वाशिंगटन:संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि महामारी ने पिछले साल लगभग आठ करोड़ लोगों को अत्यधिक गरीबी में धकेल दिया है. कई विकासशील देश कर्ज चुकाने की हालत में नहीं है या बढ़े कर्ज की दर से परेशान हैं. ऐसी स्थिति रूस-यूक्रेन युद्ध के प्रभाव से पुर्व का है. रिपोर्ट में कहा गया है कि अमीर देश अल्ट्रा-लो ब्याज दरों पर उधार ली गई रिकॉर्ड राशि के साथ महामारी की मंदी से उबरने में मदद कर सकते हैं. वहीं सबसे गरीब देशों ने अपने कर्ज अदायगी के लिए अरबों डॉलर खर्च किए और उन्हें बढ़ी दर के कारण उधारी चुकाना मुश्किल पड़ रहा है. जिसके कारण गरीब देशों ने शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल में सुधार, पर्यावरण की रक्षा और असमानता को कम करने पर होने वाले बजट में भारी कटौती की है.
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 2019 में 812 मिलियन लोग अत्यधिक गरीबी में रहते थे जिनकी आय 1.90 अमरीकी डालर प्रति दिन या उससे कम थी. वहीं महामारी के बीच 2021 तक यह संख्या बढ़कर 889 मिलियन पहुंच गई. रिपोर्ट 2030 के लिए संयुक्त राष्ट्र के विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए वित्तपोषण पर है, जिसमें गरीबी समाप्त करना, सभी युवाओं के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करना और लैंगिक समानता प्राप्त करना शामिल है. संयुक्त राष्ट्र की उप महासचिव अमीना मोहम्मद ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि यह प्रयास मानवता के लिए एक महत्वपूर्ण समय में आ रहा है, जो हमारी प्राकृतिक प्रणालियों पर जलवायु हमलों के जटिल संकट और लंबी COVID-19 महामारी को जोड़ रहा है.
इसके अलावा मोहम्मद ने कहा कि रूस व यूक्रेन युद्ध का वैश्विक प्रभाव पड़ रहा है. रिपोर्ट के विश्लेषण से यह संकेत मिलता है कि यूक्रेन में युद्ध के परिणामस्वरूप 1.7 बिलियन लोगों को भोजन, ऊर्जा और उर्वरक लागत में वृद्धि से परेशानी हो रही हैै. एक अनुमान है कि 20 प्रतिशत विकासशील देशों में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद रूस-यूक्रेन युद्ध के प्रभाव को झेलने से पहले भी 2023 के अंत तक 2019 से पहले के स्तर पर वापस नहीं आएगा. सबसे गरीब व विकासशील देश अपने कर्ज पर ब्याज की अदायगी में अपने राजस्व का औसतन 14 प्रतिशत भुगतान कर रहे हैं. कई देशों को महामारी के परिणामस्वरूप शिक्षा, बुनियादी ढांचे और पूंजीगत खर्च के बजट में कटौती करना पड़ रहा है. जबकि अमीर व विकसित देश केवल 3.5 प्रतिशत ब्याज का भुगतान कर रहे हैं.