नई दिल्ली : तारिक फतेह अपनी राय खुलकर रखने के लिए जाने जाते थे. वह एक ऐसे विचारक और लेखक थे, जिन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय मंचों से पाकिस्तान को बेनकाब किया था. पाकिस्तान के 'दोहरे' चेहरे पर प्रहार किया था. वह कट्टर इस्लामिक सोच के खिलाफ रहते थे. आप कह सकते हैं कि उनका जन्म भले ही पाकिस्तान में हुआ, पर उनकी सोच हमेशा से 'भारतीय' थी. वह मानते थे कि इस्लाम में राजनीतिक सिद्धान्त हावी होता जा रहा है, जिसकी वजह से यह पूरी दुनिया में अपना वर्चस्व कायम करना चाहता है. फतेह शरिया का खुलकर विरोध करते थे और इसकी वजह से कई बार उनकी जान लेने की भी कोशिश की गई.
करीब छह साल पहले (2017) उत्तर प्रदेश के एटीएस ने चार व्यक्ति को गिरफ्तार किया था. चारों आतंकी संगठन आईएस से जुड़े हुए थे. पूछताछ में इन आतंकियों ने खुलासा किया था कि वे तारिक फतेह को जाने से मारने की प्लानिंग कर रहे थे. एटीएस ने मीडिया को बताया था कि उन्होंने यह इनपुट केंद्रीय एजेंसियों को दे दिया.
2017 में ही दिल्ली में 'जश्न ए रेख्ता' एक प्रोग्राम हुआ था. यह कार्यक्रम दिल्ली के इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर ऑफ आर्ट्स में हुआ था. वहां पर उन पर लाठी से वार किया गया. उनकी पीठ और पैर में चोटें भी लगीं. कट्टरपंथियों ने उन्हें 'मोदी का कु@$%, तारेक फतेह' तक कहा. वहां पर 'डेथ टू तारिक फतेह' जैसे नारे लगाए गए. उस कार्यक्रम के दौरान आयोजकों ने भी हमलावरों को नहीं रोका.
तारिक फतेह उग्र इस्लामवाद के हमेशा से खिलाफ थे. उन्होंने कई मंचों से इसकी आलोचना की थी. वह कहते थे कि वह इस्लाम के विरोधी नहीं हैं, बल्कि शरिया का विरोध करते हैं. उनका मानना था कि शरिया 'पंगु' है. उनकी राय में शरिया की वजह से मुस्लिम पीछे रह जाते हैं. वह बार-बार कहते थे कि इस्लाम की निगेटिव छवि शरिया के कारण ही बनी है.