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नॉर्थ-ईस्ट के उग्रवादी संगठनों के लिए सुरक्षित पनाहगार बना म्यांमार, खुले बॉर्डर का उठाते हैं फायदा

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Published : May 7, 2022, 8:39 PM IST

Updated : May 7, 2022, 9:15 PM IST

भारत-म्यांमार बॉर्डर पर पाकिस्तान की तरह कोई तनाव भले ही नहीं हो, मगर सामरिक दृष्टि से यह सीमा भी काफी संवेदनशील है. असम राइफल्स (AR) के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल पीसी नायर ने कहा है कि क्षेत्रीयता और जातीयता के नाम पर हथियार उठाने वाले नॉर्थ-ईस्ट के उग्रवादी संगठन भारत-म्यांमार सीमा पर एक्टिव रहते हैं. पढ़ें गौतम देबरॉय की रिपोर्ट.

असम राइफल्स (AR) के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल पीसी नायर
असम राइफल्स (AR) के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल पीसी नायर

नई दिल्ली :पहली नजर में भारत से सटी म्यांमार की सीमा शांत दिखती है मगर ऐसा नहीं है. इस सीमा पर पाकिस्तान बॉर्डर जैसा तनाव नहीं है, मगर नॉर्थ-ईस्ट के विद्रोही गुट ( Northeast insurgent groups) इस खुले बॉर्डर का फायदा उठाने से नहीं चूकते. असम राइफल्स (AR) के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल पीसी नायर ने कहा है कि क्षेत्रीयता और जातीयता के नाम पर हथियार उठाने वाले पूर्वोत्तर के उग्रवादी भारत-म्यांमार सीमा पर एक्टिव हैं. एनएससीएन (खापलांग गुट), उल्फा, केएलओ और मणिपुर के विद्रोहियों सहित लगभग सभी उग्रवादी संगठनों के म्यांमार में ठिकाने हैं.

लेफ्टिनेंट जनरल पीसी नायर ने कहा कि पाकिस्तान और बांग्लादेश बॉर्डर की तरह म्यांमार सीमा पर फेंसिंग नहीं की गई है. यह एक ओपन बॉर्डर है, यहां एक समुदाय और जाति के लोग बॉर्डर के दोनों तरफ बसते हैं. पूर्वोत्तर के विद्रोही गुट के आतंकी इसका फायदा उठाते हैं. बॉर्डर के दोनों तरफ उनकी आवाजाही होती है. उन्होंने बताया कि भारत म्यांमार सीमा पर लगे 16 किलोमीटर इलाके लोग दोनों देशों में आवाजाही के लिए स्वतंत्र है, इस क्षेत्र को फ्री मूवमेंट रीजन कहा जाता है. भूटान ने अपनी धरती के आधार पर सभी पूर्वोत्तर विद्रोही समूहों के खिलाफ एक अभियान चलाया था, इसके अलावा बांग्लादेश ने भी सभी विद्रोही संगठनों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया. इसके बाद से म्यांमार उग्रवादी संगठनों के लिए एक सुरक्षित पनाहगार बन गया है. एससीएन (खापलांग गुट), उल्फा, केएलओ और मणिपुर के विद्रोहियों सहित लगभग सभी विद्रोही संगठनों के म्यांमार में ठिकाने हैं.

असम राइफल्स के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल पीसी नायर से बातचीत

म्यांमार और भारत के बीच कॉर्डिनेशन के बाद भी नार्थ-ईस्ट के उग्रवादियों के लिए यह इलाका सुरक्षित इलाका बन गया है. एक अनुमान के अनुसार, नागा, मणिपुरी, असम के लगभग 2500 आतंकवादी म्यांमार को उग्रवादी लॉन्चपैड के तौर पर इस्तेमाल करते हैं. लेफ्टिनेंट जनरल पीसी नायर ने कहा कि चीन के साथ म्यांमार की भागीदारी भी भारत के लिए चिंता का एक प्रमुख कारण बन गया है. उन्होंने कहा कि जब वर्मा की मिलिट्री तातमाडॉ पूर्वोत्तर के उग्रवादियों के खिलाफ आक्रामक कार्रवाई करती है, तो वे उन जगहों पर छिप जाते हैं, जो म्यांमार की सेना की पहुंच नहीं पाती. नायर ने साफ किया कि भारत-म्यांमार के बीच वर्षों से अच्छे संबंध हैं. दोनों देशों के बीच सहयोग भी अभूतपूर्व है. उम्मीद है आगे भी ऐसा ही रहेगा.
भारत म्यांमार के साथ 1,643 किमी लंबा बॉर्डर साझा करता है. म्यांमार की सीमा भारत के अरुणाचल प्रदेश (520 किमी), नागालैंड (215 किमी), मणिपुर (398 किमी), और मिजोरम (510 किमी) से होकर गुजरती है.

अभी तक दोनों देशों के बीच 1,472 किमी का सीमांकन पूरा हो चुका है. भारत-म्यांमार सीमा के बीच दो अंडरमार्क हिस्से हैं, जिनमें अरुणाचल प्रदेश के लोहित उप सेक्टर-136 किलोमीटर और मनिओर -35 किलोमीटर में कबाव घाटी शामिल हैं. भारत और म्यांमार के बीच एक मुक्त आवाजाही व्यवस्था ( free movement regime) है. इसके तहत, 16 किलोमीटर तक चिह्नित दायरे में रहने वाले पहाड़ी जनजातियों के भारतीय और म्यांमार के नागरिक बॉर्डर पास के जरिये सीमा पार कर सकते हैं. इस बॉर्डर पास की वैलेडिटी एक साल होती है और इसके तहत एक यात्रा के दौरान दो सप्ताह तक दोनों देश में रहने की अनुमति दी जाती है. पूर्वोत्तर में कई स्थानों से सशस्त्र बल (विशेष) शक्ति अधिनियम, (AFSPA) को निरस्त करने के सरकार के कदम के बारे में पूछे जाने पर, लेफ्टिनेंट जनरल नायर ने कहा कि निश्चित रूप से पूर्वोत्तर में शांति आ रही है. उन्होंने उम्मीद जताई कि हालात और अधिक शांतिपूर्ण होंगे और सरकार यह तय करने में सक्षम होगी कि AFSPA के साथ आगे बढ़ना है या नहीं .

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Last Updated : May 7, 2022, 9:15 PM IST

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