हैदराबाद :त्रिपुरा पूर्वोत्तर में चल रही सियासी कबड्डी का नया अखाड़ा बना है. निकाय चुनाव से पहले इस लड़ाई में तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी आमने-सामने है. तृणमूल कांग्रेस बांग्ला बाहुल्य त्रिपुरा में संघर्ष का वही दांव आजमा रही है, जो विधानसभा से पहले बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में आजमाया था. संघर्ष की इस रणनीति के तहत ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल और भारतीय जनता पार्टी त्रिपुरा की सत्ता पर काबिज हुई थी. साल 2018 में हुए चुनाव में बीजेपी ने त्रिपुरा में सीपीएम के नेतृत्व वाली लेफ़्ट सरकार को हराया था. लेफ़्ट राज्य पर 25 सालों तक सत्ता में रही थी.
2023 के विधानसभा चुनाव की तैयारी में TMC : 2023 में त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव होंगे. अभी वहां निकाय चुनाव चल रहे हैं. 25 नवंबर को त्रिपुरा में निकाय चुनाव के लिए वोटिंग होगी. इसके नतीजे बताएंगे कि दो साल बाद वहां किसकी सरकार बनेगी. पश्चिम बंगाल में जीत के बाद अपने सलाहकार प्रशांत किशोर के बनाए रूट मैप पर चलते हुए ममता बनर्जी ने छोटे राज्यों में जीतने का लक्ष्य बनाया है. त्रिपुरा उनके लिए सबसे मुफीद राज्य है. पश्चिम बंगाल की राजनीति से वहां की सत्ता पहले भी प्रभावित होती रही है और चुनावी माहौल भी बंगाल जैसा ही है. चुनाव में हार के बाद सीपीएम के कैडर सुस्त पड़ गए, इस कारण वहां आए राजनीतिक खालीपन को तृणमूल कांग्रेस ने आक्रमक अंदाज में पाटना शुरू किया है. त्रिपुरा और गोवा के जरिये ममता बनर्जी 2024 के आम चुनाव की तैयारी कर रही हैं.
ममता बनर्जी ने छोटे राज्यों में जीतने का लक्ष्य बनाया. पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद बढ़ा टकराव : पश्चिम बंगाल में तीसरी बार जीत से उत्साहित तृणमूल कांग्रेस ने अभिषेक बनर्जी को त्रिपुरा जीतने की जिम्मेदारी सौंपी है. अगस्त में प्रशांत किशोर की आई पैक की टीम सर्वे करने त्रिपुरा पहुंची थी. टीएमसी का आरोप है कि सरकार ने सर्वे टीम को नजरबंद कर दिया. इसके बाद अभिषेक बनर्जी और सुष्मिता देव के दौरे के दौरान भी काफी बवाल हुआ. मुकुल राय को दोबारा पार्टी में शामिल करने के बाद टीएमसी ने दावा कि त्रिपुरा के कई बीजेपी विधायक पार्टी में शामिल हो सकते हैं. इसके बाद बीजेपी और टीएमसी में तनाव बढ़ गया. इस बीच टीएमसी ने बीजेपी पर अपने पार्टी नेताओं पर हमले करने का आरोप लगाया.
तृणमूल कांग्रेस ने अभिषेक बनर्जी को त्रिपुरा जीतने की जिम्मेदारी सौंपी है. अभी क्यों गुस्से में है तृणमूल कांग्रेस : अभी ममता बनर्जी युवा तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष सायोनी घोष को त्रिपुरा में गिरफ्तार करने के बाद गुस्से में है. सायोनी घोष के खिलाफ भाजपा कार्यकर्ता को जान से मारने की कोशिश करने के आरोप हैं. अगरतला पुलिस ने सायोनी के खिलाफ आईपीसी की धारा 307 (हत्या का प्रयास) और 153 के तहत मामला दर्ज किया है. पश्चिम त्रिपुरा में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अदालत ने उन्हें जमानत दे दी है. तृणमूल कांग्रेस का आरोप है कि निकाय चुनाव से पहले धमकाने के लिए सायोनी को फंसाया जा रहा है.
सायोनी घोष के गिरफ्तारी के विरोध में संसद के बाहर प्रदर्शन. निकाय चुनाव की लड़ाई कोर्ट तक : चुनाव के दौरान झड़प का मुद्दा लेकर तृणमूल कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट गई. सुप्रीम कोर्ट ने 11 नवंबर को याचिका पर सुनवाई करते हुए त्रिपुरा पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया कि किसी भी राजनीतिक दल को शांतिपूर्ण तरीके से राजनीतिक प्रचार के लिए कानून के अनुसार अपने अधिकारों का प्रयोग करने से रोका न जाए. सुप्रीम कोर्ट ने त्रिपुरा के गृह सचिव से एक हलफनामा भी मांगा और चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष रहने के लिए वर्तमान आदेश के अनुसरण में उठाए गए कदमों के बारे में जानकारी मांगी. अब तृणमूल कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर करने का फैसला किया है.
बीजेपी पर आजमाया संघर्ष वाला नुस्खा :2018 में विधानसभा चुनाव से पहले त्रिपुरा में सीपीएम और बीजेपी के बीच कलह की खबरें आती थीं. संघर्ष का नतीजा यह रहा कि चुनाव में बीजेपी को 60 सदस्यीय विधानसभा में 36 सीटों पर जीत मिली. अब तृणमूल कांग्रेस ने वही राह चुनी है, जिस पर बीजेपी विधानसभा चुनाव से पहले पश्चिम बंगाल में चल रही है. टीएमसी के नेता त्रिपुरा में ताबड़तोड़ दौरे कर रहे हैं. हर छोटे-बड़े मुद्दे पर पार्टी रिएक्शन दे रही है. मीडिया रिपोर्टस के अनुसार, सीपीएम कार्यकर्ता भी ममता बनर्जी के समर्थन में आंदोलनों का हिस्सा बन रहे हैं. पिछले चुनाव में सीपीएम को 16 सीटें मिलीं थीं. जबकि तृणमूल कांग्रेस को 0.3 प्रतिशत वोट मिले थे और वह कोई सीट नहीं जीत सकी थी.