नई दिल्ली: तृणमूल कांग्रेस के सांसद सुखेंदु शेखर रॉय और काकोली घोष दस्तिदार ने शुक्रवार को कुछ आंकड़े मीडिया के सामने रखते हुए आरोप लगाया कि जिस तरह सदन में चर्चा के बिना यह सरकार बिल पास कराए जा रही है, इससे प्रतीत होता है कि हम लोकतंत्र की बजाय एकतंत्र की तरफ बढ़ रहे हैं.
तृणमूल सांसद सुखेंदु शेखर रॉय ने कहा कि दोनों सदनों में अब तक कुल 25 बिल पास हो चुके हैं जिसमें चर्चा में केवल सरकार पक्ष शामिल हुई है.
इन बिलों पर औसत चर्चा केवल दस मिनट प्रति बिल हुई है. राज्यसभा में 12 दिन में 8 बिल पास हुए हैं और हर बिल पर औसत चर्चा 13 मिनट की रही है. वहीं लोकसभा में 6 दिन में 13 बिल पास हुए हैं और हर बिल पर औसत चर्चा 8 मिनट की रही है.
इनमें से कोई भी बिल स्टैंडिंग कमिटी या सेलेक्ट कमिटी के पास नहीं भेजे गए. 14वीं लोकसभा में कुल पेश किये गए बिल में से 60% बिल पार्लियामेंट्री कमिटी में भेजे गए थे जबकि 16वीं लोकसभा में कुल बिलों में से 71% बिल स्टैंडिंग कमिटी या सेलेक्ट कमिटी को भेजे गए. लेकिन 16वीं लोकसभा जो मोदी सकरार का पहला कार्यकाल भी रहा है उसमें केवल 25% बिल ही स्टैंडिंग कमिटी या सेलेक्ट कमिटी को भेजे गए.
यदि 17वीं लोकसभा यानी मोदी सरकार के मौजूदा कार्यकाल की बात करें तो 2019 से दिसंबर 2020 तक केवल 11% बिल ही स्टैंडिंग या सेलेक्ट कमिटी को भेजे गए हैं.देश के संसदीय इतिहास को यदि देखें तो पहले 30 वर्षों में हर दस बिल में से एक ही अध्यादेश के माध्यम से आया. अगले तीस वर्षों में यह आंकड़ा औसतन 10 बिलों में से 2 अध्यादेश का रहा. लेकिन मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में पारित हुए बिलों में हर दस में से औसतन 3.5 बिल अध्यादेश के माध्यम से लाए गए हैं.
17वीं लोकसभा में यदि अब तक के आंकड़ों को देखें तो हर दस बिल में औसतन 3.7 बिल अध्यादेश के माध्यम से लाए गए हैं. जब संसद का सत्र नहीं चल रहा होता है तब ये अध्यादेश लाए जाते हैं और सत्र शुरू होते ही सरकार इन बिलों को पारित करने की हड़बड़ी में रहती है. PAC कमिटी में भी मुख्य मुद्दा यही रहता है.