कोलकाता :पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 (West Bengal assembly elections) के नतीजे आने के बाद से तृणमूल कांग्रेस (Trinamool Congress) के 'खेला होबे' (Khela Hobe) नारे ने राष्ट्रीय राजनीतिक मंच पर महत्व प्राप्त कर लिया है. यह नारा राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय हो चुका है. तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने भाजपा से मुकाबला करने के लिए संसद के पटल पर यह नारा लगाया. अब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के ड्रीम प्रोजेक्ट 'खेला होबे दिवस' को अन्य राज्यों में भी मनाया जाएगा. पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा के बाद योगी आदित्यनाथ शासित उत्तर प्रदेश में इस दिवस को मनाने की पहल शुरू हो गई है.
21 जुलाई को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने घोषणा की थी कि 16 अगस्त को पश्चिम बंगाल में 'खेला होबे दिवस' (Khela Hobe Divas) मनाया जाएगा. इस दिवस को मनाने की तैयारी शुरू हो गई है. 16 अगस्त को राज्य के प्रत्येक प्रखंड में यह दिवस मनाया जाएगा.
हालांकि बंगाल में प्रमुख विपक्षी दल भाजपा इस कदम के खिलाफ मुखर हो चुकी है. भाजपा के मुताबिक 16 अगस्त को 'खेला होबे दिवस' मनाकर तृणमूल कांग्रेस 1946 में द ग्रेट कलकत्ता किलिंग की यादों को फिर से ताजा करने की कोशिश कर रही है. 16 अगस्त, 1947 को मुस्लिम लीग ने डायरेक्ट एक्शन डे एंड द ग्रेट कलकत्ता किलिंग (Direct Action Day and The Great Calcutta Killing) की शुरुआत की. भाजपा के राज्यसभा सदस्य स्वप्न दासगुप्ता ने कहा, 'खेला होबे' का नारा अत्याचारों का प्रतीक बन गया है.
ममता का ये है तर्क
हालांकि, ममता बनर्जी ने 16 अगस्त को 'खेला होबे दिवस' के रूप में चुनने के लिए अपना तर्क दिया है. 16 अगस्त 1980 को कोलकाता के ईडन गार्डन में एक दुखद घटना घटी. दो लोकप्रिय फुटबॉल टीमों के समर्थकों के बीच झड़प और भगदड़ के बाद 16 लोगों की जान चली गई. तभी से इस दिन को फुटबॉल ओवर्स डे के रूप में मनाया जाता है. इसलिए इसे ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने उस दिन को 'खेला होबे दिवस' के रूप में मनाने का फैसला किया है. वास्तव में 'खेला होबे' के नारे ने पश्चिम बंगाल में लगातार तीसरी बार तृणमूल कांग्रेस की जीत सुनिश्चित करने में एक अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. अब उनके मुताबिक उस नारे के जरिए वह प्रदेश की जनता को एक करना चाहती हैं.
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