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जजों को मारने की धमकी मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट ने आरोपी को कानूनी सलाह लेने को कहा - मुख्य न्यायाधीश ए एस ओका

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने आज जजों को मारने की धमकी मामले में सुनवाई की. सुनवाई करते हुए कोर्ट ने आरोपी को आगे की कार्रवाई से पहले कानूनी सलाह लेने को कहा है.

कर्नाटक उच्च न्यायालय
कर्नाटक उच्च न्यायालय

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Published : Mar 1, 2021, 9:54 PM IST

बेंगलुरु :कर्नाटकउच्च न्यायालय ने आज एक ऐसे मामले की सुनवाई की, जिसमें 72 वर्षीय व्यक्ति ने एक पत्र लिखकर न्यायाधीशों को जान से मारने की धमकी दी. अदालत ने बूढ़े व्यक्ति की उम्र और स्वास्थ्य पर विचार करके आगे बढ़ने से पहले कानूनी सलाह लेने को कहा.

72 वर्षीय जे पी नगर निवासी एस वी श्रीनिवास राव ने पत्र लिखकर दो जजों और कुछ वकीलों को मारने की धमकी दी. इस पर उच्च न्यायालय ने श्रीनिवास राव के खिलाफ एक स्वैच्छिक आपराधिक न्यायिक दुर्व्यवहार की शिकायत दर्ज की.

याचिका की सुनवाई करते हुए आज मुख्य न्यायाधीश ए एस ओका की अध्यक्षता में सुनवाई हुई. इस दौरान श्रीनिवास राव वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से सुनवाई में उपस्थित हुए और अदालत ने राव द्वारा याचिका पर उठाई गई आपत्ति पर नाराजगी व्यक्त की.

अपनी आपत्ति में श्रीनिवास राव ने जजों के खिलाफ आरोप लगाए. कोर्ट ने उनके बयानों पर सवाल उठाए. श्रीनिवास राव ने कहा कि वह अपने आरोप का बचाव करने के लिए तैयार हैं. उन्होंने यह भी कहा कि अगर वह गलत साबित होते हैं, तो कोई सजा भुगतने को तैयार हैं.

कोर्ट ने कहा कि क्योंकि आप बूढ़ें हैं और आपको स्वास्थ्य समस्याएं हैं, इसलिए हम आपको एक आखिरी मौका दे रहे हैं. मामले पर कानूनी सलाह लें. यदि आप अपनी आपत्ति को सही ठहरा सकते हैं, तो आपको मामले को तार्किक निष्कर्ष पर ले जाना होगा.

इसके बाद श्रीनिवास राव अपनी आपत्तियों पर कानूनी सलाह लेने के लिए तैयार हो गए और पीठ ने सुनवाई को स्थगित 22 मार्त तक स्थगित करते हुए कहा कि श्रीनिवास राव को मामले के संबंध में आरोपित किया जाएगा.

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बता दें कि श्रीनिवास राव ने 29 जनवरी को हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल एसवी राजेंद्रन को पत्र लिखा और कहा कि राज्य के हाई कोर्ट में 28 भ्रष्ट न्यायाधीश हैं. उन्होंने दो न्यायाधीशों और एक वकील को मारने की धमकी भी दी.

इस मामले में उच्च न्यायालय ने श्रीनिवास राव के खिलाफ एक स्वैच्छिक आपराधिक न्यायिक दुर्व्यवहार का मामला दर्ज किया है.

गौरतलब है कि 2010 में भी श्रीनिवास राव ने ऐसा ही पत्र लिखाथा. हालांकि, उच्च न्यायालय ने उन्हें माफी मांगने के कारण उनके खिलाफ केस वापस ले लिया था.

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