नई दिल्ली : डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Dr Sarvapalli Radhakrishnan) एक महान भारतीय दार्शनिक (Great Indian Philosopher), विद्वान और राजनीतिज्ञ थे. जिनका जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु के मद्रास प्रांत के थिरुत्तानी में हुआ था. उस समय भारत पर ब्रिटिश हुकुमत थी. वह एक तेलगु परिवार में जन्में थे. उनके पिता का नाम सर्वपल्ली वीरस्वामी (Sarvepalli Veeraswami) था जो अधीनस्थ राजस्व अधिकारी (Subordinate Revenue Official) थे और उनकी माता का नाम सर्वपल्ली सीता (Sarvepalli Sita) था.
उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय (University of Madras) से दर्शनशास्त्र में परास्नातक (Masters’ in Philosophy) किया. और बाद में, मैसूर विश्वविद्यालय और कलकत्ता विश्वविद्यालय में पढ़ाने के लिए चले गए, जहाँ वे छात्रों के बीच भी लोकप्रिय रहे. उनके फिलॉसफी और उपदेश ने दुनिया भर में एक बड़ा प्रभाव डाला. राधाकृष्णन ने 16 साल की उम्र में अपने दूर की चचेरी बहन शिवकामु से शादी कर ली थी. जिनसें उनकी छह संतानें हुईं, जिनमें पांच बेटियां और एक बेटा था.
शिक्षक दिवस का इतिहास
पहला शिक्षक दिवस 1962 में मनाया गया था, जिस वर्ष राष्ट्रपति राधाकृष्णन ने अपना पद ग्रहण किया था. राधाकृष्णन भारत के पहले उपराष्ट्रपति थे और राजेंद्र प्रसाद के बाद देश के दूसरे राष्ट्रपति बने. यह वह वर्ष है जब सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने भारत के दूसरे राष्ट्रपति के रूप में कार्य करना शुरू किया. उनकी सम्मानित स्थिति का जश्न मनाने के लिए, उनके छात्रों ने सुझाव दिया कि उनके जन्मदिन को 'राधाकृष्णन दिवस' के रूप में मनाया जाए. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने इस कदम को अस्वीकार कर दिया और सुझाव दिया कि उनका जन्मदिन मनाने के बजाय, यह उनका गौरवपूर्ण विशेषाधिकार होगा यदि 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए.
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के बारे में रोचक तथ्य
उन्होंने अपने जीवन में M.A., D.Litt. (Hony.), LL.D., D.C.L, Litt.D., D.L, F.R.S.L, F.B.A. समेत कई डिग्रियां हासिल की. 1917 में उनकी पहली पुस्तक, द फिलॉसफी ऑफ रवींद्रनाथ टैगोर ( The Philosophy of Rabindranath Tagore ) , ने भारतीय फिलॉसफी पर दुनिया को आकर्षित किया. उन्होंने चेन्नई के प्रेसीडेंसी कॉलेज और कलकत्ता विश्वविद्यालय में पढ़ाई की. उन्होंने 1918–21 तक मैसूर और 1931-41 तक कोलकाता में फिलॉसफी के प्रोफेसर के रूप में काम किया. उसी बीच 1931 से लेकर 1936 तक वह आध्रां विश्वि विधयालय के कुलपति भी रहे.
1936 से 1952 तक वह इंग्लैंड में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ( University of Oxford in England ) में पूर्वी धर्मों और नैतिकता के प्रोफेसर रहे. 1939 से 1948 तक वह भारत की बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ( Banares Hindu University - BHU) के कुलपति थे.
उन्होंने 1946-52 में भारत का UNESCO प्रतिनिधित्व किया और 1949-1952 तक USSR में भारतीय राजदूत रहे. वे 1953 से 1962 तक दिल्ली विश्वविद्यालय (University of Delhi) के चांसलर भी रहे. उन्हें 1954 में भारत रत्न और 1975 में टेंपलटन पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
बता दें, राधाकृष्णन को साहित्य में नोबेल पुरस्कार के लिए 16 बार और नोबेल शांति पुरस्कार के लिए 11 बार नामांकित किया गया था. उन्होंने 1968 में साहित्य अकादमी फेलोशिप (Sahitya Akademi fellowship) जीती, जो की साहित्य अकादमी द्वारा एक लेखक को दिया जाने वाला "सर्वोच्च सम्मान है.