रांची/पटनाःछठ के तीसरे दिन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. खरना के अगले दिन परवैतिन निर्जला उपवास करती हैं. दिनभर पूजा की तैयारी के बाद शाम को नदी या जलाशय के पास डूबते सूर्य को अर्घ्य देती हैं. हालांकि अब घर पर भी लोग अर्घ्य देने लगे हैं.
सूर्य देव और छठी माई को ठेकुआ प्रसाद प्रिय है. इसे गेहूं के आटे, गुड़, मेवा और घी डालकर बनाया जाता है. इसके लिए गेहूं को पानी से अच्छी तरह धोकर सूखाते हैं. इसके बाद इस गेहूं को हाथ चक्की में पीसते हैं. पीसे हुए आटे में गुड़, सौंफ, घी और सूखा मेवा मिलाया जाता है. आटे को थोड़ा कड़ा गूंथते हैं. आटे के छोटे-छोटे टुकड़े लेकर उसे लकड़ी के सांचे में रखकर दबाते हैं और फिर मिट्टी के चूल्हे में कड़ाही में घी डालकर पकाते हैं. प्रसाद के लिए बने इस ठेकुए का स्वाद अदभुत होता है. एक बार फिर फटाफट समझते हैं ठेकुआ बनाने की विधि.
पूजा के लिए जरूरी सामान
ठेकुआ के अलावा कुछ और चीजें पूजा में जरूरी हैं. प्रसाद के लिए चावल से खास लड्डू बनाए जाते हैं. इसके साथ ही छठ पूजा में बांस की टोकरी का विशेष महत्व होता है. बांस को आध्यात्म की दृष्टि से शुद्ध माना जाता है. इसमें पूजा की सभी सामग्री को पीतल या बांस के सूप में रखकर अर्घ्य देने के लिए पूजा स्थल तक लेकर जाते हैं. अर्घ्य देते वक्त पूजा की सामग्री में गन्ने का होना सबसे जरूरी समझा जाता है. गन्ने को मीठे का शुद्ध स्रोत माना जाता है.
छठी माई की पूजा में केले का पूरा गुच्छ मां को अर्पित किया जाता है. अर्घ्य देने के लिए जुटाई गई सामग्रियों में पानी वाला नारियल भी महत्वपूर्ण माना जाता है. छठ माता को इसका भोग लगाने के बाद इसे प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है. छठ मइया के गीतों में भी केले और नारियल का जिक्र है. खट्टे के तौर पर डाभ नींबू भी अर्पित किया जाता है. एक विशेष नींबू बहुत बड़े आकार का होता है. इसके साथ ही मिट्टी के दीये और अर्घ्य के लिए तांबे का लोटा भी रखना चाहिए.