नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने लोकसभा सचिवालय को नये संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से कराने के लिए निर्देश देने का अनुरोध करने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई करने से शुक्रवार को इनकार कर दिया. न्यायमूर्ति जे के माहेश्वरी और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा की पीठ ने याचिकाकर्ता एवं वकील जय सुकीन से कहा कि न्यायालय इस बात को समझता है कि यह याचिका क्यों और कैसे दायर की गई तथा वह संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत इस याचिका की सुनवाई नहीं करना चाहता.
सुकीन ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 79 के तहत राष्ट्रपति देश की कार्यपालिका की प्रमुख हैं और उन्हें आमंत्रित किया जाना चाहिए था। उन्होंने कहा कि यदि न्यायालय सुनवाई नहीं करना चाहता, तो उन्हें याचिका को वापस लेने की अनुमति दी जाए. केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यदि याचिका को वापस लेने की अनुमति दी जाती है, तो उसे उच्च न्यायालय में दायर किया जाएगा. इसके बाद पीठ ने याचिका को वापस ले ली गई मानकर खारिज कर दिया.
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 28 मई को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा नए संसद भवन का उद्घाटन करने का निर्देश देने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई शुरू की और इसे खारिज कर दिया. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने विपक्षी दलों को फटकार लगाते हुए यह भी कहा कि यह याचिका जनहित में कैसे हैं. हम जानते हैं कि यह याचिका क्यों दायर की गई है. सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि याचिकाकर्ता को खुद को खुश-नसीब समझना चाहिए कि हम उन पर जुर्माना नहीं लगा रहे हैं.
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ किया कि याचिकाकर्ता इस मामले को लेकर किसी अन्य कोर्ट में भी नहीं जा सकते हैं, अगर वह किसी अन्य कोर्ट में जाते हैं, तो उन पर जुर्माना लगाया जाएगा. आपको बता दें कि जब से नए संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किए जाने की जानकारी सामने आई है, तभी से नई दिल्ली सहित पूरे देश में राजनीति गरमाई हुई है और विपक्षी दल इस उद्घाटन का बहिष्कार कर रहे हैं.
याचिका में कहा गया था कि प्रतिवादी, लोकसभा सचिवालय और भारत संघ, उन्हें (राष्ट्रपति को) उद्घाटन के लिए आमंत्रित नहीं कर राष्ट्रपति को अपमानित कर रहे हैं. यह याचिका, 28 मई को नये संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा किये जाने के कार्यक्रम को लेकर छिड़े एक विवाद के बीच दायर की गई. करीब 20 विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति को 'दरकिनार' किये जाने के विरोध में समारोह का बहिष्कार करने का फैसला किया है.
बुधवार को 19 राजनीतिक दलों ने एक संयुक्त बयान में कहा था कि जब लोकतंत्र की आत्मा को ही संसद से बाहर निकाल दिया गया है, तब हमें एक नये भवन का कोई महत्व नजर नहीं आता. वहीं, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने इस 'तिरस्कारपूर्ण' फैसले की निंदा की. सत्तारूढ़ राजग में शामिल दलों ने बुधवार को एक बयान में कहा था कि यह कृत्य केवल अपमानजनक नहीं, बल्कि महान राष्ट्र के लोकतांत्रिक लोकाचार और संवैधानिक मूल्यों का घोर अपमान है.
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने हाल में प्रधानमंत्री से मुलाकात की थी और उन्हें भवन का उद्घाटन करने के लिए आमंत्रित किया था. मोदी ने 2020 में इस भवन का शिलान्यास भी किया था और ज्यादातर विपक्षी दल उस समय इस कार्यक्रम से दूर रहे थे. बता दें कि आगामी 28 मई को भारत के नए संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया जाना है. इसे लेकर कांग्रेस, आम आदमी पार्टी समेत 20 दल इसका विरोध कर रहे हैं. विरोधी दलों की मांग है कि नए संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री द्वारा नहीं, बल्कि राष्ट्रपति द्वारा किया जाना चाहिए.
कांग्रेस पार्टी, आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और एआईएमआईएम समेत 20 विपक्षी दल इसका लगातार विरोध कर रहे हैं. वहीं कई ऐसे भी दल हैं, जिन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किए जा रहे इस उद्घाटन का समर्थन भी किया है. इसमें युवाजन श्रमिक रायथु कांग्रेस पार्टी, बीजू जनता दल, शिव सेना (शिंदे गुट), लोक जन शक्ति पार्टी, तेलुगू देशम पार्टी, नेशनल पीपल्स पार्टी, नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी, सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा, अपना दल (सोनेलाल), रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (अठावले), तमिल मनीला कांग्रेस (मूपनार), ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम, मिजो नेशनल फ्रंट, शिरोमणि अकाली दल शामिल हैं.
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