नई दिल्ली :बीते 31 मार्च को ही नीती आयोग और केंद्र के स्वास्थ्य सचिव ने राज्यों और केंद्र को आगाह किया था कि आने वाले एक हफ्ते के अंदर 10 जिलों की हालत कोविड-19 को लेकर भयावह होने वाली है. इन शहरों में पुणे, मुंबई, नागपुर, ठाणे, नाशिक, औरंगाबाद, बेंगलुरू अर्बन,नांदेड़, दिल्ली और अहमदाबाद का नाम लिया गया था.
नीती आयोग की तरफ से साफ शब्दों में यह कहा गया था कि आने वाले हफ्ते में ये शहर हाई रिस्क पर हैं और लोगों की जान बचाने के लिए अस्पतालों और आईसीयू को तुरंत तैयार कराया जाना चाहिए. मगर चेतावनी के बावजूद राज्य सरकारों के रवैये में कोई बदलाव नहीं आया और अचानक ही हफ्ते भर के अंदर स्थिति भयावह हो गई और कई मुख्यमंत्रियों ने हाथ खड़े कर दिए.
मंगलवार को प्रधानमंत्री ने देश के नाम संबोधन तो प्रस्तुत किया मगर संबोधन में एक बार भी कहीं इन राज्यों में तुरंत कोई टास्क फोर्स बनाए जाने या केंद्र के हस्तक्षेप की बात नहीं कही गई. दरअसल, केंद्र खासतौर कई राज्य सरकारों को एक्सपोज करना चाहती है और उसके बाद राज्यों की स्वास्थ्य व्यवस्था की बागडोर अपने हाथों में लेगी.
ऐसा इसलिए क्योंकि 2020 में जब कोविड-19 के मरीजों की संख्या बढ़ रही थी तो गृह मंत्री ने तुरंत कमान संभालते हुए राज्यों में संयुक्त सचिव और अतिरिक्त सचिव लेवल के केंद्र के अधिकारियों का टास्क फोर्स बना दिया था. तब स्थितियां में सुधार हुआ या यूं कहें कि स्थितियां नियंत्रण में आ गईं. मगर ऐसा लगता है कि इस बार की लहर में वह रणनीति भी फेल होने जा रही है.
ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि बार-बार दिल्ली, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों से मदद की गुहार के बावजूद केंद्र सरकार ने सहायता के लिए कोई ठोस निर्देश नहीं दिए. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल जहां ऑक्सीजन की मांग लगातार कर रहे हैं, वहीं छत्तीसगढ़ के सीएम वैक्सीन की पूर्ति के लिए केंद्र से मांग कर चुके हैं. महाराष्ट्र लगातार भेदभाव करने का आरोप लगा रहा है.