अगरतला : त्रिपुरा उच्च न्यायालय (High Court of Tripura ) ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि बर्खास्त किए गए 10,323 शिक्षकों को नव सृजित पदों (newly created posts) पर भर्ती के लिए कोई विशेष सुविधा नहीं दी जा सकती.
न्यायमूर्ति अरिंदम लोध (Justice Arindam Lodh) की अध्यक्षता वाली उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने कहा कि ऐसा कोई भी प्रयास भारतीय संविधान (Indian constitution) के अनुच्छेद 226 का उल्लंघन (violation of Article 226) होगा.
छंटनी किए गए शिक्षकों की ओर से बिजॉय कृष्ण साहा (Bijoy Krishna), राजीव दास (Rajib Das) और अरुण भौमिक (Arun Bhaumik) ने अपने नुकसान के लिए सीधे रोजगार की मांग करते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया.
हाल ही में रिट याचिका को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति लोध ने सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का उल्लेख किया, जो राज्य सरकार की याचिका (state government's petition) पर आधारित था, जिसमें 10,323 सेवानिवृत्त शिक्षकों को विभिन्न रिक्त पदों पर बिना किसी ओपन विज्ञापन के निर्णय पारित करने के लिए समायोजित किया गया था.
उच्च न्यायालय ने पाया कि बिजॉय कृष्ण साहा, राजीव दास और अरुण भौमिक की रिट याचिका में राज्य सरकार को चयन प्रक्रिया (Selection Process) का पालन किए बिना रिक्त समूह C और D पद पर उन्हें रोजगार प्रदान करने का निर्देश देने की अपील अपने आप में अवैध है. यह अदालत किसी भी राज्य सरकार या किसी प्राधिकरण को किसी भी सार्वजनिक पद (public post) पर ऐसा कोई रोजगार करने के लिए मजबूर करने वाले निर्देश नहीं दे सकती है, जिसमें बिना किसी चयन प्रक्रिया के रिट याचिकाकर्ताओं (Writ Petitioners) को समायोजित किया जा सके.