रायपुर :प्रदेश में मुख्यमंत्री बदलने को लेकर सियासत (Politics Over Change of Chief Minister) गरमाई हुई है. आलम यह कि आयेदिन छत्तीसगढ़ के विधायकों और मंत्रियों का दिल्ली में डेरा जमा रहता है. कई विधायकों ने बीते चार दिनों से दिल्ली में डेरा डाल रखा है. यह वे विधायक हैं, जो भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री बने रहने के लिए समर्थन कर रहे हैं. लेकिन इस बीच बघेल और सिंहदेव में लगातार दूरियां बढ़ती जा रही हैं.
यह बात भी सामने आ रही है कि हाईकमान ने इस मामले में निर्णय ले लिया है. बस इंतजार है तो समय का. यानी कि भूपेश बघेल (Bhupesh Baghel) को कुर्सी छोड़नी होगी और उस पर टीएस सिंहदेव (TS Singhdeo) बैठेंगे. हालांकि इसकी पुष्टि अब तक किसी ने नहीं की है और न ही इसे लेकर पार्टी की ओर से कोई आधिकारिक बयान ही आया है. बावजूद इसके यदि ऐसा हुआ तो कांग्रेस को इसका क्या नफा-नुकसान होगा यह बड़ा मुद्दा है.
प्रदेश में मुख्यमंत्री बदलने को लेकर चल रहे इस उथल-पुथल पर ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान वरिष्ठ पत्रकार शशांक शर्मा ने कहा कि छत्तीसगढ़ कांग्रेस में पिछले तीन-चार वर्षों में गुटबाजी नदारद थी. बड़े नेताओं के बीच में जो आपसी संघर्ष होता था, कांग्रेस का जो इतिहास और परंपरा बन गई थी, वह स्थिति 2015-16 के बाद छत्तीसगढ़ में देखने को नहीं मिली थी.
कांग्रेस में राजनीतिक गुटबाजी की होगी वापसी
शशांक ने कहा कि यदि मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर छत्तीसगढ़ कांग्रेस में दो धड़े होते हैं तो छत्तीसगढ़ कांग्रेस में राजनीतिक गुटबाजी की यह वापसी होगी. कभी भी किसी पार्टी में जब गुटबाजी होती है तो उसका खामियाजा पार्टी को संगठन स्तर पर, सत्ता के स्तर पर और यहां तक कि जो चुनाव होते हैं, उसमें भुगतना पड़ता है.
सीएम बदलने का पार्टी को विधानसभा चुनाव में उठाना पड़ सकता है खामियाजा
शशांक शर्मा ने कहा कि वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पिछड़े वर्ग से आते हैं. प्रदेश में पिछड़ा वर्ग एक बहुत बड़ा वोट बैंक है. भूपेश बघेल जिस तरह से काम कर रहे हैं, उससे लोग प्रभावित हैं. वे पिछड़ा वर्ग के स्वाभिमान बताए जा रहे हैं. उनके बदलने से इस वर्ग में काफी असंतोष व्याप्त होगा और ये वोटर असंतुष्ट हो जाएंगे. इसका खामियाजा पार्टी को आगामी विधानसभा चुनाव में उठाना पड़ सकता है.
ओबीसी फैक्टर से अन्य पहलुओं पर भी सोच-विचार कर लेता है हाईकमान निर्णय