लंदन : यूएसएआईडी के जनसांख्यिकी एवं स्वास्थ्य कार्यक्रम के 2015 के सर्वेक्षण के अनुसार, अफगानिस्तान के कुछ इलाकों में 90 प्रतिशत महिलाओं ने अपने पति के द्वारा की गई हिंसा का सामना किया है. जो महिलाएं अपने जालिम पतियों और परिवारों को छोड़ने में कामयाब हुईं, उन्हें भी अक्सर उन लोगों से और अधिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा, जिन्हें हम भरोसेमंद समझ सकते हैं, जिनमें पुलिस, डॉक्टर और सरकारी अधिकारी शामिल हैं.
तालिबान के नियंत्रण से पहले अफगानिस्तान में महिलाओं के लिए सुरक्षित गृह मौजूद थे. इनमें से अधिकतर गृह काबुल में थे. इन आश्रयों को पहले से ही अफगान समाज में कई लोग शर्मनाक और अनैतिक मानते थे. अपना सबकुछ छोड़कर सुरक्षित गृह में रहने वाली महिलाओं के लिए बाहर निकलना खतरनाक होता था. उन्हें डॉक्टर के पास जाने तक के लिए अंगरक्षक की जरूरत पड़ती थी.
यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन की शोधकर्ता जेनेविएन मैलने बताती हैं, 'वैश्विक स्वास्थ्य शोधकर्ता के तौर पर मैंने बीते पांच साल अफगानिस्तान में बिताए. इस दौरान मैंने देश में घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के अनुभवों को दर्ज किया. हमने देशभर में महिलाओं के खिलाफ हिंसा और मानसिक स्वास्थ्य के बारे में, 200 से अधिक महिलाओं और पुरुषों से बात की. मैनें दुनिया में जहां भी काम किया, उनमें अफगानिस्तान में काम करना सबसे चुनौतीपूर्ण लगा. यह राजनीतिक और जातीय रूप से काफी जटिल देश है.'
मैलने ने बताया, 'दूसरे देशों में हिंसा से बचकर भागी महिलाओं को सरकारी संस्थानों द्वारा सुरक्षा प्रदान की जाती है, लेकिन मेरे हिसाब से अफगानिस्तान में ऐसा नहीं होता. हमें कई बार अपना शोध रोकना पड़ा क्योंकि हिंसा के बाद बची महिलाओं के लिये स्थिति बहुत खतरनाक थी और हमें डर था कि हम जिन महिलाओं की मदद करना चाह रहे हैं, कहीं उनकी जान कहीं और ज्यादा खतरे में न पड़ जाए.'
महिलाओं के साथ हिंसा से जुड़ी दास्तान बहुत बर्बर
द कन्वर्सेशन से बातचीत में जेनेविएन मैलने ने कहा, 'अफगानिस्तान में महिलाओं की हिंसा से जुड़ी कहानियां सुनना और उनका विश्लेषण करना मेरे लिए बेहद जटिल काम था. दुनिया में कहीं भी हिंसा की ऐसी दास्तानें सुनने को नहीं मिलतीं. वे बहुत बर्बर होते हैं और हमेशा हर बात के लिए महिलाओं को दोष दिया जाता है. अधिकतर महिलाओं के लिए अपने पतियों के साथ रहने के अलावा कोई चारा नहीं है. अगर वे मदद मांगना चाहें भी तो उन्हें पीटा जाता है और दुर्व्यवहार किया जाता हैं. सास समेत परिवार की अन्य महिलाएं भी अकसर हिंसा में शामिल रहती हैं.'
उन्होंने कहा, 'महिलाएं उनकी दास्तानें सुनाने का मौका देने के लिए हमारी शोध टीम की शुक्रगुजार रहतीं. वे कहतीं कि इस तरह हमारी बात सुनने के लिए कोई नहीं आता था. जिन महिलाओं से हमने बात की, उन्होंने अपने और पुरुषों के बीच असमानता की दर्दभरी कहानियों से रूबरू कराया.'