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Teachers’ Day 2021 : 1962 में मनाया गया था पहला शिक्षक दिवस, जानिए इतिहास

इस वर्ष हम सर्वपल्ली राधाकृष्णन की 59वीं जयंती मना रहे हैं, जिसे शिक्षक दिवस के नाम से भी जाना जाता है. तो आइए जानते हैं कि इस दिन को हम आखिरकार क्यों मनाते हैं और क्या है इसे मनाने के पीछे की खास वजह :-

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन

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Published : Sep 5, 2021, 1:41 PM IST

नई दिल्ली : डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Dr Sarvapalli Radhakrishnan) एक महान भारतीय दार्शनिक (Great Indian Philosopher), विद्वान और राजनीतिज्ञ थे. जिनका जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु के मद्रास प्रांत के थिरुत्तानी में हुआ था. उस समय भारत पर ब्रिटिश हुकुमत थी. वह एक तेलगु परिवार में जन्में थे. उनके पिता का नाम सर्वपल्ली वीरस्वामी (Sarvepalli Veeraswami) था जो अधीनस्थ राजस्व अधिकारी (Subordinate Revenue Official) थे और उनकी माता का नाम सर्वपल्ली सीता (Sarvepalli Sita) था.

उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय (University of Madras) से दर्शनशास्त्र में परास्नातक (Masters’ in Philosophy) किया. और बाद में, मैसूर विश्वविद्यालय और कलकत्ता विश्वविद्यालय में पढ़ाने के लिए चले गए, जहाँ वे छात्रों के बीच भी लोकप्रिय रहे. उनके फिलॉसफी और उपदेश ने दुनिया भर में एक बड़ा प्रभाव डाला. राधाकृष्णन ने 16 साल की उम्र में अपने दूर की चचेरी बहन शिवकामु से शादी कर ली थी. जिनसें उनकी छह संतानें हुईं, जिनमें पांच बेटियां और एक बेटा था.

शिक्षक दिवस का इतिहास

पहला शिक्षक दिवस 1962 में मनाया गया था, जिस वर्ष राष्ट्रपति राधाकृष्णन ने अपना पद ग्रहण किया था. राधाकृष्णन भारत के पहले उपराष्ट्रपति थे और राजेंद्र प्रसाद के बाद देश के दूसरे राष्ट्रपति बने. यह वह वर्ष है जब सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने भारत के दूसरे राष्ट्रपति के रूप में कार्य करना शुरू किया. उनकी सम्मानित स्थिति का जश्न मनाने के लिए, उनके छात्रों ने सुझाव दिया कि उनके जन्मदिन को 'राधाकृष्णन दिवस' के रूप में मनाया जाए. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने इस कदम को अस्वीकार कर दिया और सुझाव दिया कि उनका जन्मदिन मनाने के बजाय, यह उनका गौरवपूर्ण विशेषाधिकार होगा यदि 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए.

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के बारे में रोचक तथ्य

उन्होंने अपने जीवन में M.A., D.Litt. (Hony.), LL.D., D.C.L, Litt.D., D.L, F.R.S.L, F.B.A. समेत कई डिग्रियां हासिल की. 1917 में उनकी पहली पुस्तक, द फिलॉसफी ऑफ रवींद्रनाथ टैगोर ( The Philosophy of Rabindranath Tagore ) , ने भारतीय फिलॉसफी पर दुनिया को आकर्षित किया. उन्होंने चेन्नई के प्रेसीडेंसी कॉलेज और कलकत्ता विश्वविद्यालय में पढ़ाई की. उन्होंने 1918–21 तक मैसूर और 1931-41 तक कोलकाता में फिलॉसफी के प्रोफेसर के रूप में काम किया. उसी बीच 1931 से लेकर 1936 तक वह आध्रां विश्वि विधयालय के कुलपति भी रहे.

1936 से 1952 तक वह इंग्लैंड में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ( University of Oxford in England ) में पूर्वी धर्मों और नैतिकता के प्रोफेसर रहे. 1939 से 1948 तक वह भारत की बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ( Banares Hindu University - BHU) के कुलपति थे.

उन्होंने 1946-52 में भारत का UNESCO प्रतिनिधित्व किया और 1949-1952 तक USSR में भारतीय राजदूत रहे. वे 1953 से 1962 तक दिल्ली विश्वविद्यालय (University of Delhi) के चांसलर भी रहे. उन्हें 1954 में भारत रत्न और 1975 में टेंपलटन पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

बता दें, राधाकृष्णन को साहित्य में नोबेल पुरस्कार के लिए 16 बार और नोबेल शांति पुरस्कार के लिए 11 बार नामांकित किया गया था. उन्होंने 1968 में साहित्य अकादमी फेलोशिप (Sahitya Akademi fellowship) जीती, जो की साहित्य अकादमी द्वारा एक लेखक को दिया जाने वाला "सर्वोच्च सम्मान है.

1975 में 86 की उम्र में उनका मद्रास (चेन्नई) में निधन हो गया.

सर्वपल्ली राधाकृष्णन के उद्धरण

  • ज्ञान हमें शक्ति देता है, प्रेम हमें परिपूर्णता देता है. (Knowledge gives us power, love gives us fullness.)
  • पुस्तकें वह माध्यम हैं जिसके द्वारा हम संस्कृतियों के बीच सेतु का निर्माण करते हैं. (Books are the means by which we build bridges between cultures.)
  • सहनशीलता वह श्रद्धांजलि है जो सीमित मन अनंत की अटूटता को अदा करता है. (Tolerance is the homage which the finite mind pays to the inexhaustibility of the Infinite.)
  • ज्ञान और विज्ञान के आधार पर ही आनंद और आनंद का जीवन संभव है. (A life of joy and happiness is possible only on the basis of knowledge and science.)
  • हमारे सभी विश्व संगठन अप्रभावी साबित होंगे यदि यह सत्य कि प्रेम घृणा से अधिक मजबूत है, उन्हें प्रेरित नहीं करता है. (All our world organizations will prove ineffective if the truth that love is stronger than hate does not inspire them.)
  • जब हम सोचते हैं कि हम जानते हैं कि हम सीखना बंद कर देते हैं. (When we think we know we cease to learn.)

नेहरू के साथ संबंध

डॉ. राधाकृष्णन के सबसे करीबी दोस्तों में से एक थे पंडित जवाहरलाल नेहरू. जिन्होंने एक बार उनके बारे में कहा था, "उन्होंने कई क्षमताओं में अपने देश की सेवा की है. लेकिन सबसे बढ़कर, वह एक महान शिक्षक हैं जिनसे हम सभी ने बहुत कुछ सीखा है और सीखना जारी रखेंगे. हमारे राष्ट्रपति के रूप में एक महान दार्शनिक, एक महान शिक्षाविद् और एक महान मानवतावादी का होना भारत का विशिष्ट विशेषाधिकार है."

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की किताबें

सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने अपने जीवन में कई किताबें लिखी. जिस लिस्ट में उनकी किताब द हिंदू व्यू ऑफ लाइफ (The Hindu View of Life) , ए सोर्स बुक इन इंडियन फिलॉसफी (A Source Book in Indian Philosophy) , एन आइडियलिस्ट व्यू ऑफ लाइफ (An Idealist View of Life), ईस्टर्न रिलिजंस एंड वेस्टर्न थॉट, द फिलॉसफी ऑफ रवींद्रनाथ टैगोर (The Philosophy of Rabindranath Tagore) , द परस्यूट ऑफ ट्रुथ, रिलिजन, साइंस एंड कल्चर (The Pursuit of Truth, Religion Science and Culture), द हार्ट ऑफ हिंदुस्थान (The Heart of Hindusthan), लिविंग विद ए पर्पज (Living with a Purpose) , फेथ रिन्यूड ( Faith Renewed) शुमार हैं.

डॉ. एस. राधाकृष्णन और मॉस्को

1949 में, नेहरू ने भारत के राजदूत के रूप में प्रसिद्ध दार्शनिक डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन को मास्को भेजने का फैसला किया. तीन वर्षों में, राधाकृष्णन सोवियत संघ (Soviet Union) के साथ भारत के संबंधों के प्रतिमान को बदलने में कामयाब रहे.

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1955 में निकिता ख्रुश्चेव और निकोलाई बुल्गानिन (Nikita Khrushchev and Nicholai Bulganin) के भारत दौरे के बाद भारत-रूस संबंधों में तेजी से वृद्धि देखी गई. उस समय पर डॉ राधाकृष्णन भारत के उपराष्ट्रपति थे और राष्ट्रपति बनने जा रहे थे. भारत-रूस संबंध उस नींव पर बने हैं जो उनके मास्को में भारत के राजदूत रहते स्थापित की गई थी.

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