हैदराबाद : पेट्रोलियम उत्पादों की बढ़ती कीमतों से पूरे देश में आम आदमी परेशान है. इस साल पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कुल मिलाकर 24 चरणों में वृद्धि हुई. सोमवार से पहले तो लगातार 12 दिन इनके दाम बढ़े. कोविड -19 महामारी ने अपने पीछे जो आर्थिक तबाही छोड़ी है उसकी पृष्ठभूमि में पेट्रोलियम ईंधन की कीमत में वृद्धि से जनता की स्थिति बिगड़ रही है. मूल्य वृद्धि सामाजिक-आर्थिक संकटों को और जटिल बना रही है.
केंद्रीय वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने भी ये स्वीकार किया है कि मूल्य को नीचे लाने के सिवा लोगों को समझाने का और कोई तरीका नहीं है. उनका कहना है कि वह इस मामले में धर्मसंकट का सामना कर रही हैं.
उन्होंने कहा कि चूंकि पेट्रोलियम उत्पाद की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार से जुड़ी हैं, इसलिए कीमतों पर नियंत्रण उनके दायरे में नहीं था. उन्होंने कहा कि कीमतों को तर्कसंगत बनाने के लिए राज्य और केंद्र को आपस में बात करनी चाहिए.
केंद्र ने 2017 में पेट्रोल की कीमत में रोजाना बदलाव को हरी झंडी दे दी थी. हालांकि, यह केवल आधे-अधूरे सच को अंतरराष्ट्रीय बाजारों के उतार-चढ़ाव के बारे में बता रहा है. पिछले साल महामारी के कारण मांग में कमी के कारण कच्चे तेल की कीमत में भारी गिरावट आई थी. केंद्र और राज्य सरकारों ने जो उत्पाद शुल्क लगाए हैं उसके कारण पेट्रोल की घरेलू कीमत नीचे आने के बजाय और बढ़ गईं.
कोविड -19 आने से पहले पेट्रोल पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क 19.98 रुपये था. कोरोनाकाल के दौरान शुल्क 32.98 रुपये तक बढ़ाया गया था. इसी तरह डीजल पर उत्पाद शुल्क 15.83 रुपये से बढ़ाकर 31.83 रुपये कर दिया गया. राज्यों की ओर से लगाए गए कर की भी इसमें भूमिका रही.
देश अपनी कच्चे तेल की आवश्यकताओं के लिए 89 प्रतिशत आयात पर निर्भर है इस बात को ध्यान में रखते हुए लोग त्याग करने को तैयार रहते हैं. इसी तरह लोग समझ सकते हैं कि देश एलपीजी का 53 प्रतिशत आयात करता है, लेकिन वे प्रचलित आर्थिक संकट की स्थिति में उनके साथ हो रहे धोखे का दोष ढूंढ रहे हैं.