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Bastar news: आदिवासियों की सरकार और नक्सलियों को चेतावनी, शांति वार्ता नहीं तो वोट नहीं

इन दिनों छत्तीसगढ़ के बस्तर में "शान्ति वार्ता नहीं, तो वोट नहीं" का नारा गूंज रहा है. नक्सलवाद का दंश झेल रहे बस्तर के आदिवासियों की मांग है कि नक्सल समस्या के समाधान के लिए सरकार और नक्सली दोनों शांति वार्ता करें.

no peace talks then no vote in bastar
नक्सल समस्या खत्म करने के लिए वार्ता जरूरी

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Published : May 14, 2023, 6:40 PM IST

Updated : May 14, 2023, 9:15 PM IST

नक्सल समस्या का कैसे होगा समाधान ?

रायपुर: छत्तीसगढ़ करीब चार दशक से नक्सलवाद का दंश झेल रहा है. बस्तर में आए दिन जवानों और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ होती है. कभी नक्सली मारे जाते हैं तो कभी जवान शहीद होते हैं. इन दोनों के बीच बेकसूर स्थानीय ग्रामीणों की भी मौत हो रही है. खून से लाल हो रही बस्तर की जमीन को बचाने के लिए अब खुद आदिवासी सामने आए हैं. बस्तर के गांव से एक नारा निकल कर सामने आ रहा है 'शांति वार्ता नहीं तो वोट नहीं'.

सरकार और नक्सलियों पर शांति वार्ता का दवाब: बस्तर के आदिवासी सरकार और नक्सली दोनों पर ही शांति वार्ता शुरू करने का दबाव बना रहे हैं. पिछले कुछ दिनों से बस्तर के दूरस्थ ग्रामीण इलाकों में लगातार बैठक हो रही है. विभिन्न समाज के लोग एक मंच पर आकर शांति वार्ता के लिए पहल कर रहे हैं. नुक्कड़ नाटक के जरिए भी लोगों को हिंसा का रास्ता छोड़ शांति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया जा रहा है.

कैसे खत्म होगी नक्सल समस्या ?

सर्व आदिवासी समाज ने खोला मोर्चा:नारायणपुर में 11 मई को गोंडवाना भवन में भी बैठक हुई. बस्तर में सुख शांति कैसे आए इस पर 'एक चैकले मांदी' ( सुख शांति के लिए बैठक) में चर्चा की गई. इस दौरान सभी ने एकमत होकर बस्तर में शांति वार्ता लाने की बात कही. 'शांति वार्ता नहीं तो वोट नहीं' के नारे का भी समर्थन किया.

"नक्सल समस्या के समाधान के लिए बैठक में यह बात सामने आई है कि इस समस्या के समाधान के लिए सरकार और नक्सलियों दोनों पर दबाव बनाना जरूरी है. इसलिए यह नारा दिया गया कि 'शांति वार्ता नहीं तो वोट नहीं. नक्सल समस्या के कारण हमारे क्षेत्र का विकास नहीं हो रहा है. ग्रामीण दोनों तरफ से पिस रहे हैं. इस समस्या का समाधान नहीं हो रहा है. यही वजह है कि हम चाहते हैं कि नक्सली हिंसा का मार्ग छोड़ें. शासन से भी चाहते हैं कि वह नक्सलियों से वार्ता करे ताकि हमारे क्षेत्र में अमन शांति कायम हो सके" : सदाराम ठाकुर, संरक्षक, सर्व आदिवासी समाज

सर्व आदिवासी समाज शांति वार्ता पर अड़ा

भाजपा की दलील: बस्तर के ग्रामीणों की मांग पर अब सियासत भी शुरू हो गई है. भाजपा का कहना है कि आदिवासियों की यह मांग सरकार को यह आईना दिखाने के लिए काफी है कि वह नागरिकों की सुरक्षा के मामले में असफल है. कांग्रेस सरकार के शासनकाल में लोग दहशत में हैं. उन्हें खौफ सता रहा है. वह यह कहने को मजबूर हैं कि जब तक शांति वार्ता नहीं तब तक हम वोट नहीं देंगे.

कांग्रेस राज में नक्सलियों का आतंक चल रहा है. नक्सलियों को साफ संदेश देना चाहिए कि हिंसा का रास्ता ठीक नहीं है. लेकिन कांग्रेस के नेता उनको अपना भाई बताते हैं. जनता को अब यह लगने लगा है कि जब तक कांग्रेस है तब तक नक्सलियों का आतंक जारी रहेगा.: अमित चिमनानी, भाजपा मीडिया विभाग के प्रदेश प्रभारी

नक्सल समस्या पर बीजेपी का मत

क्या कहते हैं सीएम: ग्रामीण सरकार पर विधानसभा चुनाव 2018 की घोषणा नक्सल मामले में बातचीत पर अमल करने की बात कह रहे हैं. वहीं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि हमने अपने लोगों से बातचीत कर नक्सल समस्या के समाधान की बात कही थी.

"मैंने कहा था कि अपने लोगों से बातचीत करूंगा. अपने लोग बस्तर के निवासी, परंपरागत रहने वाले आदिवासी, वहां के नौजवान, वहां के व्यापारी, वहां के पत्रकार से बात करूंगा. नक्सलियों से बातचीत के लिए शुरू से मेरा एक ही स्टैंड रहा है कि पहले भारत के संविधान पर विश्वास करें. उसके बाद किसी भी मंच पर बात करने के लिए हम तैयार हैं": भूपेश बघेल, सीएम

सीएम बघेल की नक्सलियों को दो टूक

क्या कहते हैं जानकार: सामाजिक कार्यकर्ता एवं नक्सल एक्सपर्ट शुभ्रांशु चौधरी का कहना है कि "यह एक नई शुरुआत हुई है. जगह जगह लोग इकट्ठा हो रहे हैं. वे दोनों पक्षों से पहली बार यह बोल रहे हैं कि आप दोनों साथ आइए और मिल बैठकर इस समस्या का समाधान करने का प्रयास करिए. सरकार से ग्रामीण कह रहे हैं कि पिछले चुनावी घोषणा पत्र में साढ़े चार साल पहले आपने कहा था, यदि हम जीतेंगे तो इस समस्या के समाधान के लिए बातचीत के लिए गंभीर प्रयास किए जाएंगे. कृपया उसे शुरू करें."

"ग्रामीण नक्सलियों से भी कह रहे हैं कि आप भी बातचीत शुरू करिए. भारतीय संविधान में आदिवासी अधिकार है. वह अधिकार ठीक से लागू नहीं हुए हैं. उन्हें लागू करने के लिए बातचीत कीजिए. इससे शांति भी आएगी और जो आदिवासी उनके साथ लड़ रहे हैं, उनको अपने अधिकार भी मिलेंगे": शुभ्रांशु चौधरी, सामाजिक कार्यकर्ता एवं नक्सल एक्सपर्ट

शांति वार्ता पर क्या कहते हैं नक्सल एक्सपर्ट ?

छत्तीसगढ़ के कितने जिले नक्सल प्रभावित: गृह मंत्रालय के मुताबिक देश के 10 राज्यों के 70 जिले आज भी नक्सल प्रभावित हैं. सबसे ज्यादा 16 जिले झारखंड के हैं. उसके बाद 14 जिले छत्तीसगढ़ के हैं. छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित जिले बलरामपुर, बस्तर, बीजापुर, दंतेवाड़ा, धमतरी, गरियाबंद, कांकेर, कोंडागांव, महासमुंद, नारायणपुर, राजनांदगांव, सुकमा, कबीरधाम और मुंगेली हैं. आंकड़े बताते हैं कि भले ही झारखंड में छत्तीसगढ़ से ज्यादा नक्सल प्रभावित जिले हैं. लेकिन छत्तीसगढ़ के मुकाबले झारखंड में नक्सली हमलों की संख्या लगभग आधी है.

  1. ये भी पढ़ें: छत्तीसगढ़ में बढ़ते नक्सली घटनाओं में कांग्रेस का हाथ: ननकी राम कंवर
  2. ये भी पढ़ें: CRPF Raising Day नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई अंतिम पड़ाव पर: अमित शाह

हमलों और मौतों का नहीं रुक रहा सिलसिला: गृह मंत्रालय के मुताबिक साल 2018 से 2022 के बीच पांच साल में नक्सलियों ने एक हजार 132 हमलों को अंजाम दिया है. इनमें सुरक्षाबलों के 168 जवान शहीद हुए हैं, जबकि 335 आम नागरिक भी मारे गए हैं. इसी दौरान सुरक्षाबलों की ओर से 398 ऑपरेशन चलाए गए हैं, जिनमें 327 नक्सलियों को ढेर कर दिया गया है.

छत्तीसगढ़ में नक्सल समस्या की मौजूदा स्थिति
Last Updated : May 14, 2023, 9:15 PM IST

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