नई दिल्ली : म्यांमार की राजधानी यंगून में रविवार को प्रदर्शनकारियों पर सुरक्षाकर्मियों ने गोलियां चलाईं. इसमें यंगून के करीब एक औद्योगिक क्षेत्र में हेलिंगथया में 22 लोगों समेत पूरे देश में कम से कम 38 नागरिकों की मौत हो गई. हिंसा के दौरान एक पुलिस अधिकारी की भी जान चली गई, जबकि तीन अन्य घायल हो गए. फरवरी में निर्वाचित सरकार के सैन्य तख्तापलट के बाद शुरू हुए प्रदर्शन में किसी पुलिसकर्मी के जान गंवाने का यह महज दूसरा मामला है.
भारत के लोकतंत्र समर्थक आंदोलन के लिए मामला
सबसे पहले, म्यांमार में तख्तापलट के बाद से मीडिया के हाथ बांध दिए गए हैं. यहां पर मीडिया खुलकर काम नहीं कर पा रही है. तख्तापलट के बाद से म्यांमार की बहुत कम जानकारियां बाहर आ रही हैं. कोई केवल कल्पना कर सकता है कि टाटमाड(म्यांमार की सशस्त्र सेनाओं का आधिकारिक नाम) इस समय लोगों के खिलाफ खड़ा है और लंबे समय तक इसके नियंत्रण को बनाए रखना मुश्किल हो सकता है.
दूसरा, जबकि वैश्विक स्तर पर इसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका चीन की है. यह एक खुला रहस्य है कि टाटमाड का चीन के साथ बहुत करीबी रिश्ता है, लेकिन जिस क्षण चीन ने फैसला किया, सेना के दिनों को गिना जाएगा. टाटमाड के साथ अपनी निकटता बढ़ाते हुए चीन बंगाल की खाड़ी तक अपने परिवहन को बढ़ाने की योजना बना रहा है. इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि भारत के पास न्येपीडॉ में एक शासन है. जिसकी सामरिक और वैचारिक समानताएं हैं.
तीसरा, देश में यह विरासत चली आ रही है कि सेना गैर-बर्मन अल्पसंख्यकों पर हमेशा से सख्त रही है. बता दें, इंडो-म्यांमार सीमा क्षेत्र गैर-बर्मन जातियों द्वारा बसा हुआ इलाका है. इन जातीय समुदायों पर किसी भी दमन का पूर्वोत्तर भारत के सीमावर्ती राज्यों पर प्रभाव पड़ता है.
इस मामले में हाल ही में चिन मूल के लोग म्यांमार के चिन राज्य से मिजोरम पहुंचे हैं. चिन और मिज़ोस एक ही नस्लीय के हैं. जब मिजोस चिन का स्वागत कर रहे हैं, तब गृह मंत्रालय के निर्देश ने म्यांमार के सभी आव्रजन को रोकने के लिए कहा. जिससे मिज़ोस के बीच विवाद बढ़ जाएंगे. जमीनी स्तर की संवेदनशीलता की यह कमी स्थिरता को परेशान करती है.
न्येपीडॉ शासन, जो भारत के लिए सबसे अच्छा लोकतांत्रिक, सुलभ और समावेशी कार्य है. एक ऐसे शासन के विरोध में जो चीन के निर्देशों का समर्थन करेगा.