मुंबई : शहर के कांदिवली पश्चिम के एकता नगर में सार्वजनिक शौचालय की सफाई करने गए तीन सफाई कर्मियों की सेप्टिक टैंक में गिरने से मौत हो गई. घटना की सूचना मिलने पर पहुंचे अग्निशमनकर्मियों ने उन्हें निकाला और अस्पताल में भर्ती करवाया. हालांकि,अस्पताल में डॉक्टरों ने सफाई कर्मियों को मृत घोषित कर दिया. इसकी सूचना पुलिस को दी गयी है.
पहले भी बेमौत मारे गए हैं लोग
गौरतलब है कि जनवरी, 2020 में भी महाराष्ट्र में सीवर सफाई के दौरान लोगों की मौत हुई थी. मुंबई के गोरेगांव में सीवर में सफाई के लिए उतरे दो कर्मचारियों की मौत हो गई थी. इससे पहले दिसंबर, 2019 में भी सीवर सफाई करने के दौरान पांच सफाईकर्मियों की मौत हुई थी. अगस्त, 2019 में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे गाजियाबाद में दम घुटने के कारण पांच लोगों की मौत हुई थी. हादसा सीवर सफाई के दौरान हुआ था. यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने 10-10 लाख रुपये मुआवजे का एलान किया था.
जून, 2019 में पीएम मोदी के गृह राज्य गुजरात के वडोदरा में भी मैनुअल सीवर क्लीनिंग का मामला सामने आया था. एक होटल में सीवर साफ करने के दौरान दम घुटने से चार सफाईकर्मियों सहित सात लोगों की मौत हुई थी. इस संबंध में अधिकारियों ने बताया था कि वड़ोदरा शहर से करीब 30 किलोमीटर दूर डभोई तहसील में सीवर सफाई के दौरान कई लोगों की मौत हो गई.
सीवर सफाई पर भारत के कानून और सामाजिक बदलाव के प्रयास
मलत्याग को हाथ से साफ करना का एक बहुत ही अपमानजनक काम है, जो किसी व्यक्ति से उसका इंसान होने का हक छीन लेता है. इस कार्य को करने में कुछ भी पुन्यमय नहीं है. भारतीय संविधान के वास्तुकार डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर ने चेतावनी दी थी. भंगी झाड़ू छोडो का नारा देते हुए उन्होंने मैला ढोने के कार्य का तुरंत बहिष्कार करने का आह्वान किया था. उन्होंने इस वीभत्स पेशे के महिमामंडित करने की धारणा का पुरजोर खंडन किया था. दशकों बीत जाने के बाद आज भी भारत में हाथ से मैला ढोने वालों को रोजगार पर रखा जा रहा है. हाथ से मैला ढोने के खिलाफ बने कानून भी इसे खत्म करने के लिए नाकाफी साबित हुए हैं. 2013 में, केंद्र ने हाथ से मैला सफाईकर्मी कार्य का प्रतिषेध एवं उनका पुनर्वास विधेयक के प्रारूपित किया लेकिन यह अभी भी इसे पूरी ताक़त से लागू होना बाकी है. वर्तमान में, सीवर और सेप्टिक टैंकों की खतरनाक सफाई के कार्य के लिए किसी व्यक्ति को नियुक्त करने वाला व्यक्ति या एजेंसी को 5 साल तक के कारावास या 5 लाख रुपये तक का जुर्माना या दोनों का प्रावधान है. केंद्र नए विधेयक में इसके लिए और कठोर दंड पर विचार कर रहा है. भारत सरकार ने 1993 में सफाई कर्मचारी नियोजन और शुष्क शौचालय सन्निर्माण (प्रतिषेध) अधिनियम के खिलाफ एक कानून बनाया. राज्यों की ज़िदगी रवैये के कारण किसी भी स्तर पर कानून को ठीक से लागू नहीं किया. बीस साल बाद, 2013 में, मानव मलमूत्र को साफ करने के लिए मनुष्यों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने और उनके पुनर्वास के लिए कानूनी गारंटी प्रदान करने के लिए एक और कानून पारित किया गया. लेकिन इसके बाद भी मैला ढोने वालों और सफाई कर्मचारियों के जीवन में कोई बदलाव नहीं हुआ है.