कैनबरा :कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौरान अच्छे इंटरनेट कनेक्शन ने हमारे जीवन को आगे बढ़ाना संभव बनाया. हालांकि कुछ बड़ी तकनीकी कंपनियां, जो हम पर नजर रखती है और हमें खतरनाक एवं असामाजिक चीजों के बारे में सोचने के लिए उकसाती हैं ताकि हम उन पर क्लिक करते रहें, वे हमें भारी नुकसान भी पहुंचा रहे हैं.
हालांकि किसी नुकसान के बिना कनेक्टिविटी की सुविधा नहीं मिल सकती लेकिन मुझे लगता है कि यह संभव है. हमें बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों के बारे में सोचने के तरीके को बदलना होगा. सर्वप्रथम यह जानना जरूरी है कि बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनी भीतर से कमजोर होती है. दूसरी चीज यह है कि वह तभी मजबूत बनती है, जब हम इसे मजबूत बनने देते हैं.
बड़ी कंपनियों से मेरा मतलब फेसबुक एवं गूगल और उससे संबंधित (फेसबुक के मालिकाना हक वाली) इंस्टाग्राम और (गूगल के स्वामित्व वाली) यूट्यूब जैसी कंपनियों से है. उनसे पहले आने वाली कंपनियां भी इसलिए कमजोर थीं क्योंकि उनके भविष्य की गारंटी नहीं थी. नेटस्केप, माइस्पेस, एमएसएन और उन सभी अन्य कंपनियों के बारे में सोचें जिनके बारे में कहा गया था कि उनका एकाधिकार कायम हो जाएगा.
हमारी पकड़ खोने का डर
फेसबुक व्हिसल-ब्लोअर फ्रांसेस हौगेन ने पिछले महीने खुलासा किया था कि बाजार की अग्रणी कंपनी को बाजार पर अपनी पकड़ खोने का भय है. फेसबुक को पता है कि वह अपने शरीर को लेकर आत्मविश्वास की कमी से लोगों में पैदा होने वाली समस्या को बढ़ा रही है. उसने स्वयं यह बात स्वीकार की है लेकिन उसने इंस्टाग्राम की कार्यशैली बदलने के लिए कोई खास कदम नहीं उठाया. इसका एक कारण यह है कि किशोर फेसबुक की तुलना में इंस्टाग्राम पर 50 प्रतिशत अधिक समय बिताते हैं.
फेसबुक ने 2012 में इंस्टाग्राम को खरीदा, जबकि वह खुद तस्वीरें साझा करने वाला मंच बना सकती थी. उसने संदेश भेजने के अपने मंच मैंसेजर के उम्मीदों पर खरा नहीं उतरने के कारण 2014 में व्हाट्सऐप को खरीद लिया. ये किसी ऐसी कंपनी के कदम नहीं लगते हैं, जिसे अपने शीर्ष पर बने रहने का विश्वास है.