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मामलों की ऑनलाइन सुनवाई के दौर में ट्रांजिट बेल की अवधारणा अब प्रासंगिक नहीं : Gujrat HC - the concept of transit bail

गुजरात उच्च न्यायालय ने कथित इसरो जासूसी मामले के सिलसिले में सेवानिवृत्त पुलिस महानिदेशक आर बी श्रीकुमार के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी में उन्हें गिरफ्तारी से मिले संरक्षण को बुधवार को एक दिन के लिये बढ़ा दिया और कहा कि ऑनलाइन सुनवाई के दौर में उनके द्वारा मांगी गई 'पारगमन जमानत' की अवधारणा प्रासंगिक नहीं लगती.

गुजरात उच्च न्यायालय
गुजरात उच्च न्यायालय

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Published : Jul 28, 2021, 11:09 PM IST

अहमदाबाद :गुजरात उच्च न्यायालय ने बुधवार को कथित इसरो जासूसी मामले के सिलसिले में अपना फैसला सुनाया. मामल में सेवानिवृत्त पुलिस महानिदेशक आर बी श्रीकुमार के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी में उन्हें गिरफ्तारी से बचाव के लिए एक दिन का समय बढ़ा दिया. कोर्ट ने कहा कि ऑनलाइन सुनवाई के दौर में उनके द्वारा मांगी गई ट्रांजिट जमानत की अवधारणा प्रासंगिक नहीं लगती. अदालत ने कहा कि वह पारगमन (ट्रांजिट) जमानत याचिका पर गुरुवार को अपना फैसला सुनाएगा.

दरअसल, गुजरात कैडर के पूर्व आईपीएस अधिकारी श्रीकुमार को 1994 के जासूसी मामले में सीबीआई द्वारा दर्ज एक मामले में 17 अन्य सेवानिवृत्त कानून लागू करने वाले अधिकारियों के साथ आरोपी बनाया गया था, जिसमें इसरो के पूर्व वैज्ञानिक एस नंबी नारायणन को कथित रूप से फंसाया गया था. उन्होंने गुजरात उच्च न्यायालय में ट्रांजिट जमानत याचिका दायर की थी, जिससे वह केरल उच्च न्यायालय में अग्रिम जमानत याचिका दायर कर सके.

मामले की सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति विपुल पंचोली ने गिरफ्तारी से श्रीकुमार को दिए गए संरक्षण को बुधवार तक बढ़ाते हुए कहा, 'कल भी कर्नाटक के बेंगलुरु के लिये एक पारगमन जमानत के लिये आवेदन आया था…अब जब ऑनलाइन याचिकाएं दायर हो रही हैं. ऑनलाइन सुनवाई हो रही है, तब ट्रांजिट जमानत याचिका की परिकल्पना अब नहीं रहती है.'

पढ़ें :ISRO espionage : पूर्व डीजीपी श्रीकुमार ने ट्रांजिट जमानत मांगी, हाईकोर्ट से सीबीआई को नोटिस

न्यायमूर्ति पंचोली ने कहा कि उन्होंने इस अदालत द्वारा 1992 में पारित किया गया आदेश रिकॉर्ड में पेश किया है. उस समय, लोगों को अपने खिलाफ प्राथमिकी दर्ज हो जाने के बाद एक वकील की तलाश के लिये दूसरे राज्य जाना पड़ता था. अब वकील यहां बैठकर भी दलील (ऑनलाइन) दे सकते हैं. लोग यहां बैठकर लंदन में भी जिरह कर रहे हैं…अब यह संभव है. संक्षेप में कहें तो उन्हें केरल में सशरीर पेश होने की जरूरत नहीं है. वह गुजरात, दिल्ली, मुंबई, केरल का एक वकील कर सकते हैं…एक याचिका ऑनलाइन दायर की जा सकती है.'

(पीटीआई-भाषा)

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