे देखा जा रहा है. दूसरी ओर सैन्य तख्तापलट ने म्यांमार में अमेरिका और उसके सहयोगियों के लिए युद्धाभ्यास की जगह को प्रभावी ढंग से सीमित कर दिया है.

अफगानिस्तान

कुछ घटनाओं की वजह से नि:संदेह राष्ट्रों के वैश्विक समुदाय के बीच अमेरिका की उतनी बदनामी हुई है जिसमें संघर्षग्रस्त अफगानिस्तान से उसकी जल्दबाजी में सैनिकों की वापसी का मामला है. वहीं अमेरिका आतंकवाद और उसके बुनियादी ढांचे पर लगाम लगाने के उद्देश्य से अफगानिस्तान में तालिबान और अल कायदा के साथ कहीं अधिक मजबूत स्थिति में आने से रोकने में असफल रहा है. क्योंकि 2001 में अमेरिका सेना ने अफगानिस्तान पर हमला कर आतंकियों को खदेड़ने में अपने सेना की भारी कीमत चुकानी पड़ी थी. साथ ही अमेरिका ने अफगानिस्तान में अपने हथियार, उपकरण व प्लेन सहित अन्य सैन्य सामान तालिबान के भरोसे छोड़ दिए हैं, जो अमेरिका की कमजोरी को साबित करता है. वहीं अफगानिस्तान अध्याय अमेरिका के लिए एक दुखद गाथा है तो चीन और तालिबान के बीच की दोस्ती का प्रमाण.

ये भी पढ़ें - चीन से खतरे के बीच ताइवान ने किया सैन्य अभ्यास

बता दें कि, पिछले सप्ताह ताइवान के पास सैन्य विमानों की बड़ी संख्या में आवाजाही के साथ चीन अपनी सैन्य शक्ति दिखा रहा है और उसने क्षेत्र में अपने प्रभुत्व का दावा करते हुए इस द्वीपीय देश की परेशानियां बढ़ा दी हैं.

चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने सोमवार को ताइवान के दक्षिण पश्चिम तट के निकट अंतरराष्ट्रीय हवाईक्षेत्र में 56 विमानों को भेजा. यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब क्षेत्र के देश चीन का विरोध कर रहे हैं

चीन की ताजा कार्रवाई को अमेरिका ने जोखिम भरा और अस्थिरता पैदा करने वाला बताया है, वहीं चीन ने कहा कि अमेरिका ताइवान को हथियार बेच रहा है.

अमेरिका ने बीजिंग के क्षेत्रीय दावों को चुनौती देते हुए अपने सहयोगी देशों के साथ हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नौसैनिक गतिविधियां तेज कर दी हैं.

ताइवानी रक्षा मंत्री चिउ कुओ चेंग ने बुधवार को विधायकों से कहा कि हालात 40 साल में सबसे गंभीर स्थिति में हैं.

अधिकतर लोगों का मानना है कि अभी जंग की आशंका नहीं है, लेकिन ताइवान के राष्ट्रपति साई इंग-वेन ने चेतावनी दी कि अगर बीजिंग बलपूर्वक द्वीपीय देश पर कब्जा करने की पिछली धमकियों को अमलीजामा पहनाता है तो काफी कुछ दांव पर होगा.

Last Updated : Oct 7, 2021, 12:14 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details