लखनऊ : चुनाव में जीत होने पर तो किसी नेता को पार्टी आगे भी चुनाव लड़ने का मौका देती है, हार जाने पर पत्ता कट ही जाता है, लेकिन कांग्रेस पार्टी में कुछ ऐसे खानदान हैं, जिन पर जीत या हार का कोई फर्क नहीं पड़ता. पार्टी में उनका कद ऊपर ही रहता है. किसी को टिकट मिले या नहीं मिले, उनका टिकट कट नहीं सकता है. फिर चाहे चुनाव लोकसभा का हो या विधानसभा का. लोकसभा हारे तो विधानसभा का टिकट मिलेगा और विधानसभा हारे तो लोकसभा में प्रत्याशी बनना तय है.
पीएल पुनिया और तनुज पुनिया
कांग्रेस पार्टी में पिता पीएल पुनिया और बेटे तनुज पुनिया का भरपूर जलवा बरकरार है. पुनिया 2009 में कांग्रेस पार्टी से लोकसभा चुनाव लड़े और बाराबंकी से सांसद बने. 2014 में कांग्रेस पार्टी ने उन्हें राज्यसभा के लिए भेजा. वर्तमान में छत्तीसगढ़ के प्रभारी हैं. कांग्रेस में उन्होंने राजनीति का भरपूर लुत्फ उठाया. इसके बाद अपने बेटे तनुज पुनिया को साल 2017 से उत्तर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय कर दिया. तनुज पुनिया की एंट्री बाराबंकी की जैदपुर विधानसभा सीट से हुई.
पहले ही चुनाव में तनुज पुनिया को शिकस्त खानी पड़ गई. उनकी बुरी तरह से हार हुई. पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर तनुज पुनिया इसके बाद साल 2019 में कांग्रेस पार्टी से ही लोकसभा का चुनाव लड़े लेकिन हार गए. इसके बाद जब भाजपा विधायक उपेंद्र रावत सांसद बन गए तो इस सीट पर उपचुनाव में भी पार्टी ने तनुज पुनिया को ही प्रत्याशी बनाया. इस बार भी तनुज पुनिया के हाथ जीत नहीं लगी. अब 2022 में पीएल पुनिया का लगातार चौथा चुनाव है और वह पार्टी से फिर से टिकट पाकर मैदान में हैं.
रामपुर का नवाब खानदान, कांग्रेस की शान
कांग्रेस में खानदान की बात की जाए तो रामपुर का नवाब घराना कांग्रेस की शान रहा है. कांग्रेस की तरफ से बेगम नूर बानो सांसद हुआ करती थीं. इसके बाद उनके बेटे कासिम आजमी की राजनीति शुरू हुई और अब पिता के साथ बेटे की भी कांग्रेस पार्टी से ही पॉलिटिक्स का आगाज हो गया है. कासिम आजमी 2017 में रामपुर के शहर विधानसभा सीट से अब्दुल्लाह आजम के सामने बहुजन समाज पार्टी से चुनाव लड़े थे लेकिन वे हार गए इसके बाद कांग्रेस पार्टी ने उन्हें हाथों-हाथ लिया.
उन्हें 2022 विधानसभा चुनाव में रामपुर से टिकट देकर मैदान में उतारा है. इतना ही नहीं पार्टी ने पिता के साथ ही बेटे को भी टिकट दिया है. बेटे हैदर अली को कांग्रेस पार्टी ने स्वार विधानसभा सीट से अपना प्रत्याशी बनाया. पिता और बेटे दोनों को कांग्रेस से टिकट तो मिला लेकिन बेटे को कांग्रेस की टिकट रास नहीं आई और हैदर अली ने कांग्रेस का टिकट ठुकराकर भाजपा के साथ गठबंधन में शामिल अपना दल (एस) ज्वाइन कर ली. इसके बाद अपना दल ने स्वार सीट से ही उन्हें प्रत्याशी घोषित कर दिया.