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मीराबाई चानू : कभी डायट के लिए नहीं थे पैसे, रोज करती थी 44 किलोमीटर का सफर - struggle story of mirabai chanu

जीत के बाद देखने का नजरिया बदल जाता है. सफलता व्यक्तित्व को और निखार देती है. टोक्यो ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीतने वाली मीराबाई चानू की कहानी कुछ ऐसी ही है. इस उपलब्धि के पीछे कितनी मेहनत है और स्ट्रगल की कितनी कहानियां...सिल्वर गर्ल के बारे में जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर

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Published : Jul 24, 2021, 2:44 PM IST

Updated : Jul 24, 2021, 3:27 PM IST

हैदराबाद : टोक्यो से शनिवार को पहली खुशखबरी आई . ओलंपिक में भारत की शुरुआत सिल्वर मेडल ( Silver medal in Tokyo olympic) से हुई. भारत के लिए 49 किलोग्राम कैटेगिरी की वेटलिफ्टिंग कॉम्पिटिशन में सैखोम मीराबाई चानू (Saikhom Mirabai Chanu ) ने पहला मेडल हासिल किया. वेटलिफ्टिंग में भारत को 20 साल बाद पदक मिला, 2000 के सिडनी ओलंपिक में कर्णम मल्लेश्वरी ने ब्रॉन्ज मेडल जीता था.

ओलंपिक में 20 साल बाद वेटलिफ्टिंग कैटिगरी में भारत को मिला पदक. 2000 के सिडनी ओलंपिक में कर्णम मल्लेश्वरी ने ब्रॉन्ज मेडल जीता था

बचपन में जलाने वाली लकड़ी का गट्ठर उठाने से लेकर वेटलिफ्टिंग पोडियम तक पहुंचने का सफर मीराबाई चानू के लिए बेहद शानदार रहा है. ओलंपिक में चांदी वाले मेडल जीतने से पहले चानू ने अपना पहला गोल्ड मेडल 11 साल की उम्र में जीता था. अपने इलाके के वेटलिफ्टिंग कॉम्पिटिशन में उन्होंने जीत दर्ज की थी.

रिपोर्टस के अनुसार, मीराबाई चानू का जन्म 8 अगस्त 1994 को नोंगपोक काकचिंग इलाके के मैतेई हिंदू परिवार में हुआ था. नोंगपोक काकचिंग इंफाल में है और इंफाल, मणिपुर की राजधानी है. लोकल कॉम्पिटिशन में जीत के बाद घर वालों ने चानू की ताकत को पहचाना था. सिर्फ 12 साल की उम्र में वह आसानी से लकड़ी का उस बंडल अपने घर ले जाती थी, जिसे उसके बड़े भाई के लिए भी उठाना भी मुश्किल था.

कुंजुरानी देवी बनने के सपने ने ओलंपिक मेडलिस्ट बना दिया :26 साल की मीराबाई चानू ने एक वेबसाइट को दिए इंटरव्यू में बताया था कि जब वह बच्ची थी, तब उन्होंने कुंजुरानी देवी को प्रदर्शन करते देखा था. वह चकित थी कि आखिर कुंजुरानी देवी इतना भारी वेट कैसे उठा लेती हैं. उन्होंने वेटलिफ्टर बनने की ख्वाहिश अपने पिता सैखोम कृति मैती के सामने जाहिर की. पापा राजी हो गए. मां ऑग्बी ताम्बी लेमा भी अपनी छोटी बेटी के पक्के इरादे को देखकर वेटलिफ्टिंग करने की सहमति दे दी.

कुंजुरानी देवी चानू की आदर्श रही हैं

आपको बता दें कि कुंजुरानी देवी वर्ल्ड वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में 7 बार सिल्वर मेडल और एशियन गेम्स भी वह दो बार ब्रॉन्ज मेडल जीत चुकी हैं. चानू बताती हैं कि जब वह बड़ी हो रही थीं, तब के दौर में मणिपुर की लड़कियां या तो कुंजुरानी देवी बनना चाहती थीं या फिर सानिया मिर्जा. चानू ने कुंजुरानी देवी को फॉलो किया. फ्लैशबैक वाली कहानी को आगे बढ़ाने से पहले बता दें कि 2016 में जब रियो ओलंपिक के लिए ट्रायल चल रहा था तब चानू ने कुंजारानी देवी के 12 साल पुराने नेशनल रिकॉर्ड को तोड़ा था और भारतीय दल में अपनी जगह पक्की की थी.

कोच ने रोज चिकन खाने की सलाह दी थी, मगर घर में पैसे नहीं थे :अब कहानी स्ट्रगल की, जो अक्सर हर भारतीय खिलाड़ी करते हैं. कुंजुरानी को फॉलो करते हुए मीराबाई चानू ने 2008 में उन्होंने खुमान लंपक स्पोर्टस कॉम्पलेक्स में वेट लिफ्टिंग की ट्रेनिंग लेनी शुरू कर दी. उनके गांव में कोई वेटलिफ्टिंग सेंटर तो था नहीं, इसलिए रोज 44 किलोमीटर की दूरी तय कर इंफाल सिटी पहुंचती थी.

चानू ने एक इंटरव्यू में बताया था कि प्रैक्टिस के दौरान कोच ने उनको डायट चार्ट दिया. उन्हें चिकन और दूध को रेग्युलर डायट में शामिल करने की सलाह दी. मीराबाई चानू के 5 भाई-बहन और हैं. वह इनमें सबसे छोटी हैं. पापा पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट में काम करते थे और मम्मी एक्स्ट्रा इनकम के लिए दुकान चलाती थीं. ऐसे हालात में यह खर्च उनके परिवार के लिए बड़ा था. मगर जज्बे को कौन तोड़ सकता है, चानू की प्रैक्टिस जारी रही.

2011 में दिखा दिया था दम, लगातार मिलती रही जीत :2011 में साउथ एशियन यूथ चैंपियनशिप हुई थी. इसके बाद साउथ एशियन जूनियर गेम्स भी हुए थे. दोनों प्रतियोगिताओं में मीराबाई चानू ने गोल्ड मेडल जीत लिया. इस जीत से चानू को मोरल सपोर्ट मिला. 2013 में गुवाहाटी में जूनियर नेशनल चैंपियनशिप हुई और चानू ने बेस्ट लिफ्टर अवॉर्ड पर कब्जा कर लिया. इस तरह वह धीरे-धीरे कुंजुरानी के रेकॉर्ड की ओर बढ़ रही थीं. 2014 में स्कॉटलैंड के ग्लासगो में कॉमनवेल्थ गेम्स हुए थे. चानू ने मौके को अच्छी तरह भुनाया, मेहनत की और 48 किलोग्राम कैटिगरी में सिल्वर मेडल झटक लिया. ग्लासगो में 20 साल की इस युवा लड़की 170 किलो का वेट उठाया था.

सरकारी नौकरी , बनी रेलवे की टिकट कलक्टर, जो कभी धोनी भी बने थे :अपने यहां का दस्तूर है, खिलाड़ियों को प्रैक्टिस के लिए कोई सुविधा भले ही नहीं मिले, जीत के बाद एक नौकरी मिल ही जाती है. 31 अगस्त 2015 को चानू को इंडियन रेलवे ने सीनियर टिकट कलेक्टर की नौकरी मिली थी. शायद आपको याद हो तो क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी को भी रणजी खेलने के बाद टिकट कलेक्टर की ही नौकरी मिली थी. नहीं याद है तो धोनी की बायोपिक वाली फिल्म जरूर देखें.

रियो ओलंपिक के बाद कमेंट से निराश थी आज की सिल्वर गर्ल :2016 का दौर, जब कुंजुरानी देवी का रेकॉर्ड ध्वस्त करने के बाद रियो ओलंपिक का टिकट मिला था, मगर चानू वहां मेडल तक नहीं पहुंच सकी. चानू ने बताया था कि इसके बाद वह निराश हो गई. सोशल मीडिया पर चानू और उनके कोच के बारे में काफी कमेंट किए गए. वह इस कदर परेशान हुई कि प्रैक्टिस करना ही बंद कर दिया. खैर, हर बुरे दौर का अंत होता है. ओलंपिक की इस नई सिल्वर गर्ल ने 2017 में फिर से अपना दम दिखाया. वर्ल्ड चैंपियनशिप में 48 किलोग्राम कैटिगरी में गोल्ड मेडल झटक लिया. इससे पहले भारत के लिए यह कारनामा सिर्फ कर्नम मल्लेश्वरी ने किया था, दो बार.

2017 में मीराबाई चानू ने वर्ल्ड चैंपियनशिप के 48 किलोग्राम कैटिगरी में गोल्ड मेडल जीता था

नहीं अटेंड की बहन की शादी, क्योंकि वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतना था :इस जीत में उन्होंने एक मौका खो दिया. वह थी बहन शाया की शादी में शामिल होने का. मीराबाई चानू ने तब मीडिया को बताया था कि वह रियो ओलंपिक में अपने खराब प्रदर्शन से दुखी थीं. वर्ल्ड चैंपियनशिप का गोल्ड मेडल उनके दुख का इलाज था, साथ ही बहन के लिए खूबसूरत वेडिंग गिफ्ट भी. 2018 के कॉमनवेल्थ गेम्स में भी उन्होंने भारत के लिए पहला गोल्ड मेडल जीता था. इन कामयाबियों के लिए 2018 में चानू को राजीव गांधी खेल रत्न अवॉर्ड से नवाजा जा चुका है.

अब सैखोम मीराबाई चानू ने टोक्यो ओलंपिक में अपना डंका बजाया है. राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री समेत सभी बड़े लोग बधाई दे चुके हैं. ओलंपिक के खेलों को सीरियस नहीं लेने वाले भी गदगद हैं. केंद्र और राज्य सरकारों ने मेडल जीतने वालों के लिए पहले ही करोड़ों के इनाम की घोषणा कर रखी है. आपको इस बड़ी उपलब्धि के लिए बधाई मीराबाई चानू. देश को आप पर गर्व है.

Last Updated : Jul 24, 2021, 3:27 PM IST

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