नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कोविड महामारी के दौरान भी वादियों की ओर से लंबी दलीलों पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि न्याय प्रणाली 'आम आदमी' के लिए है और मौखिक दलीलों के लिए समयसीमा जरूरी है.
शीर्ष अदालत ने कहा कि छोटे और स्पष्ट फैसलों के लिए संक्षिप्त लेखन के लिहाज से रेन और मार्टिन के सिद्धांतों को अपनाया जाना चाहिए जिन्हें वादी भी समझें. हालांकि अदालतों के सामने घंटों लंबी दलीलें चलती हैं और बहुत सारी सामग्री प्रस्तुत की जाती है.
न्यायालय ने एक फैसले में ये टिप्पणी कीं जिसमें उसने दिल्ली विधानसभा की शांति और सद्भावना समिति की ओर से जारी सम्मन को चुनौती देने वाली फेसबुक इंडिया के उपाध्यक्ष और प्रबंध निदेशक अजीत मोहन की याचिका को खारिज कर दिया. समिति ने पिछले साल फरवरी में उत्तर-पूर्व दिल्ली में हुए दंगों के सिलसिले में गवाह के तौर पर पेश नहीं होने पर मोहन को तलब किया था.