चेन्नई : वे बातें बीते दिनों की हो गईं, जब इरुलर जनजाति को अनपढ़ माना जाता था. लंबे समय तक इरुलर ट्राइब के लोगों को इस बात से अनजान माना जाता था कि शिक्षा क्या है ? बदलाव के दौर में विकास की सकारात्मक तस्वीरें सामने आ रही हैं. लोग खुद बदलने के संकल्प के साथ हालात भी बदल रहे हैं. इरुलर समाज के वंचित सदस्यों, विशेषकर बच्चों को स्कूल भेजा जाने लगा है. हालांकि, यह भी तथ्य है कि इरुलर समुदाय प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए लड़ाई अभी भी लड़ रहा है. तमाम चुनौतियों और बदलावों के बीच इरुलर ट्राइब की युवती के रोजा रिसर्च कर रही हैं.
तमिलनाडु की आदिवासी लड़की के रोजा डॉक्टरेट शोध की छात्रा हैं. रोजा इरुलर समुदाय से ताल्लुक रखती हैं. रोजा ने इरुलर कम्युनिटी का सर्टिफिकेट हासिल करने का बार-बार प्रयास किया, जिससे वह कॉलेज की शिक्षा हासिल कर सकें. भले ही भारत का संविधान अनुसूचित जनजातियों को शिक्षा के अधिकार की गारंटी देता है, लेकिन अनुसूचित जनजातियों के तहत आने वाले इरुलर समुदाय के लोगों को इसके लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. सबसे वंचित समूहों में से एक से आने वाली रोजा को भी ऐसी कई बाधाओं से टकराना पड़ा. दरअसल, एक ऐसी प्रणाली भी है जो अक्सर यह सुनिश्चित करती है कि अनुसूचित जनजातियों के लोगों को शिक्षा के अधिकार तक पहुंच न मिले.
ईटीवी भारत के साथ विशेष साक्षात्कार में रोजा ने बताया कि उन्होंने तमिलनाडु के उत्तरी भाग में स्थित विलुप्पुरम जिले के एक सरकारी कॉलेज में स्नातक पाठ्यक्रम में दाखिला लिया था. उन्होंने बताया कि उनका नामांकन सामान्य वर्ग हुआ था. रोजा बताती हैं कि उन्हें इरुलर जाति प्रमाण पत्र और छात्रवृत्ति एक साल बाद मिली. हालांकि, उच्च शिक्षा हासिल करने के दृढ़ संकल्प के साथ उन्होंने गंभीर वित्तीय संकट जैसी बाधा को भी पीछे छोड़ दिया. रोजा ने बताया कि उन्होंने मास्टर्स इन बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन (एमबीए) की डिग्री हासिल की और फिलहाल चेन्नई के लोयोला कॉलेज से रिसर्च (पीएचडी) कर रही हैं. रोजा इरुलर ट्राइब के लोगों के अलावा अन्य युवाओं के लिए भी एक प्रेरणा (Roja Role model For Irular Tribes) हैं.
स्कूल में ऐसे हुआ नामांकन : के रोजा का जन्म विल्लुपुरम जिले के तिंडीवनम के पास मारूर गांव में हुआ. रोजा के पिता कालीवरथन ईंट भट्ठे में मजदूरी करते हैं. तीन भाई-बहनों में सबसे बड़ी रोजा जब चार साल की हुईं, तो उसने खुद ही सरकारी स्कूलों में जाना शुरू कर दिया. वह बताती हैं कि स्कूल के प्रधानाध्यापक ने रोजा की असाधारण प्रतिभा को पहचाना. रोजा की सक्सेस स्टोरी से जुड़ी खबरों के मुताबिक प्रधानाध्यापक ने कथित तौर पर रोजा के पिता को स्कूल में उसका नामांकन कराने की सलाह दी और फिर पिता ने रोजा का स्कूल में नामांकन करा दिया.
गरीबी के कारण रोजा के परिवार में अशिक्षा : इरुला जाति प्रमाणपत्र प्राप्त करने के बारे में रोजा बताती हैं कि प्रौद्योगिकी की प्रगति के बावजूद जाति प्रमाणपत्र हासिल करना आसान नहीं है. उन्होंने कहा कि जाति प्रमाणपत्र अभी भी वंचित वर्गों के लिए एक अभिशाप के समान है. रोजा ने बताया कि उनका परिवार पीढ़ियों से एक ईंट भट्टे में रहता है. उन्होंने कहा, 'मुझे अभी भी इस बात का पछतावा है कि उनके भाई-बहन को स्कूल में नहीं भेजा जा सका.' बकौल रोजा, जब उन्होंने मास्टर्स डिग्री हासिल की तब एहसास हुआ कि दुनियाभर में जीवन के अलग-अलग पहलुओं में क्या हो रहा है. उन्होंने कहा, माता-पिता कभी स्कूल नहीं गए, क्योंकि उनका परिवार गरीबी से संघर्ष कर रहा था.
कॉलेज में एडमिशन का फॉर्म भरा, परिवार अनजान : रोजा बताती हैं कि स्कूली शिक्षा के दौरान उन्होंने 10वीं कक्षा की परीक्षा (एसएसएलसी) में 500 में से 275 अंक हासिल किए. 12वीं कक्षा की परीक्षा में रोजा को 1200 में से 772 अंक मिले. रोजा ने कहा, प्रोफेसर कल्याणी की सलाह पर उन्होंने विल्लुपुरम अरिग्नार अन्ना गवर्नमेंट कॉलेज (Villupuram Arignar Anna Government College) में स्नातक में दाखिला लिया. वनस्पति विज्ञान विषय के साथ बैचलर इन साइंस (Tamil Nadu Roja BSc Botany) पाठ्यक्रम में नामांकन के लिए उन्होंने फॉर्म तो भर दिया, लेकिन रोजा के परिवार को नहीं पता था कि उन्होंने कॉलेज में आवेदन किया है.
कास्ट सर्टिफिकेट नहीं तो सामान्य श्रेणी के तहत नामांकन : रोजा के रास्ते में एक और बाधा उस समय आई जब स्नातकोत्तर (एमए) की पढ़ाई के लिए उन्होंने कॉलेज में कदम रखा. उन्होंने बताया कि उनके पास आदिवासी जाति प्रमाण पत्र नहीं था. बाद में एहसास हुआ कि पढ़ाई जारी रखने के लिए उन्हें जाति प्रमाण पत्र की आवश्यकता होगी. कॉलेज के प्रिंसिपल की भूमिका पर रोजा बताती हैं कि उन्होंने (प्रिंसिपल) यह सुनिश्चित किया कि जाति प्रमाण पत्र के बिना भी मुझे कॉलेज में प्रवेश दिया जा सकता है, लेकिन पहले चरण की काउंसलिंग के दौरान उन्हें सीट नहीं मिली. रोजा बताती हैं कि काउंसलिंग के अंतिम दौर में प्रिंसिपल ने उन्हें सामान्य श्रेणी के तहत नामांकन की अनुमति दी.' पढ़ाई के माध्यम में अंग्रेजी भाषा के बारे में रोजा बताती हैं कि शुरुआत में उन्हें अंग्रेजी में बोलना और लिखना मुश्किल लगा. उन्होंने बताया कि इरुलर जाति प्रमाणपत्र के संबंध में कॉलेज के प्रिंसिपल ने मुझे निर्देश दिया छात्रवृत्ति जाति प्रमाण पत्र जमा करने के बाद ही मिलेगी. उन्होंने बताया कि दूसरे वर्ष की पढ़ाई के दौरान प्रोफेसर कल्याणी की मदद से इरुलर जाति प्रमाण पत्र मिला.
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शिक्षा हासिल करने के लिए भगीरथ यत्न : रोजा बताती हैं कि एमए की पढ़ाई का पहला साल बिना किसी बकाया के सफलतापूर्वक पूरा हुआ. उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए खुद को अच्छे से तैयार किया और वनस्पति विज्ञान में एमएससी की परीक्षा 82 प्रतिशत अंकों के साथ पास की. रोजा बताती हैं कि वे अपने कॉलेज में इतने नंबर के साथ पास होने वाली एमएससी की पहली छात्रा थीं. बाद में रोजा ने 2017 में मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज में एमबीए कोर्स में एडमिशन लिया. इसी दौरान चैरिटी वर्क से जुड़े कुछ लोग (Samaritans) मदद के लिए आगे आए और फिलहाल वे लोयोला कॉलेज से पीएचडी कर रही हैं. रोजा की इस प्रेरक सक्सेस स्टोरी के आधार पर कहा जा सकता है कि इरुलर जनजाति के लोग भी शिक्षा हासिल करने के लिए 'भगीरथ यत्न' कर रहे हैं और विशेष रूप से इस समुदाय के बच्चों का स्कूल जाना शुरू करना उत्साहित करने वाली तस्वीर है. हालांकि, एक स्याह हकीकत यह भी है कि इरुलर समुदाय जाति प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए अभी भी लंबी लड़ाई लड़ने पर मजबूर है.