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...तो क्या केंद्र-राज्य की राजनीति से बिगड़े महामारी के हालात, पढ़ें यह रिपोर्ट - मामले में हस्तक्षेप

नीती आयोग ने 31 मार्च को ही केंद्र और राज्यों को आगाह कर दिया था कि आने वाले कुछ हफ्तों में कोरोना की स्थिति भयावह हो जाएगी. जिनमें 10 शहर मुख्य रुप से प्रभावित होंगे. बावजूद इसके न तो इन राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने और न ही केंद्र ने इन शहरों के लिए कोई ठोस नीति बनाई. अब जबकि हालात बेकाबू हो गए हैं तो केंद्र सारा भार राज्यों पर डाल रही है और राज्य सरकारें हाथ खड़ा कर रही हैं. आखिर इसके पीछे क्या है केंद्र की रणनीति? अनामिका रत्ना की रिपोर्ट.

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Published : Apr 21, 2021, 8:53 PM IST

नई दिल्ली :बीते 31 मार्च को ही नीती आयोग और केंद्र के स्वास्थ्य सचिव ने राज्यों और केंद्र को आगाह किया था कि आने वाले एक हफ्ते के अंदर 10 जिलों की हालत कोविड-19 को लेकर भयावह होने वाली है. इन शहरों में पुणे, मुंबई, नागपुर, ठाणे, नाशिक, औरंगाबाद, बेंगलुरू अर्बन,नांदेड़, दिल्ली और अहमदाबाद का नाम लिया गया था.

नीती आयोग की तरफ से साफ शब्दों में यह कहा गया था कि आने वाले हफ्ते में ये शहर हाई रिस्क पर हैं और लोगों की जान बचाने के लिए अस्पतालों और आईसीयू को तुरंत तैयार कराया जाना चाहिए. मगर चेतावनी के बावजूद राज्य सरकारों के रवैये में कोई बदलाव नहीं आया और अचानक ही हफ्ते भर के अंदर स्थिति भयावह हो गई और कई मुख्यमंत्रियों ने हाथ खड़े कर दिए.

मंगलवार को प्रधानमंत्री ने देश के नाम संबोधन तो प्रस्तुत किया मगर संबोधन में एक बार भी कहीं इन राज्यों में तुरंत कोई टास्क फोर्स बनाए जाने या केंद्र के हस्तक्षेप की बात नहीं कही गई. दरअसल, केंद्र खासतौर कई राज्य सरकारों को एक्सपोज करना चाहती है और उसके बाद राज्यों की स्वास्थ्य व्यवस्था की बागडोर अपने हाथों में लेगी.

ऐसा इसलिए क्योंकि 2020 में जब कोविड-19 के मरीजों की संख्या बढ़ रही थी तो गृह मंत्री ने तुरंत कमान संभालते हुए राज्यों में संयुक्त सचिव और अतिरिक्त सचिव लेवल के केंद्र के अधिकारियों का टास्क फोर्स बना दिया था. तब स्थितियां में सुधार हुआ या यूं कहें कि स्थितियां नियंत्रण में आ गईं. मगर ऐसा लगता है कि इस बार की लहर में वह रणनीति भी फेल होने जा रही है.

ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि बार-बार दिल्ली, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों से मदद की गुहार के बावजूद केंद्र सरकार ने सहायता के लिए कोई ठोस निर्देश नहीं दिए. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल जहां ऑक्सीजन की मांग लगातार कर रहे हैं, वहीं छत्तीसगढ़ के सीएम वैक्सीन की पूर्ति के लिए केंद्र से मांग कर चुके हैं. महाराष्ट्र लगातार भेदभाव करने का आरोप लगा रहा है.

सूत्रों की मानें तो कहीं ना कहीं इसके पीछे बंगाल चुनाव और आने वाले दिनों में कई राज्यों के चुनाव भी कारण हैं. भारतीय जनता पार्टी यह चाहती है कि जनता के सामने गैर भाजपाई राज्यों की ऐसी छवि बनाई जाए जिसमें वह पूरी तरह से फेल साबित हों और उसके बाद केंद्र सहायता के लिए हाथ बढ़ाएं ताकि गैर-कांग्रेसी राज्यों की सरकार को एक्सपोज करने का कोई मौका बीजेपी न गवां पाए. जिससे आने वाले तमाम राज्यों और लोकसभा चुनाव में इन बातों का दम भरा जाए.

इस संबंध में बीजेपी के सांसद और राज्यसभा में पार्टी के मुख्य सचेतक शिव प्रताप शुक्ला ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए दावा किया कि केंद्र शुरू से ही इन राज्यों को तमाम मदद कर रहा है. बावजूद राज्यों ने अपनी तैयारी ठीक से नहीं की और इसी का नतीजा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है. शुक्ला का कहना है कि केंद्र इन राज्यों को समय-समय पर मदद करता रहा है.

हालांकि उन्होंने यह भी माना कि हालात उत्तर प्रदेश में भी काफी बिगड़ चुके हैं मगर उनका कहना है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हर संभव इस समस्या से उबरने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद पॉजिटिव हैं इसके बावजूद वे लगातार वह इससे संबंधित बैठक कर रहे हैं और लोगों को मदद पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं.

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इस सवाल पर कि आखिर केंद्र इस मामले में हस्तक्षेप क्यों नहीं कर रहा है. तो उनका जवाब था कि केंद्र, राज्य के हर मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकता लेकिन लगातार निगरानी की जा रही है. उन्होंने यह भी दावा किया कि राज्य सरकारों को समय पर सहायता भी उपलब्ध कराई जा रही है.

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