मुजफ्फरपुर : खुदीराम बोस देश के महान स्वतंत्रता सेनानियों में एक थे. 19 साल की उम्र में भारत माता के लिए फांसी का फंदा चूम लिया था. उनके साहस और निर्भिकता से अंग्रेजी हुकूमत कांप उठी थी. खुदीराम बोस ने वर्ष 1908 में मुजफ्फरपुर में स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल फूंका था. खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर में हुआ था. लेकिन मुजफ्फरपुर खुदीराम बोस की कर्मभूमि थी. 1905 के बंगाल विभाजन के विरोध में बोस आंदोलन में कूद पड़े. 28 फरवरी 1906 को पहली बार इस स्वतंत्रतता सेनानी को गिरफ्तार किया गया. लेकिन अंग्रेजों को चकमा देकर वे भाग निकले.
फांसी की सजा सुन हंसने लगे
बोस ने क्रांतिकारियों में एक नई ऊर्जा का संचार किया था. वो इतने निडर थे कि जब उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई तो वो हंसने लगे और यह देखकर सजा सुनाने वाले जज कंफ्यूज हो गए. कन्फ्यूज होकर जज ने पूछा कि क्या तुम्हें सजा के बारे में पूरी बात समझ आ गई है. इस पर बोस ने दृढ़ता से जज को ऐसा जवाब दिया जिसे सुनकर जज भी स्तब्ध रह गया. उन्होंने कहा कि न सिर्फ उनको फैसला पूरी तरह समझ में आ गया है, बल्कि समय मिला तो वह जज को बम बनाना भी सिखा देंगे. आजादी के ऐसे मतवालों की वजह से आज हम खुली हवा में सांस ले पा रहे हैं. खुदीराम बोस को 1908 में 11 अगस्त के दिन फांसी दी गई थी.
मुजफ्फरपुर की धरती से खुदीराम बोस ने अंग्रेजों को हिलाकर रख दिया था. कर्मभूमि और शहादत भूमि मुजफ्फरपुर में आज भी उनकी स्मृतियां संरक्षित हैं, लेकिन कुछ सरकारी उदासीनता के कारण नष्ट भी हो रही हैं. वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. संजय पंकज का कहना है कि मुजफ्फरपुर से खुदीराम बोस का गहरा नाता था, लेकिन मुजफ्फपुर के पास ही उनकी जानकारियों का अभाव है.