विपक्षी दलों की बैठक में टीएमसी शामिल, भाजपा के लिए बजी खतरे की घंटी ! नई दिल्ली : कांग्रेस पार्टी ने जिन विपक्षी दलों की बैठक बुलाई थी, उसमें तृणमूल कांग्रेस के आने की उम्मीद नहीं थी. लेकिन आज की बैठक में उनकी पार्टी के दो प्रतिनिधि उपस्थिति थे. प्रसून बनर्जी और जवाहर सरकार ने बैठक में हिस्सा लिया. माना जा रहा है कि टीएमसी की सहमति मिल जाने से कांग्रेस की अगुआई में विपक्ष बहुत तेजी से गोलबंद हो रहा है.
वैसे, अभी तक माना जा रहा था कि टीएमसी और भारत राष्ट्र समिति दोनों कांग्रेस के विरोधी हैं. दोनों पार्टियां समय-समय पर कांग्रेस की आलोचना करती रहती हैं. ममता बनर्जी ने तो यहां तक कह दिया था कि राहुल विपक्ष के चेहरा बने रहे, तो भाजपा को हराना मुश्किल होगा. उनकी पार्टी के नेता कहते रहे हैं कि विपक्ष का नेतृत्व ममता बनर्जी को करना चाहिए. संसद के वर्तमान सत्र में भी कई मौकों पर टीएमसी ने कांग्रेस से अलग स्टैंड लिया. हालांकि, वह भी सरकार का विरोध करती रही है.
आज की बैठक में 17 पार्टियों ने हिस्सा लिया. इसमें टीएमसी, आप, सपा, जेडीयू, बीआरएस, नेशनल कांफ्रेंस, सीपीआई, सीपीएम, शिवसेना, एनसीपी, डीएमके, आरएसपी, एमडीएमके, आईयूएमएल, केसी ने हिस्सा लिया. आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने राहुल की सदस्यता खत्म किए जाने का विरोध किया था. वैसे, कांग्रेस ने मनीष सिसोदिया के मुद्दे पर आप का खुलकर समर्थन नहीं किया था.
भाजपा के लिए यह बैठक क्यों खतरे की घंटी है, क्योंकि पार्टी को ऐसा लग रहा था कि राहुल के पीछे टीएमसी नहीं आएगी. और टीएमसी नहीं आती है, तो विपक्षी दलों की एकता नहीं बन पाएगी. भाजपा के रणनीतिकारों का आकलन था कि ममता भाजपा के खिलाफ स्टैंड तो ले रहीं हैं, लेकिन वह कांग्रेस से भी समान दूरी बनाकर रहना चाहती हैं. इसी सिलसिले में पिछले सप्ताह ममता और अखिलेश की मुलाकात हुई थी. तब अखिलेश ने भी कुछ ऐसा ही इशारा किया था. अखिलेश ने कहा था कि कांग्रेस को क्षेत्रीय पार्टियों का समर्थन करना चाहिए. बीआरएस नेता और तेलंगाना के मुख्यंत्री केसीआर भी इसी विचार से सहमत हैं. लेकिन कहते हैं न कि राजनीति में कब कौन सा पत्ता अपना रंग दिखा जाए, कहना मुश्किल होता है. भाजपा चाहे जो भी सोचे, अगर कांग्रेस ने इस हवा को तूफान में बदल दिया, तो फिर क्या होगा, कहना मुश्किल है. भाजपा अगर अपने ही चक्रव्यूह को नहीं भेद पाई, तो आने वाले समय में उसके लिए और अधिक चुनौतियां बढ़ेंगी.
यहां यह भी जानना जरूरी है कि भारत जोड़ो यात्रा के बाद कांग्रेस पार्टी हर हाल में चाहती है कि राहुल गांधी ही विपक्षी दलों का नेतृत्व करें. उनकी पार्टी के नेता गाहे-बगाहे राहुल गांधी को पीएम पद का उम्मीदवार भी बताते रहे हैं. पर राहुल की सदस्यता जाने के बाद जो परिस्थिति बनी है, और कांग्रेस ने जिस रणनीति के तहत इस फैसले को चुनौती देने में देरी की है, उसका किस हद तक असर होगा, अभी किसी को भी पता नहीं है. कांग्रेस चाहती है कि फैसले को चुनौती देने में जितनी देरी होगी, पार्टी को उतना अधिक फायदा होगा. उनके कानूनी सलाहकार पहले ही बता चुके हैं कि कोर्ट में जिस वक्त इस फैसले को चुनौती दी जाएगी, राहुल गांधी को सदस्यता फिर से बहाल हो जाएगी.
ये भी पढ़ें :लोकसभा में विपक्षियों का ब्लैक ड्रेस प्रोटेस्ट, अध्यक्ष पर कागज और काली पट्टी फेंकी