नई दिल्ली : काली शेरवानी, सफेद पायजामे और सिर पर चिर-परिचित टोपी में सजी ये पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह की तस्वीर है, जो दरअसल एक आमंत्रण कार्ड पर छपी है. मौका है 27 नवंबर को चेन्नई में प्रेसीडेंसी कॉलेज में वीपी सिंह की आदमकद मूर्ति के अनावरण का. इस आमंत्रण पत्र के दूसरे पन्ने पर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की फोटो है और लिखा गया है कि अखिलेश इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में आएंगे. दो-तीन और काली-सफेद तस्वीरें हैं, जिनमें एमके करुणानिधि और वीपी सिंह एक साथ मुस्कुराते हुए दिखाए गए हैं.
पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के बेटे अजेय सिंह ने कहा-
देखिए हमें पिताजी की मूर्ति के अनावरण का आमंत्रण मिला तो जाहिर है परिवार के सदस्य होने के नाते मैंने इसे स्वीकार किया ताकि मैं अपनी माताजी और पूरे परिवार के साथ वहां जाऊं और उस समारोह में उनसे जुड़े लम्हें याद करूं. बाकी राजनीति से मेरा कोई वास्ता नहीं है. किसे बुलाया, किसे नहीं बुलाया, इससे मुझे कोई मतलब नहीं.
अजेय सिंह के लिए बेशक ये मौका अपने गौरवशाली पिता के यश से अभिभूत होने का हो, लेकिन दक्षिण भारत की राजनीति के लिए यह एक नई पहल है. आखिर उत्तर भारत की राजनीति के एक प्रतीक वीपी सिंह की मूर्ति डीएमके चेन्नई में क्यों लगवा रही है ?
इसका जवाब सीएडसीडएस के निदेशक संजय कुमार ने दिया-
डीएमके तमिलनाडु में अपने वोट और पुख्ता करना चाहती है और वीपी सिंह के बहाने राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में भी उतरने की कोशिश कर रही है. अगर चर्चा इस बात की हो रही है कि क्या हम मंडल-2 के फेज में जा रहे हैं, तो हमें याद करना होगा कि मंडल–1 का रेफरेंस प्वाइंट कौन है. किसके नाम से मंडल-1 जाना जाता है. अब चूंकि 2024 के चुनाव में सामाजिक न्याय एक बड़ा मुद्दा बन सकता है और सारी पार्टियां होड़ में लगी हैं कि वे सामाजिक न्याय की चैंपियन दिखाई दें, बिहार में कास्ट सर्वे अभी अभी आया है और उत्तर भारत की पार्टियां उसे अपनाने के लिए तैयार खड़ी हैं, तो मंडल–1 का संबंध जिनसे है, उन्हें याद करना जरूरी है. जिस तरह से महात्मा गांधी को भारत की आजादी के संघर्ष के लिए याद किया जाता है, ठीक उसी तरह सामाजिक न्याय के लिए मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू कराने के लिए वीपी सिंह को जाना जाता है और डीएमके की पहल है कि अगर सामाजिक न्याय की ओर 2024 का चुनाव मुड़ता है तो वो उसका ज्यादा से ज्यादा फायदा उठा सके.
लेकिन यह भी एक सच है कि धुर दक्षिण की राजनीति में राष्ट्रीय राजनीति के एक पुरोधा को पहली बार प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. इससे पहले हमेशा तमिलनाडु में वहीं के आइकन होते थे, वहीं के नेताओं को प्रतीक बनाया जाता है. सवाल ये कि तमिलनाडु की राजनीति तो वैसे ही सोशल जस्टिस पर आधारित रही है, तो ऐसे में उत्तर भारत के एक दिवंगत नेता की मूर्ति के अनावरण की जरूरत क्या थी.
जवाब में संजय कुमार कहते हैं, 'कहीं न कहीं ये संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि भले ही हम दक्षिण के राज्य हैं, लेकिन हम चाहते हैं कि हमारी दखल उत्तर भारत या देश की राजनीति में भी उतनी रहे. साफ संदेश है कि हम राष्ट्रीय राजनीति में भी उतनी मजबूत भूमिका निभाना चाहते हैं.'